Saturday, September 10, 2011

गर्व तुम्हारे प्रेम का


कृपा तिहारी देख कर
गदगद हूँ भगवान्
 लिखता हूँ आभार जब 
शब्द लगे अनजान


धन मांगूं वो, जो मिले
 बन कर तेरा दास
 जहाँ रहूँ, ऐसे रहूँ 
तुझमें रहे निवास



गर्व तुम्हारे प्रेम का 
 बना रहे यदुनाथ
 तुमको ही जपता रहूँ 
कान्हाजी, दिन-रात



अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
 ९ जनवरी १९९६ को जब लिखी गयी ये पंक्तियाँ
भारत में था
 १० सितम्बर २०११ को लोकार्पित

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