Tuesday, July 5, 2011

कैसे रिझाऊँ कान्हा तुम्हें



आज एक अंतिम पृष्ठ
कल एक नई शुरुआत
आभार तुम्हारा प्रियतम
जो हर जगह रहे हो साथ

सांवरे की मुस्कान ऐसी
जैसे सबसे सुन्दर प्रभात
कैसे रिझाऊँ कान्हा तुम्हें
पूछ रहा जोड़ कर हाथ

चलो यह भी बहुत अच्छा
करता रहूँ नित्य तुमसे बात

जय श्री कृष्ण
२६ जून २००८ को लिखी
५ जुलाई २०११ को लोकार्पित            

Monday, July 4, 2011

वह मुस्कुराता रहा



तुम कहाँ थे
जब मैं उपेक्षा की समझ से क्रोधित हुआ

तुम कहाँ थे
जब मैं ने
अकेलेपन की अग्नि में
भस्म होकर स्याह रंग अपनाया

तुम कहाँ थे
जब मैंने
सारे संसार से अपने को कटा पाया
जब मैं 
लक्ष्यहीन हो, अनाथ सा रोया, चिल्लाया

मैं प्रश्न पूछता रहा
वह मुस्कुराता रहा

बोली उसकी मुस्कान
"मैं तो यहीं था
जहां होता हूँ हमेशा
तुम्हारे पास
तुम अनदेखा करते रहे मुझे
और मैं
तुम्हारी उपेक्षा पर
मुस्कुराता रहा

तुम भी उपेक्षित होने पर
मुस्कुराओ
अपनापन, बाहर नहीं
भीतर है तुम्हारे
इसे देखो, अपनाओ

औरों तक भी पहुँचाओ


अशोक व्यास
६ मई २००८ को लिखी
                   ४ जुलाई २०११ को लोकार्पित                  
 

Sunday, July 3, 2011

करूणामय है मित्र कन्हाई


मंत्र जाप कर लिया कोरा कोरा
दिखाई नहीं दिया गोकुल का छोरा
खिला प्रभात उस क्षण अपने मन
जब कान्हा को सौंपा 'मैं' का बोरा

2
अपने दर की दिशा बताई
करूणामय है मित्र कन्हाई
सांस वास कर प्यास दिखाई
सुमिरन रस से तृप्ति कराई 
गोवर्धनधारी की जय जय
जय भक्तो के सदा सहाई


अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
६ और ७ सितम्बर २००९ को लिखी
३ जुलाई २०११ को लोकार्पित          

Saturday, July 2, 2011

कान्हा की जयकार करो मन



कान्हा की
जयकार करो मन
नित्य जागता 
कृपा का सावन
जिससे मधुमय
सारा जीवन
उस रस में तुम
रमे रहो मन
कान्हा की जयकार
करो मन

अशोक व्यास
१७ अगस्त २००९ को लिखी
२ जुलाई २०११ को लोकार्पित      

Friday, July 1, 2011

भज कृष्ण सदा मन



 1
एक सहज और सरल काम है
सुमिरन करना नित्य नाम है
हर उलझन के पार लगाए
मन में जाग्रत कृष्णधाम है

गोविन्द गोविन्द गोविन्द गा
ले श्रद्धा के पर, उड़ जा
आत्मसुधा रस पान किये जा
निश्छल प्रेम लिए बढ़ जा


भज कृष्ण सदा मन 
प्रेम मगन
बहती आये है
कृपा पवन
हर कण उसकी 
आभा चहके
है मंगल, सरस
करुण साजन

अशोक व्यास
१२ और १७ अक्टूबर २००९ को लिखी
१ जुलाई २०११ को लोकार्पित