Wednesday, October 19, 2011

बस कान्हा ही कान्हा है



नए सिरे से उसको थामने की चाह लेकर
इस बार
जब मैं
गोपियों के पीछे
छुपता छुपाता
कान्हा के दरस के लिए निकला
तो
एक गोपी ने मुझे देख लिया
'तू छुप छुप कर क्यों चल रहा है रे?'
मुझे पूछा
तो कोइ जवाब न था मेरे पास
दूसरी ने कहा
'इसे डर है हम इसे रोक न दें'
तीसरी बोली
'ये नहीं समझता की
इसे रोकने वाला ये खुद ही है'
चौथी ने कहा
'और ये भी देखो
सोचता है
कहीं पहुँच कर कान्हा मिलेगा
जबकी कान्हा तो यहीं है
हमारे साथ'
'पर दिखाई तो नहीं देता?' मैं बोल पड़ा
एक बुजुर्ग गोपी ने मुझ पर तरस खाकर कहा
'बेटा
कान्हा को तो मैंने भी कभी देखा नहीं
वो देखने का नहीं अनुभव करने वाला तत्त्व है
और अनुभव करने के लिए 
तुम्हें गोपियों से छुप कर
उनके पीछे नहीं
गोपी बन कर उनके साथ चलना होगा'

एक क्षण को मुझे लगा
'गोपियाँ हैं ही नहीं
बस कान्हा ही कान्हा है '



अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका               

Tuesday, October 18, 2011

सुन विराट के स्वर


दिल कहता है
सुन्दर मौन छिड़क 
सारी धरती को अपनाऊँ

स्पंदन जिसका
कण कण में
गीत उसी के दोहराऊँ

मुक्त सांस में
सुन विराट के स्वर
लहरों में मिल जाऊं

उसमें डूबूं
जिससे गहराई संग
ऊंचाई पाऊँ

धुप किनारे 
खड़ा देर से
किरण किरण उसको ध्याऊँ

कहना अब
इतना कान्हा से
कहे-सुने से तर जाऊं 

अशोक व्यास
१४ नवम्बर ९९             

Sunday, October 16, 2011

मौन है सुन्दर

 
मौन है सुन्दर
कृपा नगर है
सांस श्याम संग
आठ पहर है
सबमें जाग रहा
उजियारा
पथ प्रदीप्त है
पावन प्यारा
 
दिव्य धरा है
चिद अम्बर है
क्षण क्षण शाश्वत 
सतत मुखर है
 
अमृत घट
लाये गुरुवर हैं
प्यासा हूँ
पीना छक कर है
 
गुरु दृष्टि से पीनेवाला
हो जाता ऐसा मतवाला
 
पग पग
प्रकटित दिव्य डगर है
अतुलित 
वैभव शाली घर है
 
मौन है सुन्दर
कृपा नगर है
सांस श्याम सुमिरन से
तर है 
 
 
अशोक व्यास
 
न्यूयार्क, अमेरिका       

Saturday, October 15, 2011

कैसे पकडूँ कान


नृत्य सजे प्रभु प्रेम का
या उत्तेजक बोल
बजता है हर गीत में
अजब देह का ढोल

मदिरालय कर देह को
करूँ भोग में स्नान
हाथों में है कामना
कैसे पकडूँ कान



अशोक व्यास
         (कई बरस पहले की पंक्तियाँ
प्रभु के चरणों में अर्पित )        

Friday, October 14, 2011

लिए प्रभु के बोल


सौंपूं सब नन्दलाल को
ऐसा हो ना पाए
भटके मन हो बावरा
नहीं पकड़ में आय

छोड़ दिया हरि कथा को 
फिरता मस्त मलंग
जिससे छूते श्याम संग
ढूंढें ऐसा रंग

कोयल बोले बांसुरी
कव्वा फाटा ढोल
भक्त मुखर होते सखी 
लिए प्रभु के बोल

लिख आनंद किलोल को
कर लीला का साथ
दिखा कर सृष्टि सकल
छुप गए गोपीनाथ



अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
    
        

Thursday, October 13, 2011

चिर मस्ती का गान

जय श्री कृष्ण

कान्हा की मुस्कान पर सदा दीजिये ध्यान
आनंद आनंद हो रहे हर मुश्किल आसान

बिन मांगे सब दे रहा कान्हा कृपानिधान
निर्भय, निर्मल, सकल जग, सुन-सुन बंशी तान

अतुलित वैभव प्रेम का, करूणामृत अनमोल
कंकर-पत्थर छोड़ मन, बस कान्हा कान्हा बोल

अधर धरे बंशी नहीं, तब भी नयन सुजान
सुना रहे संकट हरण, चिर मस्ती का गान


अशोक व्यास
१४ दिसंबर २००६ को लिखी
१३ अक्टूबर २०११ को लोकार्पित    

Monday, October 10, 2011

कृष्ण प्रेम से सार हमारा


जय श्री कृष्ण

नाम तुम्हारा
सबसे प्यारा
ओ केशव
तू है रखवारा

बहे निरंतर
सुमिरन धारा 
कृष्ण प्रेम से
सार हमारा

मिली शक्ति
जब नाम उच्चारा
मोक्ष मिला
जब तुम्हें पुकारा


अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
             

Wednesday, October 5, 2011

मन कान्हा का पावन दर्पण


मन अमृत
मन वृन्दावन
मन श्याम सुन्दर
मन गोवर्धन
मन प्रेम डगर
मन श्याम नगर
मन कान्हा का
पावन दर्पण


अमृत प्यास जगाना कान्हा
अपनी और बुलाना कान्हा
जिससे महिमा बढे तुम्हारी
सिखलाना वो गाना कान्हा


अशोक व्यास
७ और ८ नवम्बर २००६ को लिखी
५ अक्टूबर २०११ को लोकार्पित              

Tuesday, October 4, 2011

दिव्य छटा री


राधा प्यारी
लाज की मारी
देखे
मोहन की पिचकारी
अंगिया भीगी
अँखियाँ रीझी
प्रेम छुपा
मुख रख दी गारी
आँगन आँगन
रंग का सावन
मधुर मुरलिया
दिव्य छटा री

अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका 
३० नवम्बर २००६ को लिखी
४ अक्टूबर २०११ को लोकार्पित             

Saturday, October 1, 2011

प्रथम पुरस्कार


कृष्ण
कृष्ण
कृष्ण
कृष्ण
कृष्ण
सबसे अच्छे कविता लिखने की प्रतिस्पर्धा थी
सबने अपनी अपनी अनुभूतियाँ लिखी
उसने
बस एक नाम लिखा
'कृष्ण'
और
प्रथम पुरस्कार पा लिया
 
 
कृष्ण सर्वोत्तम कविता कैसे?
इस बात का जवाब देते देते
एक विश्लेषक ने कहा
'कविता वह अच्छी 
जो संक्षिप्त अभिव्यक्ति
द्वारा
विस्तृत अनुभूतियों को प्रकट करे
कविता का अविष्कार 
सुनने-पढने वाले अपने अपने भीतर करते हैं"
 
पुरस्कार तो तब है
जब
'कृष्ण' स्वयं को मेरे भीतर
खुल कर प्रकट करे

कह कर
उसने 'प्रथम पुरस्कार'
श्री कृष्ण के चरणों में अर्पित कर दिया
 
 
 
अशोक व्यास
वर्जिनिया, अमेरिका
१ अक्टूबर २०११