जीवन भर का साथ निभाना
कान्हा कहीं छोड़ मत जाना
गिरने पर संभाल लेते हो
संभल चलूँ तब भी संग आना
तुम से गौरव, तुम से वैभव
तुमसे मंगलमय हर कलरव
कान्हा तुम अविनाशी, चिन्मय
तुम अक्षय आनंद का उद्भव
प्रेम प्रसार तुम्हारा सुमिरन
शीतल, शांति सतत मनमोहन
सार सांस में दिखा रहे तुम
करूणामय, शाश्वत मधुसूदन
दिव्य द्वार की देहरी,अपरिमित विस्तार
दूजापना मिटाय के, पावन 'एक' श्रृंगार
ॐ जय श्री कृष्ण
अशोक व्यास
२८ अगस्त २००९ को लिखी
२५ जून २०११ को लोकार्पित
1 comment:
ओम् जय श्री कृष्ण
सुन्दर अभिव्यक्ति.
कान्हा के प्रेमरस में डूबी हुई.
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