Wednesday, January 21, 2015

जमुना तट



जमुना तट की बालू बन 
जाग्रत है अनुपम थिरकन 
कण-कण चिन्मय स्पंदन 
श्याम चरण सुमिरन पावन 

अहॉक व्यास २३ मार्च २०१४ 
न्यू जर्सी 

Tuesday, July 29, 2014

आलिंगन अनंत का


फूटती हैं 
मुक्त आभा की रश्मियाँ सी 
उसकी 
स्निग्ध तन्मयता से, 

गुदगुदा कर 
छवि सांवरे की,

भाव लहर पर तिरती 

कमलपुष्प पत्ती सी 

कर लेती वह 
आलिंगन अनंत का 

अशोक व्यास 
न्यूयार्क, अमेरिका 
जुलाई २०१४ 

Friday, February 15, 2013

रूप सुहाना श्याम का

 
 
रूप सुहाना श्याम का 
मधुर मुरलिया हाथ 
लुका छुप्पी खेलता, 
कान्हा सबके साथ 
2
 
राधा बरजोरी करे
 सखियों को ले साथ
कान्हा से कान्ही बने
आये ब्रज के नाथ 
 
3
 
होरी खेलन आ गयी 
गोपिन  गोकुल धाम 
प्रेम रंग की धार से 
भीग गए घनश्याम 
 
4
 
मंगल मोहन मधुमय सुमिरन 
मधुर भाव में नित्य मगन मन 
अमृत झरता उसकी छवि से 
जाग्रत सतत कृपा का सावन 
 
संबल श्याम चरण से पाया 
गीत मुक्ति का रसमय गुंजन 
 
 
अशोक व्यास 
न्यूयार्क  
बहुत बरस पुरानी रचना 
कम से कम 16 बरस पूर्व 
जयपुर में लिखे गए शब्द 
फटे-टूटे पृष्ठ पर सामने आये 
और सहेजने के साथ सम्प्रेषण हेतु 
कान्हा की कृपा से यहाँ तक पहुँच गए 
जय श्री कृष्ण
15 फरवरी 2013
वसंत पंचमी के दिन 
जय हो 

Wednesday, February 13, 2013

जय श्री कृष्ण








जय श्री कृष्ण

परमानंद उजागर करते 

गुरु गागर में सागर भरते 

सुमिरन रस अमृत बरसाते 

लीला नटवर नागर करते 

(30 नवम्बर 2012)


Saturday, November 26, 2011

His truth

So now
he readily gave up everything
nothing was in a position to tie him
nothing could restrict his movement
the joy of embracing infinite
was riding high
in his consciousness

this time
it felt like
he found his track
his train
and
his truth


Ashok Vyas
26 November 2011

Wednesday, October 19, 2011

बस कान्हा ही कान्हा है



नए सिरे से उसको थामने की चाह लेकर
इस बार
जब मैं
गोपियों के पीछे
छुपता छुपाता
कान्हा के दरस के लिए निकला
तो
एक गोपी ने मुझे देख लिया
'तू छुप छुप कर क्यों चल रहा है रे?'
मुझे पूछा
तो कोइ जवाब न था मेरे पास
दूसरी ने कहा
'इसे डर है हम इसे रोक न दें'
तीसरी बोली
'ये नहीं समझता की
इसे रोकने वाला ये खुद ही है'
चौथी ने कहा
'और ये भी देखो
सोचता है
कहीं पहुँच कर कान्हा मिलेगा
जबकी कान्हा तो यहीं है
हमारे साथ'
'पर दिखाई तो नहीं देता?' मैं बोल पड़ा
एक बुजुर्ग गोपी ने मुझ पर तरस खाकर कहा
'बेटा
कान्हा को तो मैंने भी कभी देखा नहीं
वो देखने का नहीं अनुभव करने वाला तत्त्व है
और अनुभव करने के लिए 
तुम्हें गोपियों से छुप कर
उनके पीछे नहीं
गोपी बन कर उनके साथ चलना होगा'

एक क्षण को मुझे लगा
'गोपियाँ हैं ही नहीं
बस कान्हा ही कान्हा है '



अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका               

Tuesday, October 18, 2011

सुन विराट के स्वर


दिल कहता है
सुन्दर मौन छिड़क 
सारी धरती को अपनाऊँ

स्पंदन जिसका
कण कण में
गीत उसी के दोहराऊँ

मुक्त सांस में
सुन विराट के स्वर
लहरों में मिल जाऊं

उसमें डूबूं
जिससे गहराई संग
ऊंचाई पाऊँ

धुप किनारे 
खड़ा देर से
किरण किरण उसको ध्याऊँ

कहना अब
इतना कान्हा से
कहे-सुने से तर जाऊं 

अशोक व्यास
१४ नवम्बर ९९