मन आनंद का उपहार लिए
श्रद्धा का नित श्रृंगार किये
गिरिराज धारण की शोभा को
धारण कर, सीमा पार प्रिये
२
चल श्याम सुन्दर में रम जाएँ
चहुँओर श्याम को हम पायें
जिस स्थिरता से गति सतत
उस द्वन्द रहित में थम जाएँ
अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
१९ अक्टूबर २००९ को लिखी
२७ जून २०११ को लोकार्पित
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चल श्याम सुन्दर में रम जाएँ
चहुँओर श्याम को हम पायें
जिस स्थिरता से गति सतत
उस द्वन्द रहित में थम जाएँ
अशोक जी, आपका एक एक शब्द
श्याम के रंग से ओतप्रोत है.
स्वाभाविक रूप से मन को श्याम की
ओर उन्मुख कर रहा है.आभारी हूँ
आपके इस भक्ति-रस को छलकाने से.
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