Sunday, August 8, 2010

अनंत पथ से बोलना है


भ्रमर आते हैं
कृष्ण लीला गान सुनाते हैं
धन्य हैं वे
जो तन्मय हो जाते हैं

एक नन्हे अंकुरण में पूरी सृष्टि गाती है
धन्य हैं वे आँखें, जो सुन्दर गति पर ठहर जाती हैं

लिखना रास्ते खोलना है
अनंत पथ से बोलना है

बोल से अबोल
मोल से अनमोल
अमृत-चिंतन
क्षण-क्षण ढोलना है

मैं विस्तार अपनाऊँ
स्वयं विस्तार बन जाऊं
अनाज की बालियों में
ऊर्जा बन कर गाऊँ

प्रेम खिलाऊँ 
आनंद लुटाऊँ
हर विवाद में
शांति सार बहाऊँ
 
अशोक व्यास, न्यूयार्क 
३ दिसंबर १९९४ को भारत में लिखी पंक्तियाँ
८ अगस्त २०१० को लोकार्पित

1 comment:

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति