१
आत्म प्रतिष्ठा
गुरु में निष्ठा
श्री कृष्ण चरण रज माथे पर
चिन्मय, मधुमय, पावन, हर स्वर
२
बतियाँ करने जब लालन से
पहुँची तत्पर हो तन मन से
सब बात घुली, एक बात हुई
तादात्म्य हुआ संवित घन से
३
अब छोड़ दिया छल वाला तल
और थाम लिया केशव उज्जवल
अब ध्यान उसी का साथ सदा
पावन, मंगल, कण कण प्रति पल
अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
३ अगस्त २००९ को लिखी
३ जून २०११ को लोकार्पित
1 comment:
अत्युत्तम
कृपया संवित का अर्थ बतावें
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