कहूँ न कहूँ
दिखता तो है
मुझको केंद्र बना कर
किरणों का प्रसरण
अलोक संचरण
जैसे जैसे
परिष्कृत होता जाता है प्यार
खुलता जाता है मेरा विस्तार
उदात्त आनंद के शुद्ध क्षण
रसमय कर गया समर्पण
कर रहा हर सांस पावन
उन्नत शिखर का आकर्षण
अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
२ जनवरी २०११ को लिखी
१9 सितम्बर २०११ को लोकार्पित
1 comment:
उदात्त आनंद के शुद्ध क्षण
रसमय कर गया समर्पण
हो गई हर एक सांस पावन
उन्नत करे है शिखर का आकर्षण
बहुत विलक्षण है आपकी पावन
अनुभूतियाँ.मन आनंद मग्न
हो जाता है.
सुन्दर प्रस्तुति के लिए आभार.
मेरे ब्लॉग पर आपके आदेश का
पालन किया गया है.नई पोस्ट
आपका बेसब्री से इंतजार कर रही है.
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