मन अनुभव आंगन खेल खेल
करे श्याम सुन्दर से नित्य मेल
आनंद परम अब छाया है
करबद्ध खड़ी अब माया है
अब रोम-रोम में, कण-कण में
दरसन विराट का पाया है
जय जय गोविन्द, गोपाल हरी
प्रभु मूरत, तन मन में उतरी
मन मोहन रंग तरंग लिए
हो गयी दिव्य, सारी नगरी
वो नटवर नागर, नंदलाला
छलकाए प्रीत की मधुशाला
नयनों से जब मुस्काये है
करे तृप्त, बना दे मतवाला
अशोक व्यास
माय ६, २००९ को लिखी
२१ जून २०१० को लोकार्पित
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