पूर्णता के एकदम पास
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लग रहा है सब कुछ बकवास
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हर सांस में असीम का निवास
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कैसे बचाए रखूँ उल्लास
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मुझमें सब कुछ, मैं यानी विस्तार
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मैं क्षुद्र, विवश, दिशाहीन और लाचार
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मेरी पूंजी है परमात्मा की पुकार
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कौन करे इस अकेलेपन से पार
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मैं तुम्हारी शरण हूँ गिरिधारी
२
कैसे करून, प्रखर होने की तैय्यारी
अशोक व्यास, ४ मार्च २००८ को लिखी, ११ अगस्त २०११ को लोकार्पित
1 comment:
मैं तुम्हारी शरण हूँ गिरिधारी
उसी की शरण बेडा पार लगा देगी.
'जाके सिर ऊपर तू स्वामी
सो दुःख कैसे पाए.'
सुन्दर प्रस्तुति के लिए आभार.
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