शांत सरल मन चल वृन्दावन
खा ले मनमोहन संग माखन
बिरहन को अग्नि सा लागे
अपना तो प्रेमी है सावन
सुन्दरता आई सब जग की
खेले कान्हा, मन के आंगन
नित्य उदार रहो मन मेरे
जाने कौन रूप हो वामन
सारे जग में श्याम सखा है
रखना मन सबसे अपनापन
अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
(जन ४, ०५ को लिखी कविता
जन ४, १० को लोकार्पित)
खा ले मनमोहन संग माखन
बिरहन को अग्नि सा लागे
अपना तो प्रेमी है सावन
सुन्दरता आई सब जग की
खेले कान्हा, मन के आंगन
नित्य उदार रहो मन मेरे
जाने कौन रूप हो वामन
सारे जग में श्याम सखा है
रखना मन सबसे अपनापन
अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
(जन ४, ०५ को लिखी कविता
जन ४, १० को लोकार्पित)
2 comments:
बहुत सुंदर रचना है।
नववर्ष की शुभकामनाओं के साथ द्वीपांतर परिवार आपका ब्लाग जगत में स्वागत करता है।
pls visit.......
www.dweepanter.blogspot.com
sundar ati sundar
laxman vyas
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