Saturday, July 2, 2011

कान्हा की जयकार करो मन



कान्हा की
जयकार करो मन
नित्य जागता 
कृपा का सावन
जिससे मधुमय
सारा जीवन
उस रस में तुम
रमे रहो मन
कान्हा की जयकार
करो मन

अशोक व्यास
१७ अगस्त २००९ को लिखी
२ जुलाई २०११ को लोकार्पित      

3 comments:

Rakesh Kumar said...

नित्य जागता कृपा का सावन
जिससे मधुमय सारा जीवन
उस रस में तुम रमे रहो मन
कान्हा की जयकार करो मन

ऐसा पावन अहसास केवल एक भक्त हृदय ही कर सकता है.
आपकी भक्तिपूर्ण प्रस्तुति से मन को चैन और सकून मिलता है.
बहुत बहुत आभार,अशोक जी.

Ashok Vyas said...

Rakeshji Maharaj,
जय श्री कृष्ण
आपके भीतर 'मधुर भाव रस' संचरित करने वाली
की जय हो
और उसकी लीला में रस लेने वाले राकेशजी महाराज की जय हो

Rakesh Kumar said...

प्रिय अशोक जी,
आप यदि मुझे 'महाराज' कहना ही पसंद करतें हैं तो

मैं छोटा महाराज कहलवाना पसंद करूँगा तब
जबकि आप मुझे आपको 'बड़ा महाराज'
कहने दें और कान्हा को 'महाराजों का महाराज'
आईये 'बड़े महाराज जी' फिर मिलकर कहतें हैं

नित्य जागता कृपा का सावन
जिससे मधुमय सारा जीवन
उस रस में तुम रमे रहो मन
कान्हा की जयकार करो मन

'महाराजाधिराज'कान्हा की जयकार करो मन.