जय श्री कृष्ण!
प्रकाश की एक किरण
उमंग भरी frock पहने
नन्ही बच्ची सी
मेरा हाथ पकड़ कर
मचलती हुई
उछलती हुई
ले चली मुझे
किस तरफ
न जान कर
चलते चलते
लगा नहीं रहे मेरे पाँव
पर मैं चल रहा हूँ
फिर धीरे धीरे
धड, मुख, माथा
सब कुछ धुल गए
निर्मल अलोक में
मैं ही मैं था हर तरफ
पर वह 'मैं' जो आया था
था जो आने से पहले
उसकी पहचान
नहीं है शेष
आत्मीयता के सागर में
विलीन है
वह सीमित एक
जिसका हाथ
थामा था
प्रकाश की
एक किरण ने
l४ मार्च २००८ को लिखी १३ अगस्त २०११ को लोकार्पित
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