कभी अनुकूलता
कभी प्रतिकूलता
के खेल खिलाता है
इस तरह
कृष्ण बिहारी
हमारा ध्यान भटकाता है
जब लपकते हैं
हम पकड़ने
गेंद सपनो की
वो मुस्कुरा कर
कदम्ब वृक्ष की ओट में
छुप जाता है
अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
२८ अक्टूबर २००६ को लिखी
२४ सितम्बर २०११ को लोकार्पित
No comments:
Post a Comment