चिर प्रसन्नता धारण करने का व्रत है
नित्य श्याम में लीन रहूँ, ऐसी लत है
पग-पग पर ये खेल दिखे है जो उसका
उसके देखे, बनता प्रेम भरा पथ है
आँखों में जो जो बदली सी उमड़े है
उसके बरसे बढे श्याम की संगत है
मैं अपनी हर बात भुला कर आया था
पर यादों में अब भी मधुमय रंगत है
अहा! प्रेम विस्तार सजाने वाले से
मेरा मन अब नित्य निरंतर सहमत है
अशोक व्यास
जुलाई ३०, ११ को लिखी
२६ अगस्त २०११ को लोकार्पित
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