जय श्री कृष्ण
मन आनंदित
कान्हा मधुबन
बंशी बाजे
मयूर नाचे
कोयल गाये कुहू कुहू करती
बछड़ा मैय्या से अलग हुआ
भागे कान्हा की ओर
प्यास अमृत की
पाए सहज प्राप्य
कान्हा की झलक
दिखे
उर सुन्दर
सुन्दरतम के दरसन करे
मुस्कान मधुर
मन मोहन की
सब ताप हरे
संताप हरे
गिरिधारी की जय बोल प्रिये
यह आनंद है अनमोल प्रिये
अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
२४ अक्टूबर २०११ को लिखी
२२ सितम्बर २०११ को लोकार्पित
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