Friday, July 1, 2011

भज कृष्ण सदा मन



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एक सहज और सरल काम है
सुमिरन करना नित्य नाम है
हर उलझन के पार लगाए
मन में जाग्रत कृष्णधाम है

गोविन्द गोविन्द गोविन्द गा
ले श्रद्धा के पर, उड़ जा
आत्मसुधा रस पान किये जा
निश्छल प्रेम लिए बढ़ जा


भज कृष्ण सदा मन 
प्रेम मगन
बहती आये है
कृपा पवन
हर कण उसकी 
आभा चहके
है मंगल, सरस
करुण साजन

अशोक व्यास
१२ और १७ अक्टूबर २००९ को लिखी
१ जुलाई २०११ को लोकार्पित      

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