Friday, December 31, 2010

परम प्रेम की रीत निराली


 
सुन्दरतम गिरिधारी
हँस हँस
बरसाए आनंद उजास
मोहनमय मन मगन
मनोहर
करे सांस में नित्य निवास

परम प्रेम की रीत निराली
एक लगे, धरती आकाश

श्याम शब्द है और मौन भी
नित्य निरंतर मेरे पास


अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
३ मार्च २००६

Thursday, December 30, 2010

करूणा है श्रृंगार कृष्ण का


 
सार कृष्ण का, प्यार कृष्ण का
सांस-सांस आधार कृष्ण का

नयनों में यह छटा मनोहर
कण कण में आभार कृष्ण का

मैं उसका हूँ, जब यह जाना
दिखता सब संसार कृष्ण का

सोच-समझ कर लिखता हूँ मैं
सोचों पर अधिकार कृष्ण का

जब देखा घबराया अर्जुन
है इतना विस्तार कृष्ण का

मोर पंख माथे पर धारे
करूणा है श्रृंगार कृष्ण का

माँगा सूरज की किरणों से
सुमिरन बारम्बार कृष्ण का

अशोक व्यास
२ मार्च २००६ को लिखी
३० दिसंबर २०१० को लोकार्पित

Wednesday, December 29, 2010

श्याम फिर मुस्काये



गोवर्धन धर श्याम बिहारी मुस्काये
मेघ गरजता रहा, श्याम कब घबराए

मेघ थके जब बरस, इन्द्र तब थर्राए
क्षमा याचना सुनी, श्याम फिर मुस्काये

लिए परम आश्वस्त भाव, पीड़ा हरने
भक्त वत्सला, श्याम सदा उर में आये


अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
१७ जनवरी २००६ को लिखी
२९ दिसंबर २०१० को लोकार्पित

Tuesday, December 28, 2010

कभी छोड़ कर ना जाना






संबंधों को राख बना कर चला गया
मेरा सब कुछ ख़ाक बना कर चला गया

मुझमें दिखने लगी ज़माने की खुशियाँ
ऐसी अद्भुत साख बना कर चला गया

अपनी दौलत दे तो दी मुझको सारी
पर अब चौकीदार बना कर चला गया

जितने भी थे द्वेष और तृष्णा सारे
छूकर सबसे प्यार बना कर चला गया

मैं कहता था, कभी छोड़ कर ना जाना
पर वो अपना सार जगा कर चला गया

जब जब देखूं, जहां-२ देखूं वो है
तन्मयता का तार सजा कर चला गया

आलोकित है कण कण में जैसे वो ही
सच की वो झंकार सजा कर चला गया


अशोक व्यास
फरवरी १४, २०००६ को लिखी
२८ दिसंबर २०१० को लोकार्पित

Monday, December 27, 2010

मन को इतना भाये कान्हा

 
आनंद रस बरसाए कान्हा
प्रेम मुदित मन गाये कान्हा

स्वांग रचा कर तरह तरह के
भक्तन को अपनाए कान्हा

छोड़ जगत उसकी धुन रमता
मन को इतना भाये कान्हा

हुई चेतना स्वर्णिम, सुन्दर
कण कण सार जगाये कान्हा

अशोक व्यास
१४ जनवरी २०१० को लिखी
२७ दिसंबर २०१० को लोकार्पित

Sunday, December 26, 2010

फिर तो कोई भी डर नहीं

 
है देह तो उससे मगर
                                               वो देह पर निर्भर नहीं
हर एक जगह उससे है पर
                                                    उसका कोई भी घर नहीं
तन की तरंगों को मिले
                                                    तृप्ति उसी के नाम से
जब मिल गया उसका पता
                                                       फिर तो कोई भी डर नहीं 

अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
२० मार्च २०१० को लिखी
२६ दिसंबर २०१० को लोकार्पित

Wednesday, December 22, 2010

दौलत जगमग पल की

 
श्याम द्वार खोया कहीं
भटक रहा वन जाय
गुरुवर तुमसे बिनती
रस्ता दो बतलाय

आज, अभी को छोड़ कर
फिरे डगरिया कल की
अनदेखी मन कर रहा 
दौलत जगमग पल की

ध्यान नहीं, सुमिरन नहीं
सिर्फ सोच की धार
ऐसे ही होती रहे
बिना खेल के हार

गोविन्द गुण गा बावरे
कर rahe भक्त सुजान
अपने मन की बांसुरी
बजे कृष्ण की तान

अशोक व्यास
१४ जनवरी २००६ को लिखी
२२ दिसंबर २०१० को लोकार्पित

Monday, December 20, 2010

जय राधे गोविन्द कृष्ण हरे


 
मन पावन आनंद सरस बरस
सब ताप हरे, सुख सार सरे

मन गाये गोकुल वृन्दावन
जय राधे गोविन्द कृष्ण हरे

अमृत घट ले आये कान्हा
उसके कर दे, जो ध्यान धरे

सुन्दरतम केशव गिरिधारी
कर कृपा मेरे उर में उतरे


अशोक व्यास
२७ फरवरी २००६ रचित
२० दिसंबर २०१० लोकार्पित

Sunday, December 19, 2010

साँसों में श्याम समाया है

 
चल आज बसन्ती पवन चली
साँसों में श्याम समाया है
सखी प्रेम मगन कलियाँ-भँवरे
आनंद परम नभ छाया है

बस्ती बस्ती गिरिधारी है
छवि कान्हा की अति प्यारी है
सब नाच रहे हरि भजन संग
उर में गोविन्द समाया है

अशोक व्यास
१३ अप्रैल २००६ को लिखी
रविवार १९ दिसंबर २०१० को लोकार्पित

Saturday, December 18, 2010

रसना सखी बनी है जब से

 
श्याम सुन्दर मनमोहन भावे
और कछु बतिया ना सुहावे

रसना सखी बनी है जब से
गोविन्द गोविन्द नाम सुनावे

यसुमति मैय्या निरख श्याम मुख
मंद मंद मन में मुसकावे

लीला कान्हा की सुन लीजे
सांस प्रेम मगन व्हे जावे

अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
३ फरवरी २००६ को लिखी
१८ दिसंबर २०१० को लोकार्पित

Friday, December 17, 2010

मन कान्हा आन बिराजे

 
आनंदित हर बात लगे
मन कान्हा आन बिराजे
चलो सखी, उस डगर चलें
जहां कृष्ण प्रेम धुन बाजे

गोवर्धन धारी के मुख पर
छाई छटा निराली
सिखला मुझको श्यामा प्यारी
मुद्रा अर्पण वाली 
 
कृष्ण कृपा के कोष बिना 
निर्धन राजे-महाराजे 
आनंदित हर बात लगे
मन कान्हा आन बिराजे

अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
१ फरवरी २००६ को लिखी 
१७ दिसंबर २०१० को लोकार्पित

Thursday, December 16, 2010

श्याम सखा संग

 
आनंद आनंद प्रेम निरंतर
श्याम सखा संग संग निरंतर
छलक रही है क्षण क्षण सुन्दर
नटवर नागर कृपा की गागर

कोमल, उज्जवल, ज्योतिर्मय मन
अद्भुत है सुमिरन यह पावन

अशोक व्यास
२९ दिसंबर २००५ को लिखी
१६ दिसंबर २०१० को लोकार्पित

Wednesday, December 15, 2010

पाकर नित्यमुक्त की संगत

 
मन आनंद बहार सदाव्रत
कान्हा मुख मन सदा रहो रत
 
उज्जवल अद्भुत करूण दिव्य वह 
सांस सांस बस उसकी रंगत 
मैं मन बंधन पडा रहा क्यूं
पाकर नित्यमुक्त की संगत

कर उसका सुमिरन रे मनवा
जिससे पग पग हो पावन पथ

अशोक व्यास
२४ दिसंबर २००५  को लिखी
१५ दिसंबर २०१० को लोकार्पित

Tuesday, December 14, 2010


प्रेम श्याम का
झंकृत तन-मन
निर्मल सुन्दर
अंतस पावन

करूणामय की
कथा निराली
अनुपम, अद्भुत
कृपा का सावन

अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
२० जनवरी २००६ को लिखी
१४ दिसंबर २०१० को लोकार्पित

Monday, December 13, 2010

मुरली मनोहर की बतिया

ताक झांक कर राधा रानी 
मुरली मनोहर की बतिया सुन 
स्वांग करे कुछ 
मन ही मन तो ध्यान लगाए 
भांप गये सब यदुनंदन तो
बंशी बजा कर फिर मुस्काये 
अशोक व्यास 
न्यूयार्क, अमेरिका 
२४ मार्च २००६ को लिखी 
१३ दिसंबर २०१० को लोकार्पित 

Saturday, December 11, 2010

मेरा जीवन सच्चा कर दो ओ कान्हा


 
मेरा जीवन सच्चा कर दो ओ कान्हा
मेरा पूजन सच्चा कर दो ओ कान्हा
नाम तुम्हारा लेना तन्मय कर जाए
सरस, सरल ऐसा मन कर दो ओ कान्हा


विरह वेदना कातर अश्रु
सुप्त तुम्हारा संग
नित्य कृष्णमय सांस रहे
प्रभु दे दो ऐसा रंग

अशोक व्यास
१५ जनवरी २००६ को लिखी
शनिवार ११ दिसंबर को लोकार्पित

Friday, December 10, 2010

कण-कण है आनंद रस, क्षण क्षण है संतोष

 
आकर्षण बस कृष्ण का, और ना कोई खिंचाव
ले सुमिरन पतवार चल, बैठ कृपा की नाव

गोविन्द नाम सुना दिया, दिया जगत का कोष
कण-कण है आनंद रस, क्षण क्षण है संतोष

प्रेम गीत गाता फिरूं, श्याम दिसे चहूँ ओर
सब शीतल, उज्जवल करे, मन में ऐसी भोर 
 
 
अशोक व्यास 
६ जनवरी २००५ को लिखी 
१० दिसंबर २०१० को लोकार्पित 

Wednesday, December 8, 2010

श्याम सारा छल हरो

कर्म पथ दरसा प्रभु मंगल करो
सार से सुन्दर पिया हर पल करो

शुद्ध मन से सृजन पथ बढ़ते रहें
समन्वय सुर दो, जगत शीतल करो

कामना है प्रेम, उजियारा बढे
समर्पण दे, श्याम सारा छल हरो


अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
३० दिसंबर २००५ को लिखी
८ दिसंबर २०१० को लोकार्पित

Tuesday, December 7, 2010

रखना मन सबसे अपनापन

 
शांत सरल मन चल वृन्दावन
खा ले मनमोहन संग माखन

बिरहन को अग्नि सा लागे
अपना तो प्रेमी है सावन

सुन्दरता आई सब जग की
खेले कान्हा, मन के आँगन
 
मन उदार रहो नित मेरे
जाने कौन रूप हो वामन
 
सारे जग में श्याम सखा है
रखना मन सबसे अपनापन

अशोक व्यास
बुधवार, ४ जनवरी २००५ को लिखी
मंगलवार, ७ दिसंबर २०१० को लोकार्पित

Monday, December 6, 2010

जो है अपरम्पार



 
1
कृष्ण ना सूझे आँख से, दिखता सब संसार
रे मन, वह दिखला मुझे, जो है अपरम्पार
2
प्रेम प्रवाह मधुर मनभावन
सुमिरन मनमोहन अति पावन
आभामयी श्याम की चर्चा
रस संचार करे मधुसूदन


अशोक व्यास, न्यूयार्क
२५ और २७ नवम्बर २००५ को लिखी
६ दिसंबर २०१० को लोकार्पित

Sunday, December 5, 2010

प्रेम पालकी बैठ चले मन



 
कर सत्कार
धरा श्रृंगार
मेरे मनमोहन
गये पधार

नित्य रसमयी गुण गा रसना
नीरस विषय संग ना फंसना

वृन्दावन की सांझ मनोहर
कण कण मुखरित आनंदित स्वर

प्रेम पालकी बैठ चले मन
श्रद्धा, निष्ठा बने कहार
कर सत्कार, धरा श्रृंगार
मेरे मनमोहन गये पधार

जय श्री कृष्ण

२४ नवम्बर २००५ को लिखी
५ दिसंबर २०१० को लोकार्पित

Saturday, December 4, 2010

सुमिरन है पतवार

सुमिरन है पतवार, नाव श्रद्धा, मन केवट है
नदी उसी की है, जिसकी छवि लिए हुए तट है
मुरली धुन में प्रेम बहा कर बुला रहा है
भगा भगा कर छुप जाए, मोहन तो नटखट है 

अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
२२ नवम्बर २००५ को लिखी
४ दिसंबर २०१० को लोकार्पित

Thursday, December 2, 2010

प्रेम कृष्ण का

 
जीवन आनंद रस संचार करे है साईं
उजियारा मन में लेकर आ रहे गुसाई 
प्रेम कृष्ण का मांगे मिलता नहीं कभी 
आग्रह छोड़ शरण लेने से मिले कन्हाई 

अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
३ दिसंबर 2010

Wednesday, December 1, 2010

पावन प्रीत

 
कान्हा मुख मुस्कान छलाछल
जगी सांस नव आभा उज्जवल

पावन प्रीत उजागर कर दी
मन आनंद मगन अति शीतल

अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
१९ दिसंबर २००५ को लिखी
१ दिसंबर २०१० को लोकार्पित