Sunday, October 31, 2010

गूंगे के गुड़ स्वाद सरीखा


कान्हा जी से करने बात
मन को लेकर पहुंचा साथ

ऐसे कुछ बदले हालात
उमड़ी आनंद की बरसात

कृपा मनोहर, करूणा सागर
सुख ऐसा देते अपना कर

गूंगे के गुड़ स्वाद सरीखा
सुना नहीं पाऊँ मैं गाकर

अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
११ जुलाई १० रचित
३१ अक्टूबर २०१० लोकार्पित

Saturday, October 30, 2010

जब जब तुम ओझल हो जाते नयनों से

 
अमृत पथ पर मुझे चलाना श्याम मेरे
बाधाएँ सब पार कराना, श्याम मेरे

ये प्रमाद जो जकड रहा मुझको आकर
इसके चंगुल से छुड़वाना श्याम मेरे

माखन खाने लायक मन हो साथ सदा
दोष दृष्टि से मुझे बचाना श्याम मेरे

जब जब तुम ओझल हो जाते नयनों से
तब भी अनुभूति पथ आना श्याम मेरे

नित्य तुम्हारा ध्यान धरे की चाहत हो
इस चाहत को पूर्ण कराना श्याम मेरे


अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
१ सितम्बर २०१० को रचित
३० अक्टूबर २०१० को लोकार्पित

Friday, October 29, 2010

यादों का श्रृंगार

 
अनुभव तेरे प्रेम का
मिल जाए एक बार
प्रेममयी लगने लगे
फिर सारा संसार

मनमोहन की बात से
बहती है रसधार
एक सांवरा कर रहा
यादों का श्रृंगार

अपने मन की बात से
नहीं मिलेगा चैन
मनमोहन का साथ ही
शांत करे दिन-रैन

अशोक व्यास
५ जुलाई २०१० को लिखी
२९ अक्टूबर २०१० को लोकार्पित

Thursday, October 28, 2010

कान्हा भटकन दूर भगाता

 
 
 
 
घर का रास्ता भूल ना जाना भैय्या जी
बात देखती होगी घर पर मैय्या जी
कान्हा की तो आदत है, छल कर देगा
छल के बाहर ले आयेगी गैय्याजी


घर का रास्ता याद दिलाता
कान्हा भटकन दूर भगाता
जन्म जन्म से ढूंढें जिसको
चुटकी भर में वो ले आता


श्याम सुन्दर के साथ डगर पर
चलता जाऊं मौज में भर कर
जहां चलाये, चलता जाऊं
साँसों में श्रद्धा स्वर भर कर

अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
४ जुलाई १० की लिखिए कविता
२८ अक्टूबर २०१० को लोकार्पित

Wednesday, October 27, 2010

तुम पास होकर भी.....

 
कृष्ण
क्या तुम अब भी वृन्दावन में रास रचाते हो
कृष्ण
तुम एक साथ, कई युगों को कैसे अपनाते हो
कृष्ण
ये कैसे होता है कि  एक ही समय में तुम
अलग-अलग भक्तो को अलग-अलग लीलाएं दिखाते हो
कृष्ण
क्यूं होता है ऐसा कि तुम पास होकर भी
हमें पहचानने में नहीं आते हो
कृष्ण
क्या ये हमारी ही दृष्टि की गलती है या
तुम ही किसी कारण से अपने आपको छुपाते हो?
 
 
अशोक व्यास 
न्यूयार्क, अमेरिका




Monday, October 25, 2010

मगन अपनी पूर्णता मैं

                 (चित्र- ललित शाह)
 
सुनो कृष्ण
अब जान गयी हूँ
मुझसे मिलने 
नहीं आओगे तुम कभी
सब सखियाँ
बहलाती रही हैं मेरा मन
दे देकर झूठे आश्वासन
तुम्हारे मिलन की मधुरिमा वाली कथाएं
सुना सुना कर
मेरे पत्थर होते दिल को
फिर से पिघला कर
चांदनी में बहती नदी का रूप देकर
अब
जब विरह की कंदराओं में
एकाकी भटकने लगा है मन

ओ कृष्ण
ये क्या
तुम्हारे ना होने पर भी
लगता है
मेरी गति ही नहीं
मेरा रूप भी तुम हो
सुनो कृष्ण
मैं नहीं हूँ
तुम ही तुम हो
फिर क्या फर्क पड़ता है इससे
कि तुम आओ या ना आओ

सोच कर 
मुस्कुरा उठी हूँ
मगन अपनी पूर्णता मैं
वैसे
जान गयी हूँ
मुझसे मिलने
तुम नहीं आओगे कभी

अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका

Saturday, October 23, 2010

मित्र बना सारा जगत

 
कृष्ण नाम रस धार में
मधुर समन्वित राग,
शीतल मन का साथ है
मिट गयी सारी आग,
 
अनुपम प्रेम प्रसार है
श्री चरणों का सुमिरन
निश्छल मन करने लगे
कण कण का आलिंगन

अद्भुत तेरे नाम का
है ऐसा परताप
मित्र बना सारा जगत
सुने प्रेम आलाप 
 
 
अशोक व्यास 
न्यूयार्क, अमेरिका

Thursday, October 21, 2010


 
श्याम सुन्दर के द्वार पर
खड़े गोप और ग्वाल
जिसको जैसा चाहिए
मिला उसे वो माल

उसने देखा आँख भर
ठहर गया तब काल
तृप्ति के दो घूँट भर
हर कोई हुआ निहाल


अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका

Wednesday, October 20, 2010

तुम कालातीत हो यदि कृष्ण

वह माखन
जो बिखरा था
छींके पर टंगी मटकी से
बरसों पहले
अब तक
इतना ताज़ा बना है
वही निर्मलता, वही माधुर्य 
और शाश्वत मस्ती का स्वाद
अब तक
दे रही है 
तुम्हारी याद

तुम कालातीत हो यदि कृष्ण
तो क्या मुझ में भी है कुछ
कालजयी अंश 
जिससे सम्बन्ध हमारा
बना हुआ है निरंतर 
समय की हर सीढी लांघ कर 


अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका


Saturday, October 16, 2010

एक एक ने कान्हा को आवाज़ लगाई

 
कान्हा को पुकार लगाने की होड़ थी
सबने अपने अपने घर की छत पर
माखन की मटकी लगाई
और
एक एक ने कान्हा को आवाज़ लगाई
किसकी पुकार सबसे अच्छी है
ये जांच करने 
पंचों की एक टोली आयी
 और
सज-धज कर
 पुकार लगाने वालों के नाम
सर्वश्रेष्ट पुकारक की पदवी आयी 


दूसरे दिन
कान्हा का सन्देश आया
पुकार में सर्वोत्तम के लिए
उस छोटे से घर का नाम आया
जिस घर से
छत पर
कोई नहीं था आया

जिसने हृदय से पुकारा
वो ही कान्हा को सबसे अधिक भाया

अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका

Friday, October 15, 2010

अच्युत की आह्ट


 
 
गोप-ग्वाल के ठौर-ठिकाने जायेंगे
वृन्दावन में हम भी रसिया आयेंगे
मनमोहन को रिझा रहे, ये मानेंगे 
ऐसे अपने मन को सुख पहुंचाएंगे



श्याम सखा संग खेले जो जमुनातट पर
जिनकी गगरी फूट गयी थी पनघट पर
मौन बिछा कर बुला रहे हैं उन सबको
 जिनका ध्यान जमा अच्युत की आह्ट पर
 
 
अशोक व्यास 
न्यूयार्क, अमेरिका 
१५ अक्टूबर २०१० 
 
 


Thursday, October 14, 2010

kanha ka ghar

anand ujaagar kar kanha
muskay rahe
manthar- manthar,
ho rahaa mukhar
ab kan-kan mein
shashwat ka swar,
 
is leela par sab nyochhavar
man mera hai kanha ka ghar


ashok vyas
nyooyark, amerika
14 october 2010

Wednesday, October 13, 2010

प्रेम की रीत

रात दिवस
हर बात में
कृष्ण कृष्ण का गीत
सब जग
वृन्दावन हुआ
पग पग प्रेम की रीत 


अशोक 'व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका 
१३ अक्टूबर 2010

Tuesday, October 12, 2010

माखन चोर

 
जिस पल कान्हा प्रेम उमड़ आये मन में
निज आनंद प्रकट होवे घर-आंगन में

माखन चोर कहा कर भी वो राजी है
जिससे अतुलित वैभव आये जीवन में
अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
१२ अक्टूबर २०१०

Monday, October 11, 2010

मौन हुआ जाए है मन

 
कान्हा की बंशी धुन सुन कर
जिसको सुध अपनी रह पाई
उसे मिला बस सादा पानी
नहीं मिल सके दूध- मलाई


वैभव जो है
श्याम शरण का
उसका करना है वर्णन
मगर वहां की
झलक सुमिर कर
मौन हुआ जाए है मन


अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका 
११ अक्टूबर 2010

Sunday, October 10, 2010

कृपासिंधु हैं नटवर नागर

 
1
कान्हा की बतियाँ सुन-सुन कर
हुई बावरी सब सखियाँ
कान्हा का रास्ता देखे को 
नित्य सजग हो गयी अँखियाँ
श्याम शरण की प्यास उजागर
प्रेम से छलकी मन की गागर
मुस्का कर अपनापन ढोले
कृपासिंधु हैं नटवर नागर 
अशोक व्यास
१०-१०-१० 
न्यूयार्क, अमेरिका

Saturday, October 9, 2010

श्रेष्ठ को हो सब अर्पित


समय सारथी बने
बनूँ मैं पार्थ समर्पित
ऐसी दिशा बढूँ 
श्रेष्ठ को हो सब अर्पित

निष्ठावान शिष्य बन पाऊँ मैं गुरुवर का
मुखरित हो गुणगान सांस में परमेश्वर का


अशोक व्यास 
न्यूयार्क, अमेरिका 
१० जन २००७ को लिखी 
९ अक्टूबर २०१० को lokarpit

Friday, October 8, 2010

तुम नित्य मुखर


आनंद श्याम
नन्द नन्द श्याम

तुम नित्य मुखर
मन में होकर
तम हरते हो
सुख करते हो

यह प्रीत तुम्हारी है आधार
इस कृपा दृष्टि में सकल सार 
 
 
अशोक व्यास 
न्यूयार्क, अमेरिका 
२ जुलाई २००७ को लिखी 
८ अक्टूबर २०१० को लोकार्पित 

Thursday, October 7, 2010

मुखरित soul

 
बोल नहीं अनमोल चाहिए
तेरे भक्त का role चाहिए 

hole हटा कर शक-संशय के
साथ तेरा अब whole चाहिए 

याद, चाह, पाना तुझको ही
सतत सांस ये goal चाहिए 

छोड़ सतह की ड्रामेबाजी
हर पग मुखरित soul चाहिए 

सुमिरन खनके जिस सिक्के में
हर एक सांस वह toll चाहिए

अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
४ जनवरी २००६ को लिखी
७ अक्टूबर २०१० को लोकार्पित

Wednesday, October 6, 2010

लय अक्षय की

 
लय अक्षय की
बनी रहे
मन
ऐसा कर बर्ताव,
ऐसा पथ अपना 
जिस पर
कान्हा संग
बढे लगाव

अशोक व्यास
३ जनवरी २००६ को लिखी
६ अक्टूबर २०१० को लोकार्पित

Tuesday, October 5, 2010

राधे राधे श्याम मिला दे

 
राधे राधे
श्याम मिला दे
मुरली मनोहर 
कहाँ छुपे हैं
कहाँ प्रकट हैं
आज बता दे

शुद्ध करे जो
प्यास प्रेम की
श्याम मिलन की
आस जगा दे

राधे राधे
श्याम मिला दे
जीवन ना बीते
बिन सुमिरन
साँसों में वह
भाव सजा दे

तू तो माँ है
जग जननी है
छलिया मन को
चपत लगा दे

फिर फिर उतरे
सुमिरन सावन
उस छम छम से
मन हर्षा दे

राधे राधे 
श्याम मिला दे

२० मार्च २००९ को लिखी
५ अक्टूबर २०१० को लोकार्पित

Saturday, October 2, 2010

पाया निर्मल प्यार


कृष्ण रूप रस साथ ले
फिरा सकल संसार
जहाँ जिधर जब भी गया
पाया निर्मल प्यार

अशोक व्यास
२ अक्टूबर, २०१०
शिकागो


Friday, October 1, 2010

लक्ष्य शांति का


क्या संभव है
जागना, उठना और
शांति के लिए एक हो जाना?

पुरस्कार देते ह्रदय में
स्पंदन हैं जो
विराट के
उनकी छाप
रह रह कर
जगाती है लहर
और आस्था भी
कि
लक्ष्य शांति का
मुश्किल सही
असंभव नहीं


अशोक व्यास
(गांधीजी के जन्मदिन से पूर्व, आत्मबल की प्रेरणा देने वाले साबरमती के संत के स्मरण सहित)
अक्टूबर १, २०१०
न्यूयोर्क, अमेरिका

गौरव कान्हा का


लालन की मुस्कान से
रहे प्राण में प्राण,
कान्हा छवि के दरस से
हर मुश्किल आसान


कृष्ण छलाछल प्रेम बहाये
अंतर्मन तक को नहलाये
गौरव कान्हा का गाने को
रोम रोम में मस्ती छाये

अशोक व्यास
 १२ जुलाई २००४ को लिखी
१ अक्टूबर २०१० को लोकार्पित