Tuesday, August 23, 2011

कहाँ गए नंदलाल


मन मोहन महाराज की
 मन  कर जय जयकार
जिससे सारा जग बना
उसको नित्य पुकार


आनंद लेकर अकेले नहीं बैठते गोपाल
, सबको माखन लुटा कर, कर देते निहाल

ढूंढती प्यासी निगाहें, कहाँ गए नंदलाल
  देखते देखते अदृश्य, ये कैसी चलते चाल 

अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
२६ और २७ मार्च २००८ को लिखी
 २३ अगस्त २०११ को लोकार्पित

1 comment:

Rakesh Kumar said...

ढूंढती प्यासी निगाहें, कहाँ गए नंदलाल
देखते देखते अदृश्य, ये कैसी चलते चाल

बांके बिहारी की चाल है निराली
नाँचे नन्दलाल गोपियाँ दें ताली.

आगे आगे नन्दलाल पीछे पीछे गोपियाँ हैं धाईं
जेटलैग अब ठीक हो गया होगा, अशोक भाई.