Sunday, September 11, 2011

नाम तुम्हारा रस भरा


नाम तुम्हारा रस भरा
मिले निरंतर नाथ
सारा जग अपना लगे
ऐसा तेरा साथ


जड़ता से जो मन जुड़े
उसको तुझसे जोड़
चेतन होता हूँ प्रभु
झूठे बंधन छोड़


रता रटाया बोलता
कब फूंकोगे जान
अनुभूति दो प्रेम की 
दो अनंत की तान


यहाँ-यहाँ तक हद मेरी
बैठ गया हूँ मान
कैसे कहूं असीम से
दो दो मुझको ज्ञान



अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
(११ जनवरी १९९५ को भारत में लिखी
                  ११ सितम्बर २०११ को लोकार्पित )                

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