Tuesday, November 30, 2010

सुन्दर-मधुर हो गया जीवन

 
सागर पर्वत नदी किनारे
कान्हा संग सुन्दर हैं सारे

मन मोहन का नाम लिया तो
अपने हो गये चाँद-सितारे

धड़कन ने ऐसी लय पाई
निसदिन राधेश्याम पुकारे

मन ओजस्वी बना रहा है
खेल भले जीते या हारे

यमुनातट की बालू लेकर
रास रंग मानस में धारे

केशव कथा नहीं कहता है
वो केवल मुस्का कर तारे

धूप गयी अँधियारा आया
पासे नए, काल ने दारे

सुन्दर-मधुर हो गया जीवन
सांस सांस है श्याम सहारे

अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
२२ मार्च २००६ को लिखी
३० नवम्बर को लोकार्पित

Wednesday, November 24, 2010

मेरा श्याम मधुर



 
जय कृष्ण कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण
मुरलीधर मोहन प्यारे का
है नाम मधुर
हर काम मधुर

जय कृष्ण कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण
गिरिधर गोकुल रखवारे का
है धाम मधुर
मेरा श्याम मधुर

जय कृष्ण कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण
परिचय नूतन उजियारे का
ईनाम मधुर
अविराम मधुर


जय हो
जय श्री कृष्ण
अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
बुधवार, २४ नवम्बर २०१०

Tuesday, November 23, 2010

मोहन उसके साथ

करे श्याम की चाकरी, जपे श्याम का नाम
मन शीतल आलोक में, पाये नित विश्राम
 
अनुपम छवि यदुनाथ का, अद्भुत सारी बात 
जो अपने मन संग है, मोहन उसके साथ 

अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
२३ नवम्बर 2010


Monday, November 22, 2010

कान्हा की जय जयकार करें

 
मन मंगल माधव नाम लिए
चल जीवन पथ उजियार करें 
 
लेकर मधुसुदन का सुमिरन
कण कण में अनुपम प्यार भरें
 
है आज नया उल्लास प्रकट
हर अनुभव का सत्कार करें
 
हम ग्वाल-बाल के संग खेलें 
कान्हा की  जय जयकार करें
 
अशोक व्यास 
न्यूयार्क, अमेरिका
सोमवार, २२ नवम्बर २०१०


Sunday, November 21, 2010

यह कविता नहीं सत्य है

 
हम आज समग्रता से
अपनी पूर्णता को अपनाएंगे
या इस अपार वैभव को
कल पर टाल जायेंगे

अगर हम कल-कल करते जायेंगे
तो सूखे- सूखे ही निकल जायेंगे

विवशता को नहीं देना है
स्थाई-अस्थाई स्थान
हम क्यूं क्षुद्र बने, हमारी
सारी धरती, सारा आसमान

यह कविता नहीं सत्य है
सत्य का स्वर है
आपके ध्यान में है अमृत
वरना सब नश्वर है
 

अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
१५ जून २००४ को लिखी
२१ नवम्बर २०१० को लोकार्पित

Saturday, November 20, 2010

श्याम नाम की माला



 
मेरा है गोपाल और नंदलाला भी
मुझमें गाये है गोकुल का ग्वाला भी

वही मधु बन मन में बसने आये है
मनमोहन मधुसूदन है मतवाला भी
 
दिखता है गैय्या के खुर की रेत उड़े 
पीछे आये है सबका रखवाला भी

चलो चलो, माखन खाने की बेला है
छुप छुप देखे है मटकी ब्रजबाला भी
 
उसने कृपा दृष्टि से अमृतमय करके 
सोंपी दई है श्याम नाम की माला भी
 
अशोक व्यास 
न्यूयार्क, अमेरिका
शनिवार, २० नवम्बर २०१०




Friday, November 19, 2010

आदि-अंत रहित आनंद की धारा





 
दिन उगते ही
ठाकुरजी का ध्यान
जागे उल्लास
बजे सुन्दरतम की तान

दिन अवसरों के उपहार लाये
कर्मयुक्त संतोष सृजन सार सिखाये

अहा
इस दिन को अपना सर्वश्रेष्ठ दिन बनाएं
जैसा बनने का सपना है
आज ही बन जाएँ

प्रसन्न रहें, माधुर्य बढायें
समन्वित सार गुनगुनाये

जिसकी करते हैं आराधना
उसे अपना संगी बनाएं

इस दिन, इस क्षण
द्वन्द्वातीत हो जाएँ

एक जो चरम है
एक जो परम है

उसके चरणों में
नतमस्तक हो जाएँ

उसे कर्म नृत्य में
अपने संग बुलाएं

हर क्षण की ताल पर
हर सांस की उछल पर

समर्पित लचीलेपन के साथ
सौंपे स्वयं को उसके हाथ

उसके निर्देश पर नृत्य हमारा हो
आदि-अंत रहित आनंद की धारा हो
 
 
अशोक व्यास 
न्यूयार्क, अमेरिका
१९ नवम्बर २०१०, शुक्रवार




Thursday, November 18, 2010

वह खेल दिखाए नए नए

 
मन प्रेम बना सत्कार करे
कान्हामय जग से प्यार करे
वह खेल दिखाए नए नए
करूणामय दृष्टि दुलार करे

अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
जून २, २०००४ को लिखी
१८ नवम्बर २०१० को लोकार्पित

Wednesday, November 17, 2010

जो कान्हा का साथ दे

 
श्याम सहारे चल सखी
करें लहर से बात
पार करेंगे हर भंवर
थामे कान्हा हाथ

पावन, सुन्दर सरस है
मनमोहन मुस्कान
गया मेरा सर्वस्व ही
सुन मुरली की तान

मुक्ति माखन हाथ ले
कान्हा चला लुटाय
जो कान्हा का साथ दे
वो नित माखन खाय

श्याम सुन्दर की चाकरी
बस वो ही कर पाय 
छोड़ रहट, जो नितप्रति
कान्हा पीछे जाय
 
 
अशोक व्यास 
न्यूयार्क, अमेरिका
५ जून २००४ को लिखी गयी
१७ नवम्बर २०१० को लोकार्पित

Tuesday, November 16, 2010

दिन और रात सहज ही योग सिखाते हैं

 
रात आती है
विश्रांति की चादर लाती है
सारी क्रियाओं को शिथिल करने की प्रेरणा लाती है
ऊर्जा संचित करने का अवसर खिलाती है

रात में माँ की यह मौन पुकार है
कि अब कर्ममुक्त हो जाने में ही सार है

लाओ अपनी थकान, लो थपकी मुझसे
जिसमें स्फूर्ति का अनुपम उपहार है

फिर जब 
रात की गोद में
विश्रांति के 
सुन्दर मोद में
 
तन-मन सहला दिए जाते हैं 
हम दिन उगने के समीप आते हैं
 
और 
अहा!
सूर्योदय की नित्य नूतन आभा 
उजियारे का अमृत वर्षं,
नए सिरे से प्रफुल्लित, प्रमुदित 
नव आशा का निमंत्रण,
 
दिन क्रिया की सुन्दरता का दिव्य गान है
रात की निष्क्रियता में भी अमृत पिपासा विद्यमान है
 
दिन और रात सहज ही योग सिखाते हैं
हमें सक्रिय-निष्क्रिय लय संग एक कर जाते हैं
 
 
अशोक व्यास 
न्यूयार्क, अमेरिका 

Friday, November 12, 2010

खुल गया कामना का बंधन

 
कालियदमन कान्हा सुमिरन
खुल गया कामना का बंधन

अब मुक्त व्योम की शोभा में
खिल रहा श्याम का ही चिंतन
 
वह हर चिंता से छूट गया
मन में छाई बांकी चितवन

उल्लास प्रेम सेवा लाये 
केशव करूणा महके आँगन
 
लो ज्योति जगी उस वैभव की
जो दिखलाए है मनमोहन 
 
 
अशोक व्यास 
न्यूयार्क, अमेरिका 
१२ नवम्बर 2010



Thursday, November 11, 2010

हवा की सांसों में

 
लिख लिख कर
उसने फिर
श्याम का नाम मिटाया
अब युग बदल गया
पनघट पर
कोई नहीं आया

पर हवा की सांसों में
कृष्ण का होना
घुला हुआ है निरंतर 
मौन होकर
सुनने लगा वह
पवन में कान्हा का स्वर


अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
गुरुवार, ११ नवम्बर 2010
 

Wednesday, November 10, 2010

चल श्याम नाम खुल कर गायें

 
चल श्याम नाम खुल कर गायें
हम प्रेम ग्रन्थ खुद बन जाएँ

हर सांस नंदनंदन सुमिरन
पग पग सौभाग्य पे इतरायें
 
जिससे जीवन उपहार मिला 
हर सांस उसी के गुण गायें
 
चाहे आंधी-तूफ़ान आये
हम कभी ना उनसे घबराएं

घनघोर घटा चाहे छाये 
ले नाम की छतरी बढ़ जाएँ

अब सरस श्याम की शोभा में
तज देह-भान, हम रम जाएँ
 
चल श्याम नाम खुल कर गायें
हम प्रेम ग्रन्थ खुद बन जाएँ

अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
११ नवम्बर २०१०

 

Tuesday, November 9, 2010

चल कृष्ण सखा की बात करें

 
चल कृष्ण सखा से बात करें
रच खेल, यूँ ही शह-मात करें
और बात बात में बिना कहे 
उसके चरणों पर हाथ धरें

चिन्मय कान्हा का साथ करें
फिर नंदनंदन की बात करें
उसकी लीला का रस सागर
छूकर मंगल दिन-रात करें

चल कृष्ण सखा की बात करें...
 
अशोक व्यास 
न्यूयार्क, अमेरिका
मंगलवार, ९ नवम्बर २०१०



Monday, November 8, 2010

श्याम मेरा सर्वस्व है

 
श्याम से सम्बन्ध अपना
क्या रहा
कैसे रहा
और
क्यूं रहा
सोचते सोचते 
लगा
सोच से परे है श्याम
पर सोच को आलोकित कर देता है


श्याम तुम मेरे आराध्य हो
मेरे सखा हो
मेरे स्वामी हो
प्रश्न पूछ कर
लगा सम्बन्ध को सीमित कर दिया 
अनजाने में

सांसों में 
बोध दमका
समग्रता से बोल उठा वह 
'श्याम तुम तो मेरे सर्वस्व हो'


दिशा दिशा में
हर एक क्षण में
सांस सांस में
हर एक शब्द में
एक चेतना ज्योतिर्मय जो
वही श्याम है
श्याम ना केवल, स्वामी, सखा
ना बंधू,बांधव
श्याम मेरा सर्वस्व है
श्याम मेरा सर्वस्व है
सर्वत्र श्याम ही श्याम है
एक जो है 
नित्य निरंतर
वही मोर मुकुटधारी
मुरली वाला श्याम स्वरुप है


जय हो
जय श्री कृष्ण 
अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
८ नवम्बर २०१०

Sunday, November 7, 2010

वह मार्ग सरल

 
तव चरणन पर धर मति सकल
प्रभु  पूछ रहा वह मार्ग सरल
जिसको पा धन्य हुआ जाऊं
जिससे पाऊँ तव भक्ति तरल

अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
१ अक्टूबर २०१० 
लोकार्पित ७ नवम्बर 2010

Saturday, November 6, 2010

याद रहे नित साथ मेरे मनमोहन की

 
 
अमृतमय है याद मधुर मनमोहन की
याद रहे नित साथ मेरे मनमोहन की
पाया है अनमोल खज़ाना प्रेम भरा
करूँ निरंतर बात मेरे मनमोहन की 

अशोक व्यास
१२ दिसंबर २००५ को लिखी
६ नवम्बर २०१० को लोकार्पित

Friday, November 5, 2010

जीवन में नित मंगल हो



कान्हा मुख मुस्कान लबालब
करून लालिमा लाया पूरब
सम रस दृष्टि, प्रेम लुटाये
वो अपना तो जग अपना सब

-----------------------------
जीवन में नित मंगल हो
घर घर आनंद स्थल हो
साँसों में शाश्वत गाये 
प्रेमयुक्त मन शीतल हो

दीप पर्व पर मंगल कामनाएं  

अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका


Thursday, November 4, 2010

चल कान्हा की बंशी चुराएँ

 
चल कान्हा की बंशी चुराएँ
नटखट को हम आज खिजाएँ
वो कदम के तले जो आये
पेड़ चढ़ें हम जीभ दिखाएँ

पर बंशी कान्हा बिन क्या है
उसके बिना रात-दिन क्या है

हम तो उसको लाड लड़ाएं
वो रूठे तो उसे मनाएं
नंदनंदन के मन जो भये
हम तो वही चाल अपनाएँ

अशोक व्यास
१० जनवरी २००६ को लिखी
४ नवम्बर २०१० को लोकार्पित

Wednesday, November 3, 2010

साँसों में श्याम समाया है

 
चल आज बसन्ती पवन चली 
साँसों में श्याम समाया है
सखी प्रेम मगन कलियाँ भँवरे
आनंद परम नभ छाया है

बस्ती बस्ती गिरिधारी है
छवि कान्हा की अति प्यारी है
सब नाच रहे हरिभजन संग
उर में गोविन्द समाया है

अशोक व्यास
१३ अप्रैल २००५ को लिखी
३ नवम्बर २०१० को लोकार्पित

Tuesday, November 2, 2010

जाग्रत रखता मुझसे नाता




 
 
"सूर्य किरण में
नित्य पवन में
क्षण क्षण कर
आलिंगन तेरा

रचने का आनंद उठाने
बार बार 
तुझसे बतियाता
तुम इतना करना
ओ कान्हा!
जाग्रत रखता मुझसे नाता '
 

३० जून २००४ को लिखी
२ नवम्बर २०१० को लोकार्पित

Monday, November 1, 2010

श्याम नाम गुण गाय

श्याम नाम का आसरा
ओर ना दूजी बात 
चहुँ दिसा अपनी लगे
लिए श्याम को साथ 

कृष्ण भजे मन रात-दिन
रस अनुपम नित पाय 
पावन हो जिव्हा सदा
श्याम नाम गुण गाय

अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
६ जुलाई २०१० रचित
१ नवम्बर २०१० को लोकार्पित