Saturday, September 24, 2011

गेंद सपनो की



कभी अनुकूलता
कभी प्रतिकूलता
के खेल खिलाता है
इस तरह
कृष्ण बिहारी
हमारा ध्यान भटकाता है
जब लपकते हैं
हम पकड़ने
गेंद सपनो की
वो मुस्कुरा कर
कदम्ब वृक्ष की ओट में
छुप जाता है




अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
२८ अक्टूबर २००६ को लिखी
२४ सितम्बर २०११ को लोकार्पित           

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