इतने सारे सवाल
जैसे कोई जाल
कुछ ऐसी है
समय की चाल
सन्दर्भों के सूराख
बना देते जंजाल
२
हर जाल को निकाल
चेतना की दिव्य उछाल
आनंद उंडेल कर
शुद्ध बना करती निहाल
३
यह वैभव अपरम्पार
नित्य आलोक का श्रृंगार
समर्पण का उपहार
सुलभ सीमातीत प्यार
४
चलो हर लें यह थकन
मिटा दें हर शिकन
अच्युत का संग जगाएं
कर लें सतत सुमिरन
अशोक व्यास
अप्रैल २००८ को लिखी
५ सितम्बर २०११ को लोकार्पित
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चलो हर लें यह थकन
मिटा दें हर शिकन
अच्युत का संग जगाएं
कर लें सतत सुमिरन
सतत सुमिरन जीवन का आधार बन जाये,
तो जीवन की नैय्या ही पार हो जाये.
राम सुमिर् राम सुमिर् राम सुमिर् बाबरे
घोर भव, नीर निधि,नाम निज नाव रे.
सुन्दर प्रस्तुति के लिए आभार,अशोक भाई.
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