Thursday, September 22, 2011

प्यास अमृत की

जय श्री कृष्ण


मन आनंदित
कान्हा मधुबन
बंशी बाजे
मयूर नाचे
कोयल गाये कुहू कुहू करती

बछड़ा मैय्या से अलग हुआ
भागे कान्हा की ओर

प्यास अमृत की
पाए सहज प्राप्य

कान्हा की झलक
दिखे
उर सुन्दर
सुन्दरतम के दरसन करे

मुस्कान मधुर
मन मोहन की

सब ताप हरे
संताप हरे
गिरिधारी की जय बोल प्रिये
यह आनंद है अनमोल प्रिये


अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
२४ अक्टूबर २०११ को लिखी
२२ सितम्बर २०११ को लोकार्पित                 

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