गोविन्द का गुणगान करे मन
नित्य प्रभु का ध्यान धरे मन
श्याम शरण सा दुर्लभ यह क्षण
इस पर हर एक सांस हो अर्पण
प्रेमामृत में स्नान करे मन
मंगलमय आव्हान करे मन
अतुलित अभा, दीप्त है कण-कण
तन्मय, उन्नत, ओजस्वी प्राण
सत्यमयी मन
श्याममयी मन
पावन, नित्य कर एही सुमिरन.
जय श्री कृष्ण
९ सितम्बर २००९ को लिखी
१६ जून २०११ को लोकार्पित
1 comment:
स्याही में डुबो कलम थाम हाथ में ,
लिख ले ऐसा जैसा तुम लिखते हो ,
नहीं मानता मैं |
कृष्ण कृपा कुण्ड मिल गया है तुझे,
नहा उसमें हो रहा है कृतार्थ अब तूँ,
सच है ना |
कृपा कुण्ड से भीगा बाहर निकले तूँ ,
भक्ति कण से आप्लावित कर रहा तूँ ,
"कोई माने न माने यही सच है " |
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