नाम तुम्हारा रस भरा
मिले निरंतर नाथ
सारा जग अपना लगे
ऐसा तेरा साथ
जड़ता से जो मन जुड़े
उसको तुझसे जोड़
चेतन होता हूँ प्रभु
झूठे बंधन छोड़
रता रटाया बोलता
कब फूंकोगे जान
अनुभूति दो प्रेम की
दो अनंत की तान
यहाँ-यहाँ तक हद मेरी
बैठ गया हूँ मान
कैसे कहूं असीम से
दो दो मुझको ज्ञान
अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
(११ जनवरी १९९५ को भारत में लिखी
११ सितम्बर २०११ को लोकार्पित )
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