मन मगन श्याम
के सुमिरन में
घुल गया है अमृत
कण कण में
अब लोभ मोह सब
छोड़ सखी
है छटा अनंत की
नयनन में
चल पनघट गगरी धर आयें
अब खाली हाथ ही घर जाएँ
अब प्यास गयी
उन्मुक्त, तृप्त सब मधुबन में
मन मगन श्याम के सुमिरन में
अशोक व्यास
५ नवम्बर २००९ को लिखी
९ जून २०११ को लोकार्पित
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