कृपा तिहारी देख कर
गदगद हूँ भगवान्
लिखता हूँ आभार जब
शब्द लगे अनजान
धन मांगूं वो, जो मिले
बन कर तेरा दास
जहाँ रहूँ, ऐसे रहूँ
तुझमें रहे निवास
गर्व तुम्हारे प्रेम का
बना रहे यदुनाथ
तुमको ही जपता रहूँ
कान्हाजी, दिन-रात
अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
९ जनवरी १९९६ को जब लिखी गयी ये पंक्तियाँ
भारत में था
१० सितम्बर २०११ को लोकार्पित
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