Friday, August 5, 2011

शाश्वत श्रद्धा छंद



गुरुकृपा का आसरा 
मिले भक्ति और ज्ञान
सांस लगे अनमोल अब
दिव्या सुधा रस खान

मोहन मोहन मन मगन
उमड़ रहा आनंद
अनुग्रह से जाग्रत हुए
शाश्वत श्रद्धा छंद

गुरुचरण चित लग गया
है अटूट विश्वास
गुरु अनुग्रह से मिट रही
युगों युगों की प्यास

बैठ हृदय में, कर रहे
शासन संवित राज
करूणा रस में भीग कर
धन्य हो गया आज


११ मई २००८ को लिखी
५ अगस्त २०११ को लोकार्पित                

1 comment:

Rakesh Kumar said...

मोहन मोहन मन मगन
उमड़ रहा आनंद
अनुग्रह से जाग्रत हुए
शाश्वत श्रद्धा छंद

आपके आगमन का हृदय से स्वागत है.
आपके 'छंद' ने मग्न कर दिया है मन को.
गुरू कृपा सदा सदा ही बरसती रहे आप पर.
कुछ छींटें पडतें रहेंगें यूँ ही तो मेरा भी
बेडा पार हो जायेगा.

मैं आपका इंतजार ही कर रहा था.