नींद में नहीं
जाग कर
विश्राम का
करते हैं आव्हान
विविध दृश्य
हो जाते
एक समान
वे हर दिन
आरती उतारते हैं
भोर की
देख लेते
गहराई हर तरह के
शोर की
मौन ऐसा
जो विराट तक जाए
उनके भीतर
सहज मुखरित हो पाए
कर लिया है
सत्य का ऐसा अनुसंधान
हो जाते, शब्द उनके
सहज अमृत गान
अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
२० मई २००८ को लिखी
(स्वामी परमानन्द महाराज के साथ बैठने का प्रभाव)
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