Thursday, June 30, 2011

मौन स्वर्ण सा


जय श्री कृष्ण

कृष्ण रटन में
श्याम जपन में
वो ही मन में
वो ही तन में

उससे मिलने 
करूँ जतन मैं

कृपा बिना कुछ 
हाथ ना आवे
मान संग वह
साथ न आवे

उसको अर्पण
मधुर समर्पण
ध्येय एक
श्री श्याम चरण

श्याम श्याम जय
कृष्ण धाम जय
कृष्ण कृष्ण जय
राधे-कृष्ण जय

मुरली मनोहर
अमर प्रेम स्वर
मौन स्वर्ण सा
   जय योगेश्वर     

अशोक व्यास
९ अगस्त १९९७ को जयपुर में लिखी पंक्तियाँ
३० जून २०११ को नेव्यूयार्क से लोकार्पित           

Wednesday, June 29, 2011

चरण चिन्ह मुरलीधर के


और फिर एक बार
खोकर वृन्दावन में
भूल कर रास्ता
अनजान पगडण्डी पर
भटकते भटकते
एक दरख्त से दूसरे दरख़्त तक

एक प्यास से दूसरी प्यास तक
ढूंढते ढूंढते
चरण चिन्ह मुरलीधर के

आखिर सारी खोज
श्याम को सौंपी उसने
और
सहसा दे गया वो दिखाई
सुरभित हुई पुरवाई
पहचान की कालजयी पवन
माधुर्य भर लाई 

अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
२९ जून २०११    
       
    

Tuesday, June 28, 2011

ले शरण श्याम की हर स्थल


अब छोड़ बात निस्सार सकल
ले शरण श्याम की हर स्थल
पा अमृत सेतु साँसों में
संग शाश्वत गान सजा प्रतिपल

यह भोर मधुर मनमोहन संग
कण कण केशव का करूणा रंग
कर नृत्य नया उजियारे का
बाजे श्रद्धा की लय मृदंग

अशोक व्यास
४ अगस्त २००९ को लिखी
२८ जून २०११ को लोकार्पित   

      

Monday, June 27, 2011

चल श्याम सुन्दर में रम जाएँ


मन आनंद का उपहार लिए
श्रद्धा का नित श्रृंगार किये
गिरिराज धारण की शोभा को
धारण कर, सीमा पार प्रिये


चल श्याम सुन्दर में रम जाएँ
चहुँओर श्याम को हम पायें
जिस स्थिरता से गति सतत
उस द्वन्द रहित  में थम जाएँ

अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
१९ अक्टूबर २००९ को लिखी
२७ जून २०११ को लोकार्पित            

Sunday, June 26, 2011

नंदलाल में मन रमा


लालन लालन मैं करूँ
और न दूजा काम
नंदलाल में मन रमा
आनंद रस अविराम

वो साथी, रक्षक वही
उससे प्रकटे प्यार
सुमिरन उसका सांस मैं
सुन्दर जग व्यवहार


अशोक व्यास
१३ नवम्बर २००९ को लिखी
२६ जून २०११ को लोकार्पित        

Saturday, June 25, 2011

कान्हा कहीं छोड़ मत जाना


जीवन भर का साथ निभाना
कान्हा कहीं छोड़ मत जाना
गिरने पर संभाल लेते हो
संभल चलूँ तब भी संग आना


तुम से गौरव, तुम से वैभव
तुमसे मंगलमय हर कलरव
कान्हा तुम अविनाशी, चिन्मय
तुम अक्षय आनंद का उद्भव

प्रेम प्रसार तुम्हारा सुमिरन 
शीतल, शांति सतत मनमोहन
सार सांस में दिखा रहे तुम
करूणामय, शाश्वत मधुसूदन

दिव्य द्वार की देहरी,अपरिमित विस्तार
दूजापना मिटाय के, पावन 'एक' श्रृंगार

ॐ जय श्री कृष्ण

अशोक  व्यास
२८ अगस्त २००९ को लिखी
२५ जून २०११ को लोकार्पित    

             

Friday, June 24, 2011

पथ दरसाना


पथ दरसाना
आगे बढ़ाना
उचित समझो
तो दिलवाना
उपलब्धियों का
नया खज़ाना

पर चरण अपने
कभी न छुडाना
मैं तुम्हारा ही हूँ
मैने तो ये माना

अशोक व्यास
१४ सितम्बर २००९ को लिखी
२४ जून २०११ को लोकार्पित            

Thursday, June 23, 2011

ॐ नमो भगवते वासुदेवाय


ॐ नमो भगवते वासुदेवाय

जीवन तुम
तुम सार सांस का
प्यास तुम ही
तुम प्राप्य प्यास का

ओ परम सखा
भाव रोग हरो, प्रभु
दे दो फिर से
रस दिव्य रास का


अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
२२ अक्टूबर २००९ को लिखी
२३ जून २०११ को लोकार्पित         

Wednesday, June 22, 2011

संवरिया सेठ



1
केशव अमृतधार दिला दो
चरणामृत इस बार पिला दो
शाश्वत सत्य सदा जाग्रत हो
अब ऐसा आधार दिला दो
2
संवरिया सेठ भरे भण्डार
सबको पहुँचाऊँ उपहार
सबका मंगल करने वाला
खोले है मुक्ति का द्वार

अशोक व्यास
१३-१४ अक्टूबर २००९ को लिखी
२२ जून २०११ को लोकार्पित      

Tuesday, June 21, 2011

कह डाला सब कुछ



कान्हा चुप
मैं भी चुप
बात हो गयी
यूं ही गुप-चुप
उसने जब संकेत दिया कुछ
मैंने भी
कह डाला सब कुछ

पाने की चाहत
को छोडो
गर तुमको पा लेना
सब कुछ

मैं कान्हा के साथ
सदा हूँ
अब जाकर जाना यह
सचमुच


अशोक व्यास
२६ सितम्बर २००९ को लिखी
२१ जून २०११ को लोकार्पित       
 

Monday, June 20, 2011

शाश्वत खुद बन गया खिलौना


अनुपम सुन्दर श्याम सलौना
जय हो
शाश्वत खुद बन गया खिलौना
जय हो
उद्भासित है दिव्य ज्योत्स्ना
प्रमुदित सृष्टि का हर कोना
जय हो

आनंद का आगार दिवाकर
नित्य प्रेम कर रहा उजागर
जाग्रत उनसे विश्व चेतना
देख रहे वो हमें जगा कर

अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
१६ अगस्त २००९ को लिखी
२० जून २०११ को लोकार्पित          

Saturday, June 18, 2011

निज आनंद लुटाये


कान्हा करुणा सागर
निज आनंद लुटाये
कान्हा सुमिरन संग लिए 
सारा जग भाये

मनमोहक उसकी हर बात
प्रेम पथ पर ले जाए
सार खिले साँसों में
श्याममय जग दिख जाए

अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
१६ सितम्बर २००९ को लिखी 
१८ जून २०११  को लोकार्पित        

Friday, June 17, 2011

पावन सुमिरन धाम


जुड़ कर मन नंदलाल से
माखन मिस्री खाय
बंशी धुन में रम स्वयं
अमृत राग सुनाय

पावन, मंगल, श्याम धुन
पावन सुमिरन धाम
थाम लिया जीवन सकल
श्याम नाम को थाम

अशोक व्यास
१३ सितम्बर २००९ को लिखी
१७ जून २०११ को लोकार्पित        

Thursday, June 16, 2011

गोविन्द का गुणगान करे मन


गोविन्द का गुणगान करे मन
नित्य प्रभु का ध्यान धरे मन
श्याम शरण सा दुर्लभ यह क्षण
इस पर हर एक सांस हो अर्पण

प्रेमामृत में स्नान करे मन
मंगलमय आव्हान करे मन

अतुलित अभा, दीप्त है कण-कण
तन्मय, उन्नत, ओजस्वी प्राण

सत्यमयी मन
श्याममयी मन
पावन, नित्य कर एही सुमिरन.
जय श्री कृष्ण

९ सितम्बर २००९ को लिखी
१६ जून २०११ को लोकार्पित  


 

Wednesday, June 15, 2011

जहाँ है गोपीनाथ



अपने अपने रास्ते
अपनी अपनी बात
चल सजनी उस दर चलें
जहाँ है गोपीनाथ

देख पराये देस को
अपने देस की याद
चकाचौंध इस जगत की
सब कान्हा के बाद

अपने पल्ले कुछ नहीं
कहे बांधे गांठ
उसके चरण बसों मन
जिसके सारे ठाट

शरण श्याम के ले रहो
बस इतना हो ध्यान
कृपा दृष्टि आलोक में
हो गोविन्द गुणगान


अशोक व्यास
६ नवम्बर २००९ को लिखी
                  १५ जून २०११ को लोकार्पित                 

Tuesday, June 14, 2011

पहुँच श्याम के द्वार



कौन बिठाये परम पद
किसका करूँ विचार
प्रश्न सभी छूटे स्वतः
पहुँच श्याम के द्वार

अपने मन की बात से
किसने पाया सार
मनमोहन की शरण से
होता है उद्धार 

कान्हा से प्रीती बड़ी
प्रकट हर तरफ प्यार
कृष्ण कृष्ण गाऊँ सदा
जाग्रत श्रद्धा सार


अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
१२ सितम्बर २००९ को लिखी
१४ जून २०११ को लोकार्पित           

Monday, June 13, 2011

कान्हा मेरे शाश्वत साथी


मन को पवन की एक
लहर उड़ा ले जाती
सैर कराती
स्वपन दिखाती
संभावनाओं की खेती
करवाती
इस बीच
कान्हा की स्मृति
जाग्रत सतह पर से 
सरक जाती

फिर मूल की स्मृति
जब जाग जाती
पुकारता हूँ कातरता से
कहाँ हो, कान्हा मेरे शाश्वत साथी!

जय श्री कृष्ण

२५ अगस्त २००९ को लिखी
१३ जून २०११ को लोकार्पित         

Sunday, June 12, 2011

ज्योतिर्मय पावन मधुसूदन


अनुपम, सुन्दर श्याम सलौना
आया लेकर दिव्य खिलौना
साँसों की चाबी भर मुझ में
दिया धरा का गज़ब बिछौना

हुई आज येह कैसी बात
मधुर बड़ा है आज प्रभात
जिसे याद करता दिन-रात
थामा उसने मेरा हाथ

ज्योतिर्मय पावन मधुसूदन
उसका है सब, उसको अर्पण
सुमिरन का दुर्लभ है यह धन
जिससे अपना हर क्षण, हर कण

जय श्री कृष्ण

अशोक व्यास
न्यूयार्क अमेरिका
           २१ अगस्त २००९               

Saturday, June 11, 2011

मुझे तुमको बुलाना है





अवस्था वो
किस जिसमें 
श्याम बिन कुछ भी 
नहीं सूझे

अवस्था वो
की जिसमें
श्याम खुद  मेरा
पता पूछे

वहां जाने के बारे में
सोचना
बंधन बढ़ाना है
जो खुद खुल जाए है
वो प्रेम का
शाश्वत खज़ाना है
मैं जिसके पास
बैठा हूँ
कहूं क्यूं उससे फिर ऐसे
कहाँ हो तुम
मुझे तुमको बुलाना है


जय श्री कृष्ण

अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
४ नवम्बर २००९ को लिखी 
११ जून ११ को लोकार्पित           

Friday, June 10, 2011

मन मगन श्याम के सुमिरन में


मन मगन श्याम 
के सुमिरन में
घुल गया है अमृत
कण कण में

अब लोभ मोह सब
छोड़ सखी
है छटा अनंत की
नयनन में 
चल पनघट गगरी धर आयें
अब खाली हाथ ही घर जाएँ

अब प्यास गयी
उन्मुक्त, तृप्त सब मधुबन में
मन मगन श्याम के सुमिरन में 

अशोक व्यास
५ नवम्बर २००९ को लिखी
९ जून २०११ को लोकार्पित  
    

Thursday, June 9, 2011

कान्हा का ध्यान



करता हूँ आभार प्रकट
पर भाव बदल जाता झटपट
मन संतोष छिटक देता
देखे है मांगें उलट-पुलट

ये नहीं हुआ, वो नहीं हुआ
क्यूं असर नहीं करती है दुआ
लगता था सब कुछ पाया है
जब सुमिरन रस एक बार छुआ


फिर से कान्हा का ध्यान धरूँ
उसकी शोभा का मान करूँ
वो जैसे रक्खे, रहूँ सदा
और लीला रस का गान करूँ

जय श्री कृष्ण

२५ अक्टूबर २००९ मुखरित
९ जून २०११ सबको समर्पित   

Wednesday, June 8, 2011

सूरत मेरे श्याम की


सूरत मेरे श्याम की
सृष्टि का है सार
जब नयना मिल जाए है
छलके शाश्वत प्यार

मन से अब नाता नहीं
अमन है मेरा धाम
साँसों में सुमिरन सदा
श्याम श्याम अविराम

अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
३ नवम्बर २००९ को लिखी
८ जून २०११ को लोकार्पित          

Tuesday, June 7, 2011

अमृत रस छलकाए कान्हा



1
अमृत रस छलकाए कान्हा
करूणा रस बरसाए कान्हा
कभी रूठ छुप जाए कान्हा
कभी मनाने आये कान्हा
बस में मेरे कुछ नहीं
सब कुछ तेरे हाथ
याद नहीं रह पाए है
ये छोटी सी बात
मुस्काये जब संवरा
जागे सुन्दर भोर
कृपामई कण कण बने
        सुन्दरता चहुँओर 

अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
२ नवम्बर २००९ को लिखी
७ जून २०११ को लोकार्पित             

Monday, June 6, 2011

कृष्ण चन्द्र का नाम


अनुभव तेरे नाम का
मिले नित्य यदुराय
मन को ऐसी लय चला
उत्तम बता उपाय

जीवन खाली रह गया
मिला नहीं गर श्याम
सारे जग की संपत्ति
बिना श्याम क्या काम

पूरनमासी आया गयी
मगर कहाँ घनश्याम
अंतस को शीतल करे
कृष्ण चन्द्र का नाम

अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
२६ अक्टूबर २००९ को लिक्खी
६ जून २०११ को लोकार्पित               

Sunday, June 5, 2011

इतनी कृपा करो नंदलाला




कान्हा क्यूं करते हो ऐसा
जग लगता पिंजरे के जैसा

कभी कर्म ही सीमित होता
कभी लगे सीमित है पैसा 

कान्हा
जो भी करते हो तुम
उसमें है कल्याण की धरा
टकराहट भी गुरु सरीखी
कर देती है जग को प्यारा
कान्हा
तुम आधार हो ऐसा
कोई नहीं तुम्हारे जैसा
इतनी कृपा करो नंदलाला
कभी न सोचूँ ऐसा-वैसा

अशोक व्यास
२४ अक्टूबर २००९ को लिखी
५ जून २०११ को लोकार्पित             

Saturday, June 4, 2011

जब हो जाऊं नदिया पार


प्रभु की लीला अपरम्पार
बैठ नदी तट करूँ विचार
कब आये वह क्षण कान्हा
जब हो जाऊं नदिया पार

अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
२३ अक्टूबर २००९ को लिखी
४ जून ३०११ को लोकार्पित       

Friday, June 3, 2011

तादात्म्य हुआ संवित घन से


आत्म प्रतिष्ठा
गुरु में निष्ठा

श्री कृष्ण चरण रज माथे पर
चिन्मय, मधुमय, पावन, हर स्वर



बतियाँ करने जब लालन से
पहुँची तत्पर हो तन मन से
सब बात घुली, एक बात हुई
तादात्म्य हुआ संवित घन से



अब छोड़ दिया छल वाला तल 
और थाम लिया केशव उज्जवल
अब ध्यान उसी का साथ सदा
पावन, मंगल, कण कण प्रति पल


अशोक व्यास
न्यूयार्क,  अमेरिका
३ अगस्त २००९ को लिखी
३ जून २०११ को लोकार्पित                

Thursday, June 2, 2011

कृपा की किरण


मोटी मोटी आँखों से देखे मनमोहन
करूणासागर के नैनों में प्रेम का अंजन

देख देख उजियारा कर देता घर-आंगन
सारा कल्मष दूर कर रही कृपा की किरण

अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
जून २० ३२००८ की लिखी
२ जून २०११ को लोकार्पित       

Wednesday, June 1, 2011

अपनाया कर रास श्याम ने


उत्तम, अनुपम बात सुनाने
एक मौन 
उतरा मन आँगन,
दिव्य दिवाकर हुए प्रखर
शबों में जागी
कृपा की किरण

उजियारा भर अंतस में
छलकाया उल्लास श्याम ने
हटी क्षुद्रता, मिट गयी सीमा,
अपनाया कर रास श्याम ने
अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
जून १०, २००८ को लिखी
जून १, २०११ को लोकार्पित