Krishna is the one who 'attracts', plays and invites our consciousness to merge with His infinite consciousness in a very playful manner. This blog is an offering at His feet with prayers for invoking Him and celebrating His all pervading presence of Gopal. Cherishing the memories of contact with Natwar Nagar and surrendering myself at the feet of this ever uplifting, eternal companion, trouble shooter and wisest guide at every step.
Tuesday, July 5, 2011
Monday, July 4, 2011
वह मुस्कुराता रहा
तुम कहाँ थे
जब मैं उपेक्षा की समझ से क्रोधित हुआ
तुम कहाँ थे
जब मैं ने
अकेलेपन की अग्नि में
भस्म होकर स्याह रंग अपनाया
तुम कहाँ थे
जब मैंने
सारे संसार से अपने को कटा पाया
जब मैं
लक्ष्यहीन हो, अनाथ सा रोया, चिल्लाया
मैं प्रश्न पूछता रहा
वह मुस्कुराता रहा
बोली उसकी मुस्कान
"मैं तो यहीं था
जहां होता हूँ हमेशा
तुम्हारे पास
तुम अनदेखा करते रहे मुझे
और मैं
तुम्हारी उपेक्षा पर
मुस्कुराता रहा
तुम भी उपेक्षित होने पर
मुस्कुराओ
अपनापन, बाहर नहीं
भीतर है तुम्हारे
इसे देखो, अपनाओ
औरों तक भी पहुँचाओ
अशोक व्यास
६ मई २००८ को लिखी
४ जुलाई २०११ को लोकार्पित
Sunday, July 3, 2011
करूणामय है मित्र कन्हाई
मंत्र जाप कर लिया कोरा कोरा
दिखाई नहीं दिया गोकुल का छोरा
खिला प्रभात उस क्षण अपने मन
जब कान्हा को सौंपा 'मैं' का बोरा
2
अपने दर की दिशा बताई
करूणामय है मित्र कन्हाई
सांस वास कर प्यास दिखाई
सुमिरन रस से तृप्ति कराई
गोवर्धनधारी की जय जय
जय भक्तो के सदा सहाई
अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
६ और ७ सितम्बर २००९ को लिखी
३ जुलाई २०११ को लोकार्पित
Saturday, July 2, 2011
Friday, July 1, 2011
भज कृष्ण सदा मन
1
एक सहज और सरल काम है
सुमिरन करना नित्य नाम है
हर उलझन के पार लगाए
मन में जाग्रत कृष्णधाम है
२
गोविन्द गोविन्द गोविन्द गा
ले श्रद्धा के पर, उड़ जा
आत्मसुधा रस पान किये जा
निश्छल प्रेम लिए बढ़ जा
३
भज कृष्ण सदा मन
प्रेम मगन
बहती आये है
कृपा पवन
हर कण उसकी
आभा चहके
है मंगल, सरस
करुण साजन
अशोक व्यास
१२ और १७ अक्टूबर २००९ को लिखी
१ जुलाई २०११ को लोकार्पित
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