Monday, January 31, 2011

वो सिखलाये है सदा


मुरली वाले की कृपा
बरसे है दिन-रात
कैसे कर को छू सके
मैं खड़ा बाँध कर हाथ

दिव्य श्याम संगीत है
अनुपम हर एक बात
वो सिखलाये है सदा
बदल बदल हालात

सीख श्याम की ना सूनी
रोया जंगल जाय
फल खाना तो ना हुआ
मुझको हर पल खाय

अशोक व्यास
१० जून १९९८ को लिखी
३१ जनवरी २०११ को लोकार्पित

Sunday, January 30, 2011

मैं किसका अधिकारी

 
बात कौन सी
मैथ रही
मन को गोपीनाथ
क्या जाने
क्यूं छूटता
और सबर का हाथ


ऐसा है तूफ़ान सा
फेंकूं चीज़ें सारी
सब छोडूं और जान लूं
मैं किसका अधिकारी

मैं अर्जुन के साथ हूँ
या कुरुओं की ओर
दिशाहीनता साथ ले
जाऊं इस उस छोर

अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
३० जनवरी २०११
१ जून १९९८ को लिखी

Saturday, January 29, 2011

तेरी मुरली तान


"मैं" कैसा रच कर दिया
ओ प्यारे गोपाल
बदल रंग, छल कर रही
क्षण क्षण इसकी ताल

नहीं सुने है श्यामघन
तेरी मुरली तान
अपने हाथों कर रहा
संकट में निज प्राण

रोना है निस्सार ये
जान गया यदुवीर
फिर भी बढ़ता जाए है
ये आंसू का चीर

मेरा मैं है द्रौपदी
धरे इन्द्रियां दांव 
क्या कान्हा आये स्वयं 
ले आंसू की छाँव

अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
१ जून १९९८ को लिखी
२९ जंव २०११ को लोकार्पित

Friday, January 28, 2011

भूल तेरा विश्वास

 
हे ठाकुर
दाता मेरे
कैसा है ये श्राप
छोड़ ध्यान तेरा 
करूँ, रो रोकर संताप 
हे अच्युत
तेरी शरण
कैसे आऊं नाथ
मोह बंधा तड़पा करूँ
"मैं" मैं" "मैं' दिन रात
 
अंखियों में आंसू भरे 
मन ने खोया धीर
बिन तेरी शक्ति प्रभु
कैसे पहुंचूं तीर

ये कोलाहल पी रहा
मेरा सब विश्वास
मन का ऐसा हाल है
लगे चिढाती आस

ओ मोहन प्यारे प्रभु
मैं बना झूठ का दास
रोता हूँ बेकार में
भूल तेरा विश्वास

अशोक व्यास
१जून १९९८ को लिखी
२८ जनवरी २०११ को लोकार्पित


Thursday, January 27, 2011

मैं तुम्हें पहचान नहीं पाता


ये कौन है
जो लिख रहा है
किसी पागल बुढिया के पास
अपने खोये बेटे की बचपन की तस्वीर हो
और वो फूटपाथ पर 
चौराहे पर भटकती हो
ऐसा मेरा हाल है
ना जाने तुम कितने बड़े हो गये हो
भीतर की नगरी में
ना जाने तुम हो कहाँ

शायद जिस तस्वीर को लेकर
मैं तुम्हें ढूंढता हूँ
वो तुमसे मेल ही नहीं खाती
शायद तुम मेरे सामने से निकल गये हो
निकल रहे हो
और मैं तुम्हें पहचान नहीं पाता


अशोक व्यास
(२३ मई १९९८ को लिखी गयी एक लम्बी रचना
का अंश,
२७ जनवरी २०११ लोकार्पित 

Wednesday, January 26, 2011

छलके कान्हा का प्यार


श्री कृष्ण गोविन्द हरे मुरारी
हे नाथ नारायण वासुदेव

मधुर मधुर मुस्कान से
नयना करते बात
मैं तो बेसुध बावरी
जादू कान्हा के साथ

कृष्ण प्रेम की नाव में
सांस सांस का सार
मुस्काऊँ, कभी रो पडूँ
छलके कान्हा का प्यार

अशोक व्यास
१८ मई २०११
शिकागो, अमेरिका में लिखी
२६ जनवरी २०११ को न्यूयार्क से lokarpit

Tuesday, January 25, 2011

करूनासागर गिरिधारी




आओ श्याम
बैठो श्याम
मन मेरा
कर दो ब्रजधाम 
ऐसी कृपा
करो घनश्याम
संग तुम्हारा
हो अविराम

 करूनासागर गिरिधारी
  तमहारी, तुम दुःखहारी
दृष्टि प्रदाता, दारिद्र्य हरना
मधुसुदन, मंगलकारी 

अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
१५ मई १९९८ को लिखी
२५ जनवरी २०११ को लोकार्पित
 

Monday, January 24, 2011

मानस में अमृत प्रकटन

 
ध्यान की धारा
एक क्षण
क्षण क्षण
मानस में अमृत प्रकटन
धीरे धीरे उतरे है
सांवरे का कृपा रस
खुले आनंद
खिले असीम उल्लास सा

पग पग पर
उसके प्रेम का प्रताप
उसकी करूणा है नित्य साथ

अशोक व्यास
१७ मई १९९८ को लिखी
२४ जनवरी २०११ को लोकार्पित

Sunday, January 23, 2011

वाह गिरिधारी!


मेरा मौन जब जब
तुम्हारी गली आता है
मेरा कुछ रहता नहीं
सब तुम्हारा हो जाता है
और
यह बार बार जाना है
कि ध्येय बस तुम्हें पाना है 

जब मैं अधीर हो
तुम तक पहुँचने
तुमसे ही नाराज़ हो
रोता हूँ, रूठता हूँ
और फिर
मुझे मनाने का जिम्मा मुझे ही सौंप
मुस्कुराते हो तुम
वाह गिरिधारी!

१४ मई १९९८ को लिखी
२३ जनवरी २०११ को लोकार्पित 

Friday, January 21, 2011

ले श्याम प्रेम की तान


कान्हा कान्हा मन करे
लिए अमिट आभार
दौलत सब संसार की
मिले श्याम के द्वार

मन गोविन्द का नाम भज
छोड़ जगत का ध्यान
हर पथ हो जाये मधुर
ले श्याम प्रेम की तान

अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
१० मई १९९८ को लिखी
२१ जनवरी २०११ को लोकार्पित

Thursday, January 20, 2011

विश्वास का उत्सव मनाना

 
 
टिमटिम करती बाती
श्याम है साथी
खुशियों की पगड़ी
धड़कन इतराती

बाहर फुलवारी
सपनो की बारी
दुनिया की धमचक
अपनी है सारी

बस इतना रहे ध्यान
कहते करुनानिधान

"उत्साह बढ़ाना
उपलब्धि पाना
अपने विश्वास का
उत्सव मनाना

पर खुदको 
बिखरने से बचाना
और अन्दर का रास्ता 
भूल मत जाना"
 
अशोक व्यास 
न्यूयार्क, अमेरिका
२ अप्रैल १९९८ को लिखी
२० जनवरी २०११ को lokarpit

Wednesday, January 19, 2011

आनंद गुंजन होय


श्याम प्रेम नाटक करूँ
सांस श्याम चौखट धरूं
कृपा किरण जब छू गई
नित्य श्याम दरसन करूँ


प्रेम मगन होने चली
सुमिरन की खिलती काली
सारी दुनियां छोड़ कर
श्याम नाम खोने चली

कृष्ण दिलाये शांति
फिर तनाव धर देय
ऐसो कर वैसो करे
तब अपनों कर ले
 
४ 
कान्हाजी के रास का 
कैसे वर्णन होय
रमे सभी आलोक में
आनंद गुंजन होय


भाव नहीं, तन्मय नहीं
फिरता फिरूं फ़कीर
चलते चलते जय के
बैठूं जमुना तीर


प्रेम तिहारा साथ ले
पाऊँ चैन अथाह
तुझको गारी दे रहा
ले मिलने की चाह


रे केशव, क्या है सही
तुम ही जानो नाथ
चलता जाऊं हर गली
मैं तुमको माने साथ

जय श्री कृष्ण

९ मई १९९८ को लिखी
१९ जनवरी २०११ को लोकार्पित

Tuesday, January 18, 2011

वो कैसे मिलते अगर 'मैं' रह जाता




वह फिर फुस्स हो गया
बोला
ठाकुरजी मुझसे नहीं बनता
आप ही करो
हाथ पकड़ कर नदी पार करा दो
बाद में मैं देख लूँगा

ठाकुरजी मुस्कुराये
ऐसा काम मैं नहीं करता हूँ
मैं हूँ तो मैं ही मैं हूँ
पहले भी और बाद मैं भी
मंजूर हो तो हाथ मिलाओ

हाथ कौन मिलाता?
वो कैसे मिलते अगर 'मैं' रह जाता 
 
 
अशोक व्यास 
४ मई १९९८ को लिखी 
 
१८ जनवरी २०११ को लोकार्पित 

Monday, January 17, 2011

समूचा रस सागर

 
अहा!
बरसता है
अमृत सा
वह केशव
माधव
मुरलीधर
अपने कर से
बहा रहा
आशीष
कृपा 
करूणा
और
प्रेम अजब ये कैसा

एक बूँद भी तृप्त करे है
मगर
समूचा रस सागर भी यह
रखता है प्यासा कैसे?

अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
१ अप्रैल १९९८ को लिखी
१७ जनवरी २०११ को lokarpit

Sunday, January 16, 2011

परमतृप्ति का घूँट तो अब तू पिला मुझे

 
मधु सूदन की बात सुना कर लुभा मुझे
नन्द नंदन का साथ दिला कर रिझा मुझे

माँ तेरी तो बात मानता है कान्हा
कह ना उसको, संग में अपने खिला मुझे

पी पीकर फिर प्यासा होना बहुत हुआ
परमतृप्ति का घूँट तो अब तू पिला मुझे

नित्य श्याम सुमिरन का चस्का चाहूं मैं
अब ना भाये, और कोई सिलसिला मुझे
अशोक व्यास
अमेरिका 
रविवार, १६ जनवरी 2011
 

Saturday, January 15, 2011

कण कण में उसका विलास है



आज लगे
कुछ बात खास है
क्या कान्हा ही
आस पास है

आँख मिचोली खेल रहा है
कण कण में
उसका विलास है

जय श्री कृष्ण

अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
२४ मार्च १९९८ को लिखी
१५ जनवरी २०११ को lokarpit

Friday, January 14, 2011

अर्पण का यह सार निरंतर


लिख अनुरागी मन के किस्से
लिख पुलकित मन
श्याम का गौरव
चरण कमल
फैलाव निरंतर
अपनापन
केशव मुख सुन्दर
एक हुए 
जिस क्षण
उसका धन

लिख मोहन घनश्याम निरंतर
मांग मधुर मुरली वाले से
अर्पण का यह सार निरंतर

अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
२२ मार्च १९९८ को लिखी
१४ जनवरी २०११ को लोकार्पित

Thursday, January 13, 2011

मन चंचल, कान्हा भी चंचल

 
मैं कान्हा की
कान्हा मेरे
एक कृष्ण के
कितने डेरे
कृपा करे है
जब सांवरिया 
आये मिलने
तोड़े घेरे

सांझ सवेरे
कृष्ण नाम लूं
पल पल
अपने पी को थाम लूं
सारी दुनिया छोड़ हटूं मैं
अब तो केवल श्याम नाम लूं

आँखों में कितना सारा छल
कैसे दिखे मोहना निश्छल
मेरे मन से खूब पटे है
मन चंचल, कान्हा भी चंचल
 
 
अशोक व्यास 
न्यूयार्क, अमेरिका 
२१ मार्च १९९८ को लिखी 
१३ जनवरी २०११ को लोकार्पित 

Wednesday, January 12, 2011

हे कृष्ण!


हे कृष्ण!
काल की ताल संग 
सुन कृपा तुम्हारी
नृत्य करूँ ऐसा
जो हो पाये अनुरूप तुम्हारी चाहत के
हे कृष्ण
सांस स्वर चले 
बहे नित संग
तुम्हारा ध्यान
हों पूरे काम तुम्हारी चाहत के

अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका 
२६ मार्च २००६ को लिखी
१२ जनवरी २०११ को लोकार्पित










Tuesday, January 11, 2011

मन कान्हा का साथ निभाना



चल वसंत आया सखी
करें कृष्ण संग रास
नृत्य सजे हर सांस में
जब कृष्ण पिया हो पास


प्यार बढ़ाना, प्यार सिखाना 
मन कान्हा का साथ निभाना
रसमय, चिन्मय, करूणामय वह
उसके चरणों में रम जाना

अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
जन ८ और जन९, २००६ को लिखी
११ जनवरी २०११ को लोकार्पित

Monday, January 10, 2011

प्रेम गीत गाता फिरूं


आकर्षण बस कृष्ण का, और ना कोई खिंचाव
ले सुमिरन पतवार चल, बैठ कृपा की नाव

गोविन्द नाम सुना दिया, दिया जगत का कोष
कण कण है आनंद रस, क्षण-क्षण है संतोष

प्रेम गीत गाता फिरूं, श्याम दिसे चहुँ ओर
सब शीतल, उज्जवल करे, मन में ऐसी भोर


अशोक व्यास
५ जनवरी २००५ को लिही
१० जनवरी २०१० को लोकार्पित

Sunday, January 9, 2011

है कान्हा अपने साथ




श्याम सखा संग भागें-दौड़ें
माखन मिसरी खाएं
चरा चरा कर गौमाता को
सांझ ढले घर आयें
गोप सखा हम, नित्य प्रेम से
मगन रहें दिन-रात
सांस सांस हर्षित, पावन
है कान्हा अपने साथ

अशोक व्यास
५ जनवरी २००५ को लिखी
९ जनवरी २०११ को लोकार्पित

Saturday, January 8, 2011

मधुकर


मनमोहन, बस मन में नित करते लीला
हँस हँस कर, कस देते, जब मन हो ढीला
 
मधुकर तुम्हे कहा गोपियों ने गोपाला 
रसिक नाम का मधुकर मैं भी नंदलाला!
अशोक व्यास
२७ जनवरी २००६ को लिखी
८ जनवरी २०११ को लोकार्पित


Friday, January 7, 2011

गोपाला का गान मधुर है


श्याम सुन्दर मुस्कान मधुर है
मुरली की हर तान मधुर है
भक्ति की धारा से रसमय 
विरह ह्रदय आव्हान मधुर है 
 
गोपाला का गान मधुर है
दरसन का अनुमान मधुर है
उसकी करूणा से कण कण में
पावन करता ध्यान मधुर है
 

जय श्री कृष्ण
अशोक व्यास
७ जनवरी २०११

Thursday, January 6, 2011

सरल गोपी की तरह

 
बरसों बाद भी
नहीं मानता मन
कि
कविता में नहीं होता
श्याम का आगमन

विश्वास का माखन लेकर
शब्द की हांडी में 
आत्मीय छींके पर
लटका कर
सरल गोपी की तरह
करता हूँ प्रतीक्षा

इस बार 
शायद इस बार
वो ऐसे फोड़ेगा 
ये अहंकार की मटकिया 
कि
सारा जीवन 
माखन-माखन हो जाएगा 
 
कविता में
ये कैसी महीन आभा सी 
सतत श्रद्धा है 
श्याम आएगा 
बंशी सुनाएगा 
शब्द में से 
उसका होना 
दूर दूर तक 
आलोक फैलाएगा 
 
 
अशोक व्यास 
न्यूयार्क, अमेरिका 
६ जनवरी 2011

Wednesday, January 5, 2011

प्रेम पताका लिए हुए

 
प्रेम पताका
लिए हुए 
मैं बीच डगर के
आन खड़ा था,
मैं कान्हा का भक्त हो गया
इसका मुझको मान बड़ा था

आते जाते
लोग देख कर
झंडा मैंने फहराया
सबकी आँखों से 
लगता था
कोई देख नहीं पाया 
बड़ी देर में 
जान सका
छल करती थी मुझसे माया
मैं छोड़ पताका
दूर कहीं
बड़ 'मैं' का 'डंडा' संग लाया
 
अशोक व्यास 
न्यूयार्क, अमेरिका
२० मार्च १९९८ को लिखी
५ जनवरी २०११ को लोकार्पण
५ जनवरी २०११ को लोकार्पित परिमार्जन के साथ

Tuesday, January 4, 2011

श्याम दरस मिल जाए


बिन कान्हा कुछ भी नहीं
कान्हा से सब बात
प्रेम मगन चलती रहूँ
श्याम पिया के साथ

गोकुल में जो धेनु चराए
उसकी छवि से ठंडक आये
पनघट जाना सफल लगे है 
जब उसका दरसन मिल जाए

माखन छींके रख कर सोचूँ
हाय री कान्हा, आकर खाए
क्या हो, मुझे देख डर जाए
केशव की हर बात लुभाए

गोप सखा संग खेल रचाए
शाम ढले जब वन से आये
रेत उड़े गायों के खुर से
कण कण श्याममयी होजाए

याद है जब नंदलाल पधारे
यसुमती घर आये थे सारे
नन्हे कान्हा के नयनों से
घुल गये सारे पाप हमारे

मोहन मोहन करती जाऊं 
कब कान्हा का दरसन पाऊँ
वो मंडली के संग निकलता
पथ के बीच खड़ी रह जाऊं

अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
१९ मार्च १९९८ को लिखी
४ जनवरी २०११ को लोकार्पित

Monday, January 3, 2011

छवि श्याम की भक्त धरोहर


भर प्रेम प्याला ठाकुर संग
आनंद नहर चल पड़ी सखी
तन्मय थी वो, जग ये जाना
बिरहा में जल पड़ी सखी


अमृत सिन्धु श्याम मनोहर 
छवि श्याम की भक्त धरोहर

नन्दनंदन का क्रीडा कौतुक
पावन हो मन, नित्य श्रवण कर
 
 
१२ और १७ फरवरी २००६ को लिखी 
३ जनवरी २०११ को लोकार्पित

Sunday, January 2, 2011

जब अर्पण का श्रृंगार धरूं


सत्कार करूँ कान्हाजी का
मन मंदिर स्वच्छ बुहार करूँ
जग सारा हो जाए सुन्दर
जब अर्पण का श्रृंगार धरूं


अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
१२ अप्रैल २००६ को लिखी
२ जन २०११ लोकार्पण

Saturday, January 1, 2011

अमृतमय साँसों में ठहरी

 
आनंद मगन हुआ  अन्तर्मन
सुधि लिए चले यदुकुलनंदन
 
अमृतमय साँसों में ठहरी 
मुरलीधर की बांकी चितवन

कण कण आभा, क्षण क्षण पावन
 जाग्रत चिर प्रेम भरा सावन
 
अशोक व्यास 
न्यूयार्क, अमेरिका
२५ मार्च २००६ को लिखी
१ जन २०११ को लोकार्पित