सौंपूं सब नन्दलाल को
ऐसा हो ना पाए
भटके मन हो बावरा
नहीं पकड़ में आय
छोड़ दिया हरि कथा को
फिरता मस्त मलंग
जिससे छूते श्याम संग
ढूंढें ऐसा रंग
कोयल बोले बांसुरी
कव्वा फाटा ढोल
भक्त मुखर होते सखी
लिए प्रभु के बोल
लिख आनंद किलोल को
कर लीला का साथ
दिखा कर सृष्टि सकल
छुप गए गोपीनाथ
अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
No comments:
Post a Comment