Sunday, February 28, 2010

रस की पिचकारी

                                          (होली के उत्सव पर श्रद्धा और प्रेम के रंगों सहित बधाइयाँ)

 आनंदकंद मनमोहन संग
झूला झूले
राधा प्यारी,

चले मधुर पवन 
कोयल बोले, बदली से
रस की पिचकारी 
हो मगन श्याम के ध्यान सखी 
मैं तब जीती
जब जग हारी

अशोक व्यास 
२६ जनवरी ०५ को श्यामार्पित
२८ फरवरी १० को लोकार्पित

Saturday, February 27, 2010

78 - है जहां प्रेम की प्यास वहाँ

१ 
मुस्कात श्याम छवि मन मोरे
आनंद अपार खिले अद्भुत
कान्हा की प्रीत उजागर हो
लागे वसंत सी हर एक रुत


वो जब देखे मुसकाय सखी
सुध बुध बिसरे, अच्छा लागे
ज्ञानीजन कहते जग मिथ्या
मोहे एक एक कण, सच्चा लागे

चहुँ ओर श्याम के दरस करूँ
हर सांस सखी मैं सरस करूँ
है जहां प्रेम की प्यास वहाँ
बन श्याम बदरिया बरस पडूँ

अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
२७ फरवरी १०
शनिवार, सुबह १० बज कर २४ मिनट

Friday, February 26, 2010

77 अमृत पथ

कृष्ण बड़े गंभीर दिखे
मुख पर 'गुरु रूप' दिखाई दिया

मुस्कान किरण फूटी नन्ही
अमृत पथ शब्द सुनाई दिया

केशव करुणामय बोल गए
भावबंधन सारे खोल गए

वो मुख कान्हा का ही तो था
जिसमें जग सकल दिखाई दिया


 
अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
२४ जनवरी ०५ को श्यामार्पित
२६ फरवरी १० को लोकार्पित

Thursday, February 25, 2010

माधव मुरलीधर गिरिधर


कर बात श्याम से प्रेम भरी
आनंद उजागर हो पल पल

हर बार बुला कर, भर माखन
खाए बिखराए वो चंचल

मिसरी की डली से रिझा लिया
मोहन को अंक से लगा लिया

माधव मुरलीधर गिरिधर को
अब रोम-रोम में जगा लिया

अशोक व्यास 
न्यूयार्क, अमेरिका
२१ जनवरी ०५ को श्यामार्पित 
२५ फरवरी १० को लोकार्पित

Wednesday, February 24, 2010

बस तेरा हो गुणगान


नित्य तुम्हारी सेवा होवे
नित्य तुम्हारा संग

पक्काम्पक्का लगा रहे
मोरे मन पर तोरा रंग

और ना दूजा रंग चढ़े
बस तेरा हो गुणगान

करूं नित्य तेरे किरपा से
लीला रस का पान

अशोक व्यास 
२१ दिसंबर ०४ को लिखी
२४ फरवरी १० को लोकार्पित

Tuesday, February 23, 2010

कृपा तुम्हारी तारे कान्हा


क्षण क्षण अमृतपान करूं मैं
तव महिमा का गान करूं मैं

जिससे सुख दुःख आते जाते
उस अनंत का ध्यान धरूं मैं

कृपा तुम्हारी तारे कान्हा
सुमिरन रस में स्नान करूं मैं


अशोक व्यास
३० दिसंबर ०४ को लिखी
२३ फरवरी २०१० को लोकार्पित

Monday, February 22, 2010

माँ तेरी महिमा गानी है


मन आनंदित आश्वस्त अटल
माँ करे कृपा, देती संबल

जब उसकी गोदी मिली मुझे
बिन मांगे पाया, जगत सकल

माँ प्रेम सुधा बरसाए है
रक्षा करता शाश्वत अंचल

माँ तेरी महिमा गानी है
देना पथ सृजनशील उज्जवल

२६ सितम्बर ०६ को लिखी 
२२ फरवरी २०१० को लोकार्पित

Sunday, February 21, 2010

अब श्याम रिझाऊँ

मन मस्त मलंग उड़ान अनंत उजागर
संग खेल रहे हैं, बोले नटवर नागर
मन मस्त मलंग उड़ान अनंत उजागर
संग खेल रहे हैं सचमुच नटवर नागर

अब खेल सजाऊँ नयी तरह से सारा
अब श्याम रिझाऊँ, नित्य प्रेम की धारा

करुणामय कृष्ण बिन कहे मगन मुस्काये
उनकी चितवन से परम तृप्ति उर आये

मन गोविन्द गोविन्द नित्य करो उच्चार
यूँ बना रहेगा मन मोहन से प्यार


अशोक व्यास 
न्यूयार्क, अमेरिका

२७ सितम्बर ०६ को लिखी
२१ फरवरी १० को लोकार्पित

Saturday, February 20, 2010

संग कान्हा के चलने की कर ली तैय्यारी

संग कान्हा के चलने की कर ली तैय्यारी
थकी बात तक, ऊंघ गयी गोपी बेचारी

इसी बीच चुप चाप चले आये बनवारी
सपने में जब, श्याम प्रभु ने चुटकी मारी

जागी खिसिया कर, घूंघट पट लिए पुकारी
कब से बैठी बात जोहती कृष्ण मुरारी

कान्हा बोले, सुनो ध्यान से बात हमारी
बाट देखते सो सोकर जो, नहीं संग के वो अधिकारी


अशोक व्यास 
न्यूयार्क, अमेरिका
२० सितम्बर ०६ को लिखी
१९ फरवरी २०१० को लोकार्पित

Friday, February 19, 2010

श्याम चरण रज ह्रदय लगा कर


मन आनंद अपार उजागर 
बंशी बजाये नटवर नागर 

बहे कलुष-तम, शुद्ध हुआ मन
श्याम चरण रज ह्रदय लगा कर 

२ 

प्रकट किरण के साथ है
सूर्यदेव का प्यार
कण कण को छूकर करें
रवि सबका सत्कार

कण कण में कान्हा बसा
छुपा सृष्टि का सार
डाली नमक की ओ सखी
हो कैसे सागर पार

अशोक व्यास
१८ और १९ सितम्बर ०६ को लिखी
१९ फरवरी १० को लोकार्पित

Thursday, February 18, 2010

एक पहेली बन गयी अँखियाँ


मनमोहन मुख चंचल बतियाँ
एक पहेली बन गयी अँखियाँ

धर श्रृंगार चले नटवर जब
हो गयी मूरत सारी सखियाँ

भरी प्रेम से गागर मन की
भूल गयीं पनघट पर पनियां

मधुर मौन का माखन खाकर
रुनझुन भूल गयी पैजनियाँ

अशोक व्यास
१७ सितम्बर २००६ को लिखी
१८ फरवरी २०१० को लोकार्पित

Wednesday, February 17, 2010

सकल व्योम है जिसकी लीला

नंदलाला मुख प्रेम अपार
द्वन्द सहज ही होते पार

सकल व्योम है जिसकी लीला
उसकी मंगल जय जयकार

केशव कहूं कथा जब तेरी 
मिटती प्रिये व्यथा सब मेरी

अशोक व्यास 
न्यूयार्क, अमेरिका
१५ सितम्बर ०६ को लिखी
फरवरी १८, २०१० को लोकार्पित

Tuesday, February 16, 2010

हम तो क्षणभंगुर में अटके

कान्हा मन इधर उधर भटके
तुम छोड़ गए हो पनघट पे
यूँ प्यास जगा कर छुपते हो
हम तो क्षणभंगुर में अटके


ली दिव्य छोड़ कर द्रव्य शरण
उलझा उलझा यह आकर्षण
कब तेरी चोखट बैठ सकूं
फिर पहन के श्रद्धा आभूषण 

अशोक व्यास 
न्यूयार्क, अमेरिका 

२७ अगस्त ०६ को लिखी
१६ फरवरी १० को लोकार्पित

Monday, February 15, 2010

श्रद्धा का सागर


परमप्रेम आनंद उजागर
आये देखो नटवर नागर

आनंद का यह ज्वार उठा है
गरज रहा श्रद्धा का सागर

कान्हा की बंशी मिस्री रस
कण कण मधुर दिव्य रस पाकर


अशोक व्यास
२७ अगस्त ०६ को लिखी
१५ फरवरी १० को लोकार्पित

Sunday, February 14, 2010

कान्हा का परताप


आनंद अपार उजागर है
साँसों में कृपा का सागर है
कृतकृत्य हुआ झूमूं तन्मय
संग मेरे नटवर नागर है

अनुभव में अनुकूलता
कान्हा का परताप 
और अगर प्रतिकूलता
कर उसका ही जाप

 अशोक व्यास
अप्रैल १९, ०६ और अप्रैल २१, ०६ को लिखी
१४ फरवरी १० को लोकार्पित

Saturday, February 13, 2010

अमृत सिंचन

बात है मुस्कान की
कान्हा के ध्यान की
प्रेम के मधुर गान की
आनंद की उड़ान की

श्रद्धा क्या है अनुगृह का फल है
करुणामय कान्हा की कृपा ही संबल है
उसकी दृष्टि में अमृत सिंचन
हर सांस पावन, प्रेम हर पल है


अशोक व्यास
२९ जनवरी ०७ को लिखी
१३ फरवरी १० को लोकार्पित

Friday, February 12, 2010

रहो श्याम सेवा में हर पल

कान्हा मुख मंडल 
मौन सघन
ज्यों ठहर गया
कोई चिंतन

मुखरित होने के लिए कहे 
पहले दे दो अपना तन मन


समय श्याम संग सुन्दर शाश्वत
श्याम समय संग सत्य अनावृत

आनंद मंगल दिव्य दिवाकर
उजली किरण श्याम गुण गाकर

प्रेम प्रसार परम पद निर्मल
रहो श्याम सेवा में हर पल

अशोक व्यास
१९ और २० अप्रैल ०७ को लिखी
१२ फरवरी १० को लोकार्पित

Thursday, February 11, 2010

छोड़ जगत की चाकरी


सुन प्रेम निरंतर कल कल कल
मन हुआ मधुर, रसमय, शीतल

यह श्याम मनोहर कृपा सरस
चिन्मय, मधुमय, साँसे प्रति पल


चल देनु चर्रेय्या संग चलें
अमृत सरिता बन बहें सरल 

परिपूरण परमात्मा
तेरे चरण निवास
अब क्या मांगू श्याम से,
पूरी हो गयी आस

सेवा सुन्दर व्रत मन
करता जा निष्काम
छोड़ जगत की चाकरी
गायेजा घनश्याम

चल जमुना के तीर पर
देह लपेटें धूल
जहाँ श्याम चरणन पड़े
वहीं मिलेगा मूल

प्रेम पकाऊँ रात दिन
छींके धरूं चढाय
टूटेगा छींका स्वयं
श्याम मेरा जब आय


अशोक व्यास
१० अप्रैल ०७  और १७ अप्रैल ०७ को लिखी
ब्लॉग पर फिर आयीं ११ फरवरी १० को

Wednesday, February 10, 2010

कहाँ छुप गयी 'जाग'


कान्हा से कर बात मन तू
इधर उधर मत भाग

पूछ श्याम से दिन आया पर
कहाँ छुप गयी 'जाग'

अपना चिन्मय रंग श्याम का
छोड़ जगत के राग

पावन नदी समर्पण शाश्वत
मिटे जगत की आग

अशोक व्यास
२८ मई ०७ को लिखी
१० फरवरी १० को लोकार्पित 

Tuesday, February 9, 2010

उसको पाऊँ कर कौन नियम?


श्री कृष्ण प्रभु नव वस्त्र धरे
मुसकाय रहे मद्धम मद्धम
मैं अँखियाँ अंतस की कोसूं
क्यूं सूझ रहा है मुझको कम

मन भाग रहा करता किलोल
सुन सुन कर नूतन कर्म ढोल

ऐसे में कैसे बैठ सुनूं
मन मोहन मौन मधुर सरगम
मैं श्रवण रहित हो रीत गया
क्यों सुनता मुझको इतना कम


क्यूं याद नहीं रह पाता है
वह कण कण बसा हुआ हरदम
कैसे देखूं, कैसे ध्याऊँ
उसको पाऊँ कर कौन नियम?

अशोक व्यास 
न्यूयार्क, अमेरिका
७ फरवरी ०७ कि लिखी
९ फरवरी १० को लोकार्पित

Monday, February 8, 2010

समर्पण हो निरंतर

अपनी असमर्थता लिखने में भी 
प्रमाद है
साथ में ईश्वर है तो फिर कैसा
अवसाद है
सबसे पहले है वही, जो 
सबके बाद है
सच्चा सुख देने वाली, उसी प्रियतम
की याद है

जिसकी स्मृति से आल्हाद है
जिससे हर बस्ती आबाद है
उसी नन्द नंदन को
आज ये नयी फ़रियाद है

मुक्ति पथ दिखलाओ, बंधन से छुडाओ 
समर्पण हो निरंतर, ऐसा पाठ पढाओ

अशोक व्यास
१० अप्रैल ०७ को लिखी
८ फरवरी १० को लोकार्पित

Sunday, February 7, 2010

शरण बिना निस्तार नहीं है



जाने क्या खो गया कहीं पर
जैसे संकट आया भारी
लिए प्रार्थना का पावन पुल
करता जीने की तैय्यारी


शरण बिना निस्तार नहीं है
कृपा बिना तो प्यार नहीं है
हर एक सांस उपहार है उसका
बिन उसके आधार नहीं है

कोमल मन हो शांत निरंतर
गुरु अनुग्रह है संबल निर्झर
जिससे उदगम, जो अमृत घट
उसे सुमिर नित, मन मधुकर


अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
१५ मार्च ०९ को लिखी
फरवरी १० को लोकार्पित

Saturday, February 6, 2010

जगत मुक्ति का धाम


कृष्ण नाम रस पी मना
कर
लीला रस में स्नान
उस
पथ बढ़ ले प्रेम से
जिस
पथ हो उत्थान

जगत
जाल सा तब लगे
जब
बिसरे घनश्याम
सुमिरन
अमृत चख सदा
जगत
मुक्ति का धाम


अशोक व्यास
१२ मार्च ०९ को लिखी
६ फरवरी १० को लोकार्पित

Thursday, February 4, 2010

चल आनंद की बरसात करें


चल आनंद की बरसात करें
मिल जुल कान्हा की बात करें
है बाज़ी उसकी, जान- मान
बस यूँ ही शाह और मात करें

गिरिधारी मन के साथ करें
शाश्वत रक्षक दर माथ धरें
बहे पवन, संग ले प्रेम कोष
पावन मंगल, दिन-रात करें

चल आनंद की बरसात करें
सब तजें, त्रिलोकी नाथ वारेन
थिरकें उसकी ले पर प्रति पल
रससार युक्त हर बात करें

चल आनंद की बरसात करें

अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
१६ मार्च २००९ को लिखी
४ फरवरी २०१० को लोकार्पित

Wednesday, February 3, 2010

दिव्य दरस की आस में


कर कान्हा से बात मन
शोक ताप हो दूर
शीतल आनंद बरसता
करो स्नान भरपूर

दिव्य दरस की आस में
भटकूँ चारों धाम
पग पग गहरी प्यास से
नित्य पुकारूँ श्याम

गिरिधर गुण गाता रहूँ
बैठूं यमुना तीर
बस उसका ही आसरा
जिसने रचा शरीर

मंगल मन, मोहन जपे
सारा जग हर्षाय
सुमिरन रस में डूब कर
कण कण प्रेम लुटाय

अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
मार्च ११, ०९ को लिखी पंक्तियाँ
३ फरवरी २०१० को लोकार्पित