भज मन गोविन्द
भज गोपाला,
नृत्य करे
प्यारा नंदलाला,
पग पग
मिले सांवरा जिस पथ
चलें उसी पर
ब्रजबाला,
गा गा श्याम नाम
मन हर क्षण,
श्याम मिलन का
कर ले तू प्रण,
श्याम दरस की प्यास सांस है
जीवन
श्याम प्रेम की शाला,
भज मन गोविन्द
भज गोपाला
अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
८ जनवरी १९९५ को लिखी
९ सितम्बर २०११ को लोकार्पित
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भज मन गोविन्द,भज गोपाला
भज मन गोविन्द,भज गोपाला
भज मन गोविन्द,भज गोपाला
भज मन गोविन्द,भज गोपाला
भज मन गोविन्द,भज गोपाला
भज मन गोविन्द,भज गोपाला
भज मन गोविन्द,भज गोपाला
भज मन गोविन्द,भज गोपाला
तज सब धंदे, भज गोपाला
रुनझुन नृत्य करे, नंदलाला
भज मन गोविन्द,भज गोपाला
आदिगुरू शंकराचार्य जी का 'भज गोविन्द'
याद आ रहा है.
'भज गोविन्दम,भज गोविन्दम
गोविन्दम भज मूढ मते
सत्संग गत्वे निसंगत्वं
निसंगत्वे निर्मोहत्वम
निर्मोहत्वे निर्मल तत्वं
निर्मलतत्वे जीवनमुक्ति
भज गोविन्दम,भज गोविन्दम
गोविन्दम भज मूढ मते'
जय हो राकेशजी
आनंदामृत नाम श्याम का
पाए, पाए और लुटाएं
सुमिरन माखन नित्य बिलों कर
भोग लगाएं, रुच-रुच खाएं
जय श्री कृष्ण
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