Mere To Giridhar Gopal
Krishna is the one who 'attracts', plays and invites our consciousness to merge with His infinite consciousness in a very playful manner. This blog is an offering at His feet with prayers for invoking Him and celebrating His all pervading presence of Gopal. Cherishing the memories of contact with Natwar Nagar and surrendering myself at the feet of this ever uplifting, eternal companion, trouble shooter and wisest guide at every step.
Wednesday, January 21, 2015
Tuesday, July 29, 2014
Friday, February 15, 2013
रूप सुहाना श्याम का
रूप सुहाना श्याम का
मधुर मुरलिया हाथ
लुका छुप्पी खेलता,
कान्हा सबके साथ
2
राधा बरजोरी करे
सखियों को ले साथ
कान्हा से कान्ही बने
आये ब्रज के नाथ
3
होरी खेलन आ गयी
गोपिन गोकुल धाम
प्रेम रंग की धार से
भीग गए घनश्याम
4
मंगल मोहन मधुमय सुमिरन
मधुर भाव में नित्य मगन मन
अमृत झरता उसकी छवि से
जाग्रत सतत कृपा का सावन
संबल श्याम चरण से पाया
गीत मुक्ति का रसमय गुंजन
अशोक व्यास
न्यूयार्क
बहुत बरस पुरानी रचना
कम से कम 16 बरस पूर्व
जयपुर में लिखे गए शब्द
फटे-टूटे पृष्ठ पर सामने आये
और सहेजने के साथ सम्प्रेषण हेतु
कान्हा की कृपा से यहाँ तक पहुँच गए
जय श्री कृष्ण
15 फरवरी 2013
वसंत पंचमी के दिन
जय हो
Wednesday, February 13, 2013
जय श्री कृष्ण
जय श्री कृष्ण
परमानंद उजागर करते
गुरु गागर में सागर भरते
सुमिरन रस अमृत बरसाते
लीला नटवर नागर करते
(30 नवम्बर 2012)
Saturday, November 26, 2011
His truth
So now
he readily gave up everything
nothing was in a position to tie him
nothing could restrict his movement
the joy of embracing infinite
was riding high
in his consciousness
this time
it felt like
he found his track
his train
and
his truth
Ashok Vyas
26 November 2011
Wednesday, October 19, 2011
बस कान्हा ही कान्हा है
नए सिरे से उसको थामने की चाह लेकर
इस बार
जब मैं
गोपियों के पीछे
छुपता छुपाता
कान्हा के दरस के लिए निकला
तो
एक गोपी ने मुझे देख लिया
'तू छुप छुप कर क्यों चल रहा है रे?'
मुझे पूछा
तो कोइ जवाब न था मेरे पास
दूसरी ने कहा
'इसे डर है हम इसे रोक न दें'
तीसरी बोली
'ये नहीं समझता की
इसे रोकने वाला ये खुद ही है'
चौथी ने कहा
'और ये भी देखो
सोचता है
कहीं पहुँच कर कान्हा मिलेगा
जबकी कान्हा तो यहीं है
हमारे साथ'
'पर दिखाई तो नहीं देता?' मैं बोल पड़ा
एक बुजुर्ग गोपी ने मुझ पर तरस खाकर कहा
'बेटा
कान्हा को तो मैंने भी कभी देखा नहीं
वो देखने का नहीं अनुभव करने वाला तत्त्व है
और अनुभव करने के लिए
तुम्हें गोपियों से छुप कर
उनके पीछे नहीं
गोपी बन कर उनके साथ चलना होगा'
एक क्षण को मुझे लगा
'गोपियाँ हैं ही नहीं
बस कान्हा ही कान्हा है '
अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
Tuesday, October 18, 2011
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