Wednesday, March 31, 2010

भई राधा ही मोहन



कान्हा मुख मुस्कान मधुर
मिसरी की धेली
भाग रही राधा, कर कान्हा
बंशी ले ली

तान छेड़ कर बांधे
राधा को मनमोहन
तन्मयता जगी, तो
 भई राधा ही मोहन

१२ मई २०१० को लिखी
मार्च ३१, २०१० को लोकार्पित

Tuesday, March 30, 2010

बड़ा विलक्षण योग


खेल कर्म के खेल तू
बोले कृष्ण सुजान
करूं समन्वित जग सकल
रख बस मुझ पर ध्यान

आये जाए प्रेम से
हर घटना की छाप
रटूं रात-दिन नेम से
कृष्ण नाम का जाप

चल अपना बिस्तर उठा 
कहे सूर्य का ताप
भज उसको, जिससे मिटे
दुःख-शोक, संताप

बिरह बाण घायल नहीं 
मन हो गया निरोग
श्याम मिलन की प्यास भी
बड़ा विलक्षण योग


अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
११ मई २००५ को लिखी
३० मार्च २०१० को लोकार्पित

Monday, March 29, 2010

नयन श्याम के


अनुपम श्याम स्वरुप है
पर मन तहां ना जाय
वानर बन कूदे बहुत
बड़ी गुलाची खाय

मन सेवा में से दूर हो 
श्याम रूप बिसराय
माखन खाए मौज में
जब श्याम नाम गुन गाय

जिस मेले माया मिले
उस मेले रम जाए
मन प्यारा मोहन जहां
वहां पहुँच ना पाए

नयन श्याम के देख कर
सरपट दौड़ा जाऊं
जाय मिलूँ घनश्याम से
कहीं और ना पकड़ा जाऊं


अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
१० मई २००५ को लिखी
२९ मार्च २०१० को लोकार्पित

Sunday, March 28, 2010

वो अद्भुत आनंद राशी है


(रणछोड़ दासजी, डाकोर, गुजरात)


श्याम मनोहर मुरली धर
कान्हा मधुबन के वासी हैं
शाश्वत सुरभित सुमिरन उनका
वो अद्भुत आनंद राशी है

कहना का कर थाम 
चलो
अंधियारा भी पथ दरसाए
पानी में मिल रहा दूध भी 
 हंस दृष्टि से छन जाए


अशोक व्यास 
न्यूयार्क, अमेरिका
२६ मई २००५ को लिखी पंक्तियाँ
२८ मार्च २०१० को लोकार्पित

Thursday, March 25, 2010

चल कर उसके द्वार



उत्तम है वह नाम जो
करे प्रेम संचार
कृष्ण सुमिर कर भाव से
दिखे सृष्टि का सार

दरस प्रेम से श्याम का
करे जो नर एक बार
रोम रोम निस दिन बहे
शुद्ध अनाविल प्यार

रे मन कर ले चाकरी
चल कर उसके द्वार
जिसका सुमिरन कर रहा
अमृत की बौछार

गोकुलवासी मोहना
माखनचोर कहाए
जो भी उसके संग हो
सो भी माखन पाए


अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
२३ मई ०५ को लिखी
२५ मार्च २०१० को लोकार्पित

Wednesday, March 24, 2010


लिख घनश्याम प्रेम सरिता पथ
ले हरी कथा श्रवण पावन व्रत

गा आनंद अपार उजागर
रत्न लुटाते करुणा सागर 
लिख उसको नित प्रेम भरे ख़त
ले हरी कथा श्रवण पावन व्रत

२ 
अद्भुत लीला के दरस
अनुपम वैभव धाम
सारे धन से अधिकतम
सुमिरन रस घनश्याम


अशोक व्यास
१८ और २० मई २००५ को लिखी पंक्तियाँ
२४ मार्च २०१० को लोकार्पित 

Tuesday, March 23, 2010

संग धरा के झूमे अम्बर



आनंद आनंद आनंद आनंद
कृपा सरोवर, वृन्दावन धन

रास रचाए है मुरलीधर 
संग धरा के झूमे अम्बर 
घूम घूम कर एक हुए सब
बाजी कान्हा की मुरली जब

गोवर्धन धारी की लीला
कण कण उतरा प्रेम रसीला

धन्य गोपजन, सब पर वारि
जमुनाजी की बलिहारी

श्री वल्लभ विट्ठल गिरिधारी
श्री यमुना जी की बलिहारी


अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
१७ अरी ०५ को लिखी पन्तियाँ
२३ मार्च २०१० को लोकार्पित

Monday, March 22, 2010

उसका सुमिरन, भाव मधुरतम

सेवा ही मेवा, धन्य कृष्णदेवा

बैठ सखा कान्हा के
खेल रचाए कितने सारे
बार बार मन में जाग्रत हैं
वो क्षण प्यारे प्यारे

कभी गुदगुदी
कभी गलबहि
कभी धौल-धप्पी संग चहके
वृन्दावन के
पत्ते पुलकित
झूम रहे ज्यों, रह रह के

फिर कान्हा ने
अधर बांसुरी
ऐसी तान सुनाई
सकल सृष्टि में
हम सब को
बस कान्हा दिया दिखाई

वही पवन है, वही गगन है,
वही धरा, जल और अगन
श्याम सखा के संग
हो गए, सकल गोपजन, मस्त-मगन

प्रीत श्याम की अमृत अनुपम
उसका सुमिरन, भाव मधुरतम

जय जय जय कान्हा की गाऊं
परमानंद जगाऊँ
उसके लीला रस में खोकर
सारा जग पा जाऊं


अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
१६ मारी ०५ को लिखी
२२ मार्च २०१० को लोकार्पित

Sunday, March 21, 2010

100-यदुकुल नाथ दयाल


१ 

चल अपना सपना सत्य करें
हम मनमोहन संग नृत्य करें
ये काम क्षुधा से पीड़ित मन
ले कृष्ण नाम कृतकृत्य करें 
 (रविवार,२१ मार्च २०१० )
२ 
नित्य श्याम का नाम ले
श्याम प्रीत पथ पाय
लीन प्रेम में हो मगन
सकल जगत अपनाय

मन की रंगत बदलते 
यदुकुल नाथ दयाल
कृपा बदरिया बरसती
सेवक हुआ निहाल 


अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
(मई ५, २००५ को लिखी पंक्तियाँ
२१ मार्च २०१० को लोकार्पित)

Saturday, March 20, 2010

99-कृष्ण नाम से उजियारा


कृष्ण नाम से उजियारा
आनंद प्रेम का
धन्य हुआ
अब फिर फूटे फव्वारा
आनंद प्रेम का
धन्य हुआ
श्याम कृपा से जग सारा 
आनंद प्रेम का
धन्य हुआ


मन शांत, अचंचल
मधुर भक्तिरस पान करे
मन मोहन की
बांकी चितवन का ध्यान धरे 
हो कृत्य कृत्य
 अमृतसिन्धु में स्नान करे


अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
२ मई 2005 को लिखी
कुछ संशोधन सहित
२० मार्च २०१० को लोकार्पित

Friday, March 19, 2010

98-सब ठाकुर का खेल है


सब ठाकुर का खेल है
भूले है यह बात
'मैं' से 'मैं' की दौड़ में
रमा रहूँ दिन रात


धूप गयी, बादल घने
छाया दिन अंधियार
नाम श्याम ले संग में
चलो करें उजियार

जो बीती, सो लौटती
मन में बारम्बार
श्याम गया सो आयेगा
करते रहो पुकार



अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
माय १, २००५ को लिखी पंक्तियाँ
मार्च १९, २०१० को लोकार्पित

Thursday, March 18, 2010

97-हर एक बात है श्याम


कृष्ण प्रेम के आसरे
पार करूं जंजाल
हर एक ताल से मधुर है
कृष्ण प्रेम की ताल

भक्ति दुर्लभ है सखी
दुर्लभ कृष्ण का नाम
वो तो नित बैकुंठ है
जो लेवे अविराम

प्रेम आनंद घनश्याम है
श्याम प्रचुर अवकाश
धीरज धर स्थान दे
हर अनुभव को आकाश

कृपा रूप हर बात है
इसी भाव को थाम
मन में जब कृतकृत्यता
हर एक बात है श्याम

अशोक व्यास 
न्यूयार्क, अमेरिका
अप्रैल ३०, 2010

Wednesday, March 17, 2010

आनंदामृत वितरित करता श्याम सखा



आनंदामृत वितरित करता श्याम सखा
दृष्टि मात्र से प्रमुदित करता श्याम सखा

धन्य प्रेम कान्हा का पाकर वनवासी
मध्य क्रिया के लगता चिर विश्राम सखा

अपनी हालत कहूं क्षितिज से ही जाकर
धरा-गगन का मिलन कराये श्याम सखा

अब भी आने वाले, नाव चले आओ
बन बैठा मल्लाह, नाव में श्याम सखा

नदी पर जाने का खेल सुहाता है
वरना दोनों पार बसा बस श्याम सखा

बैठ नाव में, आँख लगी, तो ये देखा
सृष्टि मुझ में करके खेले श्याम सखा




अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
२५ अप्रैल २००५ को उतरी पंक्तियाँ
१७ मार्च २०१० को लोकार्पित

Tuesday, March 16, 2010

95-तोरे साथ कन्हाई,


बात करूं मैं कृष्ण की
या अपना संकट गान
समय अल्प है जान कर
लूं कान्हा की तान


मंगलकारी है नटवर
पर बहुत खिझाये मन को
छुप जाए छवि दिखला कर
ओझल कर अपनेपन को


कभी बुलाये प्रेम सरोवर
कभी कामना ताल
बूझ ना पाऊँ मैं सखी
कभी कृष्ण की चाल

जैसा भी है
ब्याह दिया मन
तोरे साथ कन्हाई,
गूँज रही है 
पग पग पर अब 
सुमिरन की शहनाई

अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
२१ अप्रैल २००५ को लिखी
१६ मार्च २०१० को संशोधन के साथ लोकार्पित

Monday, March 15, 2010

94 - केशव चन्दन महक है



मुरली वाले की कृपा
बैठा अद्भुत यान,
दरसन मैय्या के हुए
उजियारे में स्नान,

बाँध कर्म की पोटली 
दी कान्हा के हाथ
कर सेवा की कामना
फिर फैलाए हाथ

केशव चन्दन महक है
मन रेंगे ज्यूं सर्प
लिपट श्याम से मस्त हो 
मिटे मोह और दर्प


अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
१५ मार्च २०१० को लोकार्पित
लिखी गयी १८ अप्रैल २००५ को

Sunday, March 14, 2010

93-कृष्ण प्रेम रस स्नान

संकेत दिया कान्हा ने आज
अपेक्षा जनित बेचैनी का इलाज़

जहाँ, जो भी मिले अवसर
उसे श्याम कृपा का फल मान कर

जिस भी मनुष्य के साथ हो आदान प्रदान
उसे कृष्ण का ही एक रूप ले जान

जो कुछ भी हो अपना योगदान
उसे कृष्ण भगवान् की सेवा जान


बस इस तरह बढ़ती रहेगी आनंद की खान
नहीं रुक पायेगी प्रेम प्रवाह की अतुलित शान

रसमयता कान्हा की लीलाओं की 
सदा रहेगी ध्यान
ना अपेक्षा, ना शिकायत,
जिव्हा कर तू कृष्ण प्रेम रस स्नान
ना पछतावा, ना उलाहना 
मन कर तू कृष्ण प्रेम रस स्नान



अशोक व्यास 
न्यूयार्क, अमेरिका
१२ अप्रैल ०५ को लिखी
१४ मार्च २०१० को लोकार्पित

Saturday, March 13, 2010

92- श्याम मेरे मैं हुई श्याम की


अमृतमयी उजाला आये
देख द्वार सब खोल 
रसमय तन्मयता लिए
मन कान्हा कान्हा बोल

जय जय गिरिधारी कहूं
शरण श्याम की पाई
मात यशोदा आ गयी
माखन का लौदा लाई 
खाए श्याम
मुस्काये श्याम
मन मंदिर
पधराये श्याम

झूला झूले, नाचे दौड़े, ग्वाल सखा संग
धेनु चराए
मन उपवन में वृन्दावन रच मुरली
श्याम बजाये

सुध बुध छोड़, श्याम की हो लूं
श्याम बिना कछु, और ना बोलूँ

श्याम मेरे मैं हुई श्याम की
धन्य भाग्य, उत्तम घड़ी आई
जय जय गिरिधारी कहूं
शरण श्याम की पाई


अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
२९ मार्च २००५ को लिखी 
मार्च 13, २०१० को लोकार्पित

Friday, March 12, 2010

निज अमृत स्नान

(पूज्य स्वामी श्री ईश्वरानंद गिरिजी महाराज, शिवरात्रि पर शोभा यात्रा (२०१०), आबू पर्वत,  चित्र - अभय हर्ष)

दिव्य सुधारस पान कराओ
अपना गौरव गान कराओ

गुरुवर कृपादृष्टि बरसा कर
नित निज अमृत स्नान कराओ

चिंतन हो गौरवमय, उज्जवल 
भक्ति सुधा से मन हो निश्छल

हर मुश्किल आसान कराओ
दिव्य सुधा रस पान कराओ

अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
२६ मार्च ०५ को लिखी
१२ मार्च २०१० को लोकार्पित

Thursday, March 11, 2010

प्रेम पोटली


कर कान्हा की चाकरी
मन प्यारे अविराम
काम कहे तो श्याम है
श्याम ही है निष्काम

प्रेम पोटली बाँध मत
खोल आनंद अपार
घूम झूम चहुँओर मन
कृष्ण नाम उच्चार

बोये क्या सो काटना
है इतनी सी बात
मिले शुद्ध पावन परम
श्याम नाम के साथ


अशोक व्यास 
न्यूयार्क, अमेरिका
सुबह ७ बज आकर ४० मिनट
गुरुवार, मार्च ११. 2010

Wednesday, March 10, 2010

89मनमोहन की बांसुरी

कर्म रूप में श्यामजी
दीखते कैसे आप
मन को छलता जाए है
क्रियायुक्त आलाप


श्याम रूप संग में सखी
कैसे रहे, बता
काम-काज में जब लागून
भूलूँ, श्याम पता


मनमोहन की बांसुरी
और प्रेम की प्यास
जंगल आ बैठी सखी
साथ लिए विश्वास

वो कब आये इस डगर
सोच सोच कई बार
अब सब उस पर छोड़ कर
थामा सुमिरन तार


अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
२४ मार्च ०५ को लिखी
१० मार्च २०१० को लोकार्पित

Tuesday, March 9, 2010

88 मन का नहीं पता

आता है आ 
ना भी आ
नाम तेरा है साथ
पत्ती पत्ती
से करूं
कान्हा तेरी बात

रस तेरी लीला कथा
रस है तेरा नाम
सच कहते हैं सांवरे
रसिया है तू श्याम

श्याम नाम रस से सखी
पहुँची जमुना तीर
भोग चढाऊं श्याम को
हलुआ, पूरी, खीर

नन्हा कान्हा पूछता
माखन कहाँ बता
मन में रख भूली कहीं
मन का नहीं पता

अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका२४ मार्च ०५ को लिखी
९ मार्च २०१० को लोकार्पित 

Monday, March 8, 2010

87- चल कान्हा के मिलन को


कृष्ण मधुर मुस्कान ले
हर लेते हर पीड़ा
जीवन बन जाए सरस
कृष्ण प्रेम की क्रीडा


कृष्ण सुनाये बांसुरी
कृष्ण जगाये राग
गिरिधर जल रोके कभी
कभी भगाए आग


रक्षक सो ही जानिए
जो बदले रूप हज़ार
कभी सागर, नदिया कभी
कभी नाव-पतवार


चल कान्हा के मिलन को
छोड़ें जगत बाज़ार
बिकें श्याम के नाम पे
प्यार लिए, दें प्यार


अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
१३ और १५ मार्च ०५ को लिखी
८ मार्च २०१० को लोकार्पित 

Sunday, March 7, 2010

86-हर दिशा प्रेमरस छलकाए



आनंद सुधारस बरसाते
कान्हा पथ पावन कर जाते

बंशी स्वर में अलोक नया
चलना रुकना सब एक हुआ

हर दिशा प्रेमरस छलकाए 
यह स्वर्णिम मौन स्वयम आये

मन कोयल, कूके कृष्ण कृष्ण
तन्मय है कण-कण, कृष्ण कृष्ण

अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
१२ मार्च ०५ को लिखी
७ मार्च २०१० को लोकार्पित

Saturday, March 6, 2010

जीवन का आधार

कान्हा कान्हा कर सखी
मन में आये चैन
आँख खोल जब ना दिखे
बंद कर लिए नैन

कान्हा नित ह्रदय बसे
सखी ऐसा गुर सिखलाये
कहना सुनना छोड़ कर
नित गोविन्द गोविन्द गाये

मेरे भीतर नित्य है
जीवन का आधार
साथ उसी के खेल कर
सांस करे श्रृंगार 



अशोक व्यास 
न्यूयार्क, अमेरिका 
२१ फरवरी ०५ को लिखी 
६ मार्च २०१० को लोकार्पित 

Friday, March 5, 2010

84- लेकर तेरा नाम


कृष्ण नाम पालन करे
हरे ताप और पाप,
एक काज कर मन सदा
श्याम नाम का जाप,


अमृत सी मुस्कान से
कितना प्रेम लुटाय,
दर, दुविधा व्यापे नहीं 
नित कान्हा करे सहाय

विनती है कर जोरी के
ओ मेरे घनश्याम
सांस लहर तिरता रहूँ
लेकर तेरा नाम


अशोक व्यास
२० फरवरी ०५ को लिखी
५ मार्च २०१० को लोकार्पित

Thursday, March 4, 2010

83 - जिस पथ प्रेमी कृष्ण के


धर्म- कर्म का ज्ञान हो
भक्ति से श्रीमान,
मेरे पथ, पाथेय सब
यदुपति कृपानिधान

कृष्ण प्रेम की आस है
सतसंगत की नाव,
नाम बड़ा मीठा लगे
गुरु कृपा की छाँव

प्रेम श्याम का मिल गया
और ना दूजी चाह 
जिस पथ प्रेमी कृष्ण के
वो ही अपनी राह 


अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
१९ फरवरी ०५ को लिखी
४ मार्च २०१० को लोकार्पित

Wednesday, March 3, 2010

82- पग पग उसकी ताल



१ 

हर हर गंगे 
यमुना मैय्या 
कृपा नदी है
करुणा गैय्या 

मुरली स्वर से 
पुलकित करते 
धन्य कर रहे 
कृष्ण कन्हैय्या 

२ 

कान्हा का सब खेल है
कान्हा की सब चाल
हर एक मोड़ उसका नगर
पग पग उसकी ताल

कर कान्हा के काज में
मन नित जमुना तीर
हर संकट घटता गया
बढा द्रोपदी चीर


अशोक व्यास 
न्यूयार्क, अमेरिका
फरवरी १७ और १८, २००५ को लिखी
मार्च ३, २०१० को लोकार्पित

Tuesday, March 2, 2010

81 प्रेम नदी में स्नान

कृष्ण धाम चल री सखी
वहां मिलेंगे श्याम
व्याकुल नयनों को सखी
वहीं मिले विश्राम

केशव कर मुरली सजे
मुरली स्वर हैं प्राण
बडभागी है वह मनुज
जिसे कृष्ण का ध्यान

मौन तोड़ कर बोलते वृक्ष
पवन संग आज
बजा किसी के ह्रदय में
कृष्ण प्रेम का साज

चित्त चंचल, शीतल हुआ
प्रेम नदी में स्नान
मधुर करें हर एक क्षण
मेरे कृष्ण भगवान्


अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
१६ फरवरी ०५ को लिखित
२ मार्च २०१० को लोकार्पित

Monday, March 1, 2010

80 - संग खेल रहा नटवर नागर



श्री कृष्ण चन्द्र मुस्कान छटा
मन मगन मस्त
थिरके नाचे
आनंदामृत घन बरस रहे
पुण्य कोटि जन्मों के
 जागे

मुरलीधर, मोर मुकुट धारी
कान्हा पर हूँ वारि वारि
वो मुग्ध हँसे प्रेमी जन पर
हंस हंस सुनली गोपी गाही

चल हुलस हुलस
जीवन सुन्दर
संग खेल रहा
नटवर नागर

जय श्री कृष्ण

१५ फरवरी ०५ को श्यामार्पित 
१ मार्च २०१० को लोकार्पित