Monday, July 4, 2011

वह मुस्कुराता रहा



तुम कहाँ थे
जब मैं उपेक्षा की समझ से क्रोधित हुआ

तुम कहाँ थे
जब मैं ने
अकेलेपन की अग्नि में
भस्म होकर स्याह रंग अपनाया

तुम कहाँ थे
जब मैंने
सारे संसार से अपने को कटा पाया
जब मैं 
लक्ष्यहीन हो, अनाथ सा रोया, चिल्लाया

मैं प्रश्न पूछता रहा
वह मुस्कुराता रहा

बोली उसकी मुस्कान
"मैं तो यहीं था
जहां होता हूँ हमेशा
तुम्हारे पास
तुम अनदेखा करते रहे मुझे
और मैं
तुम्हारी उपेक्षा पर
मुस्कुराता रहा

तुम भी उपेक्षित होने पर
मुस्कुराओ
अपनापन, बाहर नहीं
भीतर है तुम्हारे
इसे देखो, अपनाओ

औरों तक भी पहुँचाओ


अशोक व्यास
६ मई २००८ को लिखी
                   ४ जुलाई २०११ को लोकार्पित                  
 

2 comments:

Rakesh Kumar said...

बोली उसकी मुस्कान
"मैं तो यहीं था
जहां होता हूँ हमेशा
तुम्हारे पास
तुम अनदेखा करते रहे मुझे
और मैं
तुम्हारी उपेक्षा पर
मुस्कुराता रहा

सत्य वचन 'बड़े महाराज जी'

आपकी सुन्दर बातें अंतर-चक्षु खोल रहीं हैं.

बहुत बहुत आभार जी.

sunil purohit said...

शाश्वत सत्य के उदघाटन के इतने सजीव एवं भावपूर्ण चित्रण के लिए ह्रदय से आभार |