नए सिरे से उसको थामने की चाह लेकर
इस बार
जब मैं
गोपियों के पीछे
छुपता छुपाता
कान्हा के दरस के लिए निकला
तो
एक गोपी ने मुझे देख लिया
'तू छुप छुप कर क्यों चल रहा है रे?'
मुझे पूछा
तो कोइ जवाब न था मेरे पास
दूसरी ने कहा
'इसे डर है हम इसे रोक न दें'
तीसरी बोली
'ये नहीं समझता की
इसे रोकने वाला ये खुद ही है'
चौथी ने कहा
'और ये भी देखो
सोचता है
कहीं पहुँच कर कान्हा मिलेगा
जबकी कान्हा तो यहीं है
हमारे साथ'
'पर दिखाई तो नहीं देता?' मैं बोल पड़ा
एक बुजुर्ग गोपी ने मुझ पर तरस खाकर कहा
'बेटा
कान्हा को तो मैंने भी कभी देखा नहीं
वो देखने का नहीं अनुभव करने वाला तत्त्व है
और अनुभव करने के लिए
तुम्हें गोपियों से छुप कर
उनके पीछे नहीं
गोपी बन कर उनके साथ चलना होगा'
एक क्षण को मुझे लगा
'गोपियाँ हैं ही नहीं
बस कान्हा ही कान्हा है '
अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका