Wednesday, June 15, 2011

जहाँ है गोपीनाथ



अपने अपने रास्ते
अपनी अपनी बात
चल सजनी उस दर चलें
जहाँ है गोपीनाथ

देख पराये देस को
अपने देस की याद
चकाचौंध इस जगत की
सब कान्हा के बाद

अपने पल्ले कुछ नहीं
कहे बांधे गांठ
उसके चरण बसों मन
जिसके सारे ठाट

शरण श्याम के ले रहो
बस इतना हो ध्यान
कृपा दृष्टि आलोक में
हो गोविन्द गुणगान


अशोक व्यास
६ नवम्बर २००९ को लिखी
                  १५ जून २०११ को लोकार्पित                 

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