तुम कहाँ थे
जब मैं उपेक्षा की समझ से क्रोधित हुआ
तुम कहाँ थे
जब मैं ने
अकेलेपन की अग्नि में
भस्म होकर स्याह रंग अपनाया
तुम कहाँ थे
जब मैंने
सारे संसार से अपने को कटा पाया
जब मैं
लक्ष्यहीन हो, अनाथ सा रोया, चिल्लाया
मैं प्रश्न पूछता रहा
वह मुस्कुराता रहा
बोली उसकी मुस्कान
"मैं तो यहीं था
जहां होता हूँ हमेशा
तुम्हारे पास
तुम अनदेखा करते रहे मुझे
और मैं
तुम्हारी उपेक्षा पर
मुस्कुराता रहा
तुम भी उपेक्षित होने पर
मुस्कुराओ
अपनापन, बाहर नहीं
भीतर है तुम्हारे
इसे देखो, अपनाओ
औरों तक भी पहुँचाओ
अशोक व्यास
६ मई २००८ को लिखी
४ जुलाई २०११ को लोकार्पित
2 comments:
बोली उसकी मुस्कान
"मैं तो यहीं था
जहां होता हूँ हमेशा
तुम्हारे पास
तुम अनदेखा करते रहे मुझे
और मैं
तुम्हारी उपेक्षा पर
मुस्कुराता रहा
सत्य वचन 'बड़े महाराज जी'
आपकी सुन्दर बातें अंतर-चक्षु खोल रहीं हैं.
बहुत बहुत आभार जी.
शाश्वत सत्य के उदघाटन के इतने सजीव एवं भावपूर्ण चित्रण के लिए ह्रदय से आभार |
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