Friday, October 14, 2011

लिए प्रभु के बोल


सौंपूं सब नन्दलाल को
ऐसा हो ना पाए
भटके मन हो बावरा
नहीं पकड़ में आय

छोड़ दिया हरि कथा को 
फिरता मस्त मलंग
जिससे छूते श्याम संग
ढूंढें ऐसा रंग

कोयल बोले बांसुरी
कव्वा फाटा ढोल
भक्त मुखर होते सखी 
लिए प्रभु के बोल

लिख आनंद किलोल को
कर लीला का साथ
दिखा कर सृष्टि सकल
छुप गए गोपीनाथ



अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
    
        

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