Monday, May 31, 2010

दिव्य रस बरसे अनुपम


आनंद अनंत उछाल 
हँसे नंदलाल
मधुरतम ताल
सजा कर काल
संग गोपियाँ के
करें धमाल

दिव्य रस बरसे अनुपम
श्याममय हो जाएँ हम 
अशोक व्यास
१४ सितम्बर २००७ को लिखी
३१ मई २०१० को लोकार्पित

Thursday, May 27, 2010

ले प्रेम सांवरे गिरिधर का


मन मस्ती कान्हा से लेकर
तू आनंद, निर्मल शीतल पा

रे मन तज कर संकल्प सभी
तू चिर विराट का आँचल पा

उमड़े है हर्ष अपार अहा
तू सकल सृष्टि का मंगल गा

जिस नाम अभय और स्थिरता
वह श्याम नाम तू प्रतिपल गा

केशव के चरणों की रज से
वृन्दावन सा हर स्थल पा

कर पार सभी बाधा हँस कर
तू मनमोहन से संबल पा

ले प्रेम सांवरे गिरिधर का
पहचान, दिव्य है चंचलता

हर गति गहन गोपाल लाल
यह ध्यान, छुडावे व्याकुलता 

अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
२० अगस्त २००७ को लिखी
२७ मई २०१० को लोकार्पित

Wednesday, May 26, 2010

शरण वरण सौंदर्य दिखाए


श्याम प्रेम में जो रम जाए
 करुणा सिन्धु उसे अपनाए

मौन नगर में लेकर जाए
और कृपा का स्नान कराये

जन्म जन्म से संचित है जो
अहंकार वह दूर हटाये

निर्मल प्रेम उजागर करके
शरण वरण सौंदर्य दिखाए

दिव्य चेतना मुखरित होवे 
रोम रोम में श्याम समाये


अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
सुबह ८ बज कर ३५ मिनट
बुधवार, २६ मई २०१०

Tuesday, May 25, 2010

खुद पावन हो जा पहले


मुरलीधर गोपाल मनोहर
भोर भई, बाजे मंगला स्वर

श्याम मनोहर, जाग गए पर
धरे नहीं श्रृंगार
सेज छोड़ कर ना उतरे
मुस्काये बारम्बार

"कहो, करूं क्या?", पूछा तो बोले
मन से सब मैल उतार
खुद पावन हो जा पहले
फिर कर मेरा श्रृंगार


अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
अगस्त २९, २००७ को लिखी
२५ मई २०१० को लोकार्पित

Monday, May 24, 2010

उर कान्हा की छवि समाई



नित्य कृपा बरसे है आँगन
कान्हा की जय जय गाये मन

जय जय मंगल, शुभ घडी आयी
उर कान्हा की छवि समाई

अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
४ नवम्बर २००५ को लिखी
२४ मई २०१० को लोकार्पित

Sunday, May 23, 2010

मैय्या करती वारे न्यारे







प्यारा मनमोहन
सुमिरन सावन
ज्योतिर्मय है
मन का उपवन

सकल सृष्टि में प्रेम उजागर 
मुरलीधर है करुणा सागर 
बंशी ध्वनि सुन सारे जग में
छलक रहा है पावन निर्झर


दीप पर्व पर प्रेम पखारे
आये हम मैय्या के द्वारे 
शांति, प्रेम, श्रद्धा शाश्वत दे
मैय्या करती वारे न्यारे


अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
१ मई २००५ को लिखी
२३ मई २०१० को लोकार्पित

Saturday, May 22, 2010

केशव तुम नित्य निरंतर हो



लो साथ सभी सखियाँ
फिर से
मोहन की लीला सजा रही
एक सखी 
उठाये गोवर्धन
एक सखी बांसुरी बजा रही

केशव तुम नित्य निरंतर हो
कभी रसिया, कभी योगेश्वर हो
हे नाथ शरण अपनी देना
तव महिमा नित्य उजागर हो


अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
२४ अक्टूबर २००५ को लिखी
२२ मई २०१० को लोकार्पित

Friday, May 21, 2010

करूण कृपामय कानन कान्हा


वृन्दावन का कण- कण कान्हा
मेरा तो है तन मन कान्हा
घुटनों के बल चले मधुर वह
पायल पहने छन छन कान्हा

ज्योतिर्मय शोभा अति प्यारी
करूण कृपामय कानन कान्हा

एक मुस्कान लुटाये सब कुछ
वैभव परम, चरम धम कान्हा 

अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
२० अक्टूबर २००५ को लिखी
२१ मई २०१० को लोकार्पित

Thursday, May 20, 2010

गोविन्द माधव नाम उच्चार


गोविन्द आनंद नाम उच्चार
प्रेम मगन कर दिव्य पुकार

उज्जवल ज्योतिर्मय वृन्दावन
खिले प्रेम से सुन्दर हो मन

कृष्ण सुमिर पा जीवन सार
गोविन्द माधव नाम उच्चार 

अशोक व्यास 
१५ अक्टूबर २००५ को लिखी
२० मई २०१० को लोकार्पित

Wednesday, May 19, 2010

मगन तन्मय खड़ा केशव


उजाला धर मेरे हाथों
कहा कान्हा ने अब नाचो

लगा बंशी अधर अपने
कहा अमृतमयी नाचो

जगी मुस्कान की ज्योति 
मगन तन्मय खड़ा केशव

धरा माथे मेरे आनंद
कहे नयनों से, अब नाचो


अशोक व्यास
१४ अक्टूबर २००५ को लिखी
१९ मई २०१० को लोकार्पित

Tuesday, May 18, 2010

श्याम चरण रज माथ लगा


तेज धूप हो या बरखा
कान्हा मेरा नित्य सखा

मधुर कृपा रस पान करा
दिखलाई प्रभु दिव्य छटा

माखन मिसरी लुटा दिए
हर लीला से प्रेम बढ़ा

धन्य हो गया एक क्षण में
श्याम चरण रज माथ लगा 


अशोक व्यास
१२ अक्टूबर २००५ को लिखी
१८ मई २०१० को लोकार्पित

Monday, May 17, 2010

मन का शुद्ध भाव कान्हा है


कान्हा कान्हा कान्हा कान्हा
कान्हा अन्दर बाहर कान्हा
बोले कान्हा सुनता कान्हा
सांस सांस में गाये कान्हा

तन्मयता से देख जरा तो
मैं भी कान्हा तू भी कान्हा
खेल करे है तरह तरह के
मेरा प्रियतम प्यारा कान्हा

ध्यान संभाले ना संभाले जब
मक्खन हाथ चटाये कान्हा

गोवर्धनधारी है अद्भुत
हर संकट छुडवाये कान्हा
कभी अग्नि का पान करे है
कभी मगन मुस्काये कान्हा

मन का शुद्ध भाव कान्हा है
खेल करे, छुप जाए कान्हा

११ अक्टूबर २००५ को लिखी
१७ मई २०१० को लोकार्पित

Sunday, May 16, 2010

लीलारस बरसा कर


सांस सांस सुरभित सुन्दरतम
कान्हा की लीला संग हर दम
गोविन्द गुण गा शांत सखा मन
अमृत पथ पर साथ चलें हम 




कान्हा कान्हा कान्हा, मेरे मन बस जा
रोम रोम से गाऊँ तेरी मधुर कथा

लीलारस बरसा कर प्यारा अमृत सा
सुमिरन रस से हरते मेरी सकल व्यथा


अशोक व्यास
६ -७ अक्टूबर २००५ को लिखी 
१६ मई २०१० को लोकार्पित

Saturday, May 15, 2010

मेरे मन अपना घर कर



मंगल सुमिरन नाम श्याम का
तोहफा चिर विश्राम श्याम का

भक्तों का स्वागत करता है
परम प्रेम रस धाम श्याम का

केवल कृष्ण नाम रस पान
पा सकते हैं भक्त महान
बड़ी मिलावट हो जाती
करते हैं जब हम गुणगान


अपना प्रेम उजागर कर
इस नदिया को सागर कर
ओ गोकुलवासी कान्हा
मेरे मन अपना घर कर

अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
२-४ अक्टूबर २००५ को लिखी 
१५ मई २०१० को लोकार्पित

Friday, May 14, 2010

ज्योतिर्मय घनश्याम मनोहर


आनंद आनंद मधुर प्रेम स्वर
ज्योतिर्मय घनश्याम मनोहर

गाऊँ कान्हा, देखूं कान्हा
झूले झूला, राधा- कान्हा

कण कण में अमृत रत्नाकर
आनंद आनंद मधुर प्रेम स्वर


अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
३० सितम्बर 2005  को लिखी
१४ मई २०१० को लोकार्पित

Thursday, May 13, 2010

अपनेपन में बाँध मुक्त कर







अमृत कान्हा
अक्षत कान्हा
जीवन रसमय
स्वागत कान्हा


कर उद्धार श्याम करुणामय
बजा बांसुरी रिझा रहे
अपनेपन में बाँध मुक्त कर
लीला रस से भिगा रहे 

अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
२७सितम्बर २००५ को लिखी
१३ मई २०१० को लोकार्पित

Wednesday, May 12, 2010

समृद्धि प्रभु प्रेम की



कृष्ण नाम पूंजी लिए
फिरता तीनो लोक
प्रेम पवन की पालकी
नहीं कहीं पर रोक

समृद्धि प्रभु प्रेम की
जग आनंद अपार
सब में दिखे श्याम जी
यही सांस का सार

अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
२६ सितम्बर २००५
१२ मई २०१० को लोकार्पित 

Tuesday, May 11, 2010

श्याम नाम का जाप


मन मोहन संग जा बसूं
प्रेम शरण पतवार
कृपा करे कान्हा चले
नाव नदी के पार

ज्योतिर्मय मुस्कान प्रभु की
हर्षित है जग सारा
श्याम शरण से जागा
साँसों में उजियारा

कृष्ण नाम को थाम कर
पार करूं भव बंधन
मेरे मन के सारथि
कृपा नाथ यदुनंदन

प्रेम अमर जब पा लिया
फिर कैसा संताप
सहज हो रहा सांस में
श्याम नाम का जाप 


अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका


१९, २२ और २४ सितम्बर २००५ को लिखी
११ मई २०१० को संशोधन सहित लोकार्पित

Monday, May 10, 2010

छू लूं कान्हा के चरणों को



ठाकुर जी मुसकाय रहे
नयनों में दमके प्रेम सरस
आनंद लहर उमड़े अद्भुत 
देखे जब श्याम सुन्दर हँस हँस

वारि जाऊं मनमोहन की
बांकी चितवन कर रही तरल
छू लूं कान्हा के चरणों को
हो रहूँ यमुना मैय्या का जल 

अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
१७ सितम्बर २००५ को लिखी
१० मई २०१० को लोकार्पित

Sunday, May 9, 2010

श्री कृष्ण गोविन्द हरे मुरारी
हे नाथ नारायण वासुदेव

कान्हा मन भाये
भाये मन कान्हा
प्रेम पवन आये
गाये मन कान्हा

जीवन सुन्दर स्वपन कृपा का
सत्य करे सुमिरन कान्हा का
तन मन सुध जाए
कान्हा मन भाये 

अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
१३ सितम्बर २०१० को लिखी
९ मई २०१० को लोकार्पित

Saturday, May 8, 2010

दरस हिंडोले का


कृष्ण कृष्ण भज मन हुआ
स्वर्णिम आभावान 
जगमग शोभा श्याम के 
नित्य प्रेम की तान

गोकुलवासी कर रहे
दरस हिंडोले का
राधाजी कहने लगीं
दो झोंटा हौले सा 


अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
२ सितम्बर २००५ को लिखी
८ मई २०१० को लोकार्पित

Friday, May 7, 2010

सुमिरन का प्रण, कान्हा कान्हा


कान्हा कान्हा कान्हा कान्हा
गाये कण कण कान्हा कान्हा

प्रेम समर्पण मिले कृपा से
लाये क्षण क्षण कान्हा कान्हा

वही जगाये, वही निभाये
सुमिरन का प्रण, कान्हा कान्हा

अशोक व्यास
सितम्बर १, २००५ को लिखी
७ मई २०१० को लोकार्पित

Thursday, May 6, 2010

मन कृष्णमयी मोहे भाये


प्रेम मगन मन नंदलाल गुण
गा गा नित हर्षाये
 कृष्ण लल्ला की कृपा मलय
छू छूकर भाग्य जगाये

सकल सृष्टि का वैभव
कान्हा की दृष्टि से आये
कृतकृत्य हुआ
उल्लास पगा
मन कृष्णमयी मोहे भाये

अशोक व्यास 
३१ अगस्त २००५ को लिखी कविता
६ मई २०१० को लोकार्पित

Wednesday, May 5, 2010

चलूँ श्याम के धाम


जीवन, यौवन, दान, तप
सब कान्हा के नाम

सांस प्रेम रस, रंग के
चलूँ श्याम के धाम

प्रेम प्ररखने आ गयी
लीलावती सुजान

कहे प्राण तज कर बता
कहाँ श्याम स्थान

कहे बावरी गोपिका
तज कर सब अभिमान

तजने को कुछ भी नहीं
मेरे प्राण, श्याम के प्राण

अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
२६ अगस्त ०५ को लिखी 
बुधवार, ५ मई 2010

Tuesday, May 4, 2010

महक रहा री वृन्दावन


जाग्रत मन
कान्हा सुमिरन
अक्षय धन
अनुपम अपनापन

प्रेम प्रसार मधुर मनभावन
सुमिरन सौरभ लिए पवन
सकल सृष्टि का सार छुपाये
महक रहा री वृन्दावन

अशोक व्यास
२५ अगस्त ०५ को लिखी 
४ मई २०१० को लोकार्पित

Monday, May 3, 2010

गुणातीत घनश्याम


कुल गौरव यदुवंश के
कालातीत कृपाल
हर सीमा के पार नित
आभामय नंदलाल

करनी अपनी सौंप दी
श्रीनाथ के हाथ
करूं चाकरी प्रेम से
कान्हा की दिन रात

सांस सांस मोहन जपूँ
अमृत रस में स्नान
बलिहारी गुरु चरण की
मिला श्याम का ध्यान

कृष्ण बजाई बांसुरी 
गए कंस के धाम
देखें एकटक गोपियाँ
गुणातीत घनश्याम

अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
२२ अगस्त २००५ को लिखी
३ मई २०१० को लोकार्पित

Sunday, May 2, 2010

प्रेम नृत्य है सांस में


कृष्ण प्रेम की लौ लगी
सब कल्मष हुए शेष
परमानन्द प्रकाश से 
भस्म हुए दुःख क्लेश

श्याम हो गया पाहुना
घर है स्वर्ग सामान
प्रेम नृत्य है सांस में
कण कण ज्योति सनान

करूं बडाई श्याम की
दीप दरस आदित्य
शब्द सुमन उसको धरूं
जिससे सब साहित्य

बजा प्रेम डंका, सुने, 
बिरला मनुज सुजान
अमृत स्वर के श्रवण को
कर्ण बने खुद ध्यान

अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
२० अगस्त २००५ को लिखी
२ मई २०१० को लोकार्पित

Saturday, May 1, 2010

घर-आँगन उजियारा अनुपम


ताल तरंगित प्रेम उजागर
धड़कन धड़कन नटवर नागर

लहर आनंदित उमड़े बरबस
रोम रोम गाये कान्हा यश

घर-आँगन उजियारा अनुपम
गूंजी कृष्ण कृपा की सरगम

जय हो, जय श्री कृष्ण

अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
१८ अगस्त २००५ को लिखी पंक्तियाँ
१ मई २०१० को लोकार्पित