Thursday, August 11, 2011

अकेलेपन से पार


1

पूर्णता के एकदम पास 
लग रहा है सब कुछ बकवास
हर सांस में असीम का निवास 

२  
कैसे बचाए रखूँ उल्लास
१ 
    मुझमें सब कुछ, मैं यानी विस्तार 
 २
  मैं क्षुद्र, विवश, दिशाहीन और लाचार 
 १
 मेरी पूंजी है परमात्मा की पुकार 
 २
कौन करे इस अकेलेपन से पार
 १
 मैं तुम्हारी शरण हूँ गिरिधारी 
 २
  कैसे करून, प्रखर होने की तैय्यारी 


 अशोक व्यास, ४ मार्च २००८ को लिखी, ११ अगस्त २०११ को लोकार्पित

1 comment:

Rakesh Kumar said...

मैं तुम्हारी शरण हूँ गिरिधारी

उसी की शरण बेडा पार लगा देगी.
'जाके सिर ऊपर तू स्वामी
सो दुःख कैसे पाए.'

सुन्दर प्रस्तुति के लिए आभार.