Saturday, April 3, 2010

मेरे श्याम


मेरे श्याम कहा बस उसने
फिर उतरा एक गहरा मौन

जब आनंद सघन उतरा हो
कौन हिले, मुख खोले कौन

'श्याम मेरा है' भाव जाग कर
राग-द्वेष से पार कराये

'श्याम मेरा है' अनुभूति यह
प्रेम बढा उद्धार कराये

हँसे कभी, गाये और झूमे
भक्ति तरंग नव नृत्य उगाये

पत्ती-पत्ती, वृन्दावन की
पवन सखी संग 'कान्हा' गाये

चरण थिरक कर रुक जाए तब
धरा स्वयं ता थैय्या गाये

सकल व्योम का सार सांस में
सुन्दरतम गिरिधर धर जाए

मैं तो कलम चला कर तन्मय
श्याम स्वयं ही कलम चलाये

मेरा रोम रोम उसका है
ध्याम कृष्ण का बहुत लुभाए

जय हो

अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
२३ जून २००५ को लिखी
३ अप्रैल २०१० को लोकार्पित

1 comment:

संजय भास्‍कर said...

बहुत ही सुन्‍दर प्रस्‍तुति ।