आज एक अंतिम पृष्ठ
कल एक नई शुरुआत
आभार तुम्हारा प्रियतम
जो हर जगह रहे हो साथ
सांवरे की मुस्कान ऐसी
जैसे सबसे सुन्दर प्रभात
कैसे रिझाऊँ कान्हा तुम्हें
पूछ रहा जोड़ कर हाथ
चलो यह भी बहुत अच्छा
करता रहूँ नित्य तुमसे बात
जय श्री कृष्ण
२६ जून २००८ को लिखी
५ जुलाई २०११ को लोकार्पित
2 comments:
आपकी बातें बहुत प्यारी प्यारी लगती हैं.
कान्हा को रिझाने में न्यारी न्यारी लगती हैं.
शुरू से अंत तक एक खुशगवारी लगती है.
लगता है कि बातें आपकी, हमारी लगती हैं.
बोलो महाराजाधिराज 'कान्हा'जी की जय.
लगता है आप अभी भारत यात्रा पर ही हैं.बहुत समय से कोई समाचार नहीं मिला.
आपके लौटने की इंतजार में
आपका 'छोटा महाराज'
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