Tuesday, May 31, 2011

श्याम का सुमिरन


पूजा में मन नहीं
ध्यान से भागे है मन
सपनो की सौगात लिए
चंचल है चितवन

है बिखराव अपार
परिष्कृत मुझको कर दो
कृपा दृष्टि से अपनी
ओ प्यारे मुधुसूदन

उत्सव एक वही सच्चा 
यह जान लिया है
जिसमें मिलता चिन्मय, मधुमय
श्याम का सुमिरन


अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
८ जून २००८ को लिखी
३१ मई २०११ को लोकार्पित       

Monday, May 30, 2011

चल चंचल मन


चल चंचल मन
ठहर ज़रा
मद्धम मद्धम कर गति 
श्रवण तब हो
कान्हा की मुरली का,

चल चंचल मन
ठहर कहीं
अब भाग लिया तू बहुत
यूं ही पीछे छाया के

चल रे व्याकुल हो लिया बहुत
अब कर विश्राम
शरण ले उसकी

चल चल मन
चल चंचल मन

अशोक व्यास
मई ३१, २००८ को लिखी
मई ३०, २० ११ को लोकार्पित          

Sunday, May 29, 2011

मनमोहन नाम सहारा ले


मन गोविन्द गोविन्द गोविन्द कर
रस पा भक्ति का, बन के भ्रमर

आनंद अपार उजागर हो
सब कुछ तज उसके चरणों पर

अपनेपन से मन भर जाए
कर सुमिरन श्याम, संवर जाए
मनमोहन नाम सहारा ले
पथ की हर बाधा टर जाए

अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
१९ जून २०११      

Saturday, May 28, 2011

सब कुछ पाया तेरा होकर



उल्लास उजागर लहर लहर
मनमोहन मधुकर आठ पहर
रस्प्रेम, कृपा, मन नवल धवल
यमुना तट पर यूं ठहर ठहर 


अविचल मस्ती का परिचय कर
मन उछल रहा भक्ति ले पर
हूँ शरण तेरी मेरे मुरलीधर
सब कुछ पाया तेरा होकर

अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
१७ जून २००८ को लिखी
२८ मई २०११ को लोकार्पित         

Friday, May 27, 2011

ले श्याम रंग हो जा उज्जवल



मन प्रेम उजागर कर प्रति पल
बिन श्याम, सकल जग है मरुथल
सुमिरन रस ऐसा जाग्रत कर
ले श्याम रंग हो जा उज्जवल

अशोक व्यास
१३ जून २००८ को लिखी
२७ मई २०११ को लोकार्पित     

Thursday, May 26, 2011

साँसों में कृपा की मधुशाला


उल्लास अहा! विश्वास अहा!
मनमोहन का वह रास अहा
करुणा सागर मुरली धुन से
गोपियाँ में जागी प्यास अहा 

चल कूद-फांद संग गोपाला
साँसों की शान, नन्द का लाला
वो छुप कर भी है आँखों में
साँसों में कृपा की मधुशाला


अशोक व्यास
न्यूयार्क
१६-17जून २००८ को लिखी
२६ मई को लोकार्पित      

Wednesday, May 25, 2011

वो नित्य परे है बंधन के


मन मगन प्रेम में मोहन के
सपने देखे वृन्दावन के
धर दी मुरलिया अधर श्याम
मिट गयी ताप सब जीवन के
हो गए दरस मधुसूदन के
वो नित्य परे है बंधन के
उस चंचल से जीतूँ कैसे
छल करता है अपना बन के
ले चरण चिन्ह यदुनंदन के
हो गए पूर्ण सपने मन के
है सांस सांस में गोप सखा
और शाश्वत पुष्प समर्पण के
अशोक व्यास
१५ जून २००८ को लिखी
२५ मई २०११ को लोकार्पित  

Tuesday, May 24, 2011

कान्हा संग नौका विहार है


बंशीधर छवि सब कुछ वारूँ
जो कुछ भी जीता, सब हारूँ
मिले तो मंगल, छुपे तो है छल
बस केशव की बात निहारूं

ध्यान धरूं पर कुछ न पुकारूं
सुन्दरतम का और संवारूं 
छूए कहीं मैला न होवे
सोच श्याम छवि और निहारूं

कान्हा संग नौका विहार है
जीवन का सम्पूर्ण सार है
चाहे जो नदिया के पार है
नहीं उतरना अबकी बार है


अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
२४ मई २०११ को लोकार्पित
पंक्तियाँ १४ जून २००८ की         

Monday, May 23, 2011

माया मेघ


आनंद आनंद आनंद आनंद
परम प्रेम रस, दिव्य दरस छंद
पुरुषोत्तम चरणन शीतल मन
मनमोहन सुमिरन रस मकरंद

कृष्ण कथा रस लीन सरस मन
मुखरित अंतस अच्युत आनंद
देह भाव बिसरा जब इस क्षण
साईं कृष्ण उजागर कण कण

आनंद आनंद आनंद आनंद
आवन-जावन लहर परे मन
मनमोहन का छत्र गोवर्धन
माया मेघ बरसता बाहर
अपने संग तो नन्द का नंदन

अशोक व्यास
जून १४ २००८ को लिखी
२३ मई २०११ को लोकार्पित       

Saturday, May 21, 2011

तुम्हें सौंप कर अपना मन


जैसा भी होता है वातावरण
तुम ही तो बनाते हो क्षण क्षण
ना हो असंतोष विपरीत बात पर
क्यूं ठहर नहीं पाता ये प्रण

अब यह कृपा का विलास है
मन की चाबी मन के पास है
सुन्दर गली सरस अनुभूति की
प्रकट करने का थोडा अभ्यास है

क्षमाशीलता बढे
विनय संग प्रेम रहे निश्छल
मीठी तान सुनाये
कृपाकी, सांवरिया प्रति पल

सारा कर्म तुम ही से
तुम ही से है सारा चिंतन
जग अपना है सारा 
तुम्हें सौंप कर अपना मन


अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
२ मई २००८ को लिखी
२१ मई २०११ को लोकार्पित            

Friday, May 20, 2011

कान्हा में रम जाऊं


अनुभव सार लिए कान्हा संग रास रचाऊँ
जहा जहां भी छला गया, उसको बिसराऊँ

यह कैसी लीला है प्रभु की क्या बतलाऊँ 
सब तजने को जब तैयार, तभी सब पाऊँ

मौन मगन मुस्काऊँ 
कान्हा में रम जाऊं

अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
जून २४, २००८ को लिखी
२० मई २०११ को लोकार्पित    
     

Thursday, May 19, 2011

मुक्ति का सहज भाव


चन्दन चन्दन मन के उपवन
है परम सखा, नन्द के नंदन

उजियारा बरसे प्रेम प्रवाह करे कल कल
है कृपा तिहारी, मन प्रसन्न होवे निश्छल

यह बंधन बोध परे
मुक्ति का सहज भाव
है एक सहारा परम
प्रभु की नाम नाव

अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
जून १२, २००८ को लिखी
१९ मई २०११ को लोकार्पित        

Wednesday, May 18, 2011

करूँ आवाहित तुमको श्याम


जितने भी प्रभाव हैं मन पर
सब प्रक्षालित कर दो श्याम
नित्य निरंतर, भीतर-बाहर
सुनूं सदा बस तेरा नाम

ऐसी करो कृपा यदुकुल्पति
मिटे क्षुद्रता का घेरा
मुक्त रहे मन, आनंद जागे
छोड़ वासना का फेरा

प्रीत तिहारी उज्जवल, निश्छल 
आश्रय केवल तेरा धाम
तज कर सब प्रभाव मन के अब
करूँ आवाहित तुमको श्याम
जय श्री कृष्ण

अशोक व्यास
न्जुने ११, २००८ को लिखी
१८ मई २०११ को लोकार्पित             

Tuesday, May 17, 2011

प्रेम गीत बन गाये जीवन

 
प्रेम गीत बन जाए जीवन
सांस सांस सुरभित वृन्दावन
 
सरस सुधा शाश्वत साँसों में
बहूँ लिए निश्छल अपनापन
 
केशव करुण देकर ज्ञानांजन
छुड़ा रहे है सब भव बंधन
 
सब  आचार-विचार कृष्णार्पण
प्रेम गीत बन गाये जीवन
 
१ जून २००८ को लिखी
१७ मई २०११ को लोकार्पित       
   

Monday, May 16, 2011

है महा मौन में वास अभी


मन मौन नगर चल आज अभी
मनमोहन बंशी तान लिए
अधरों पर रस मुस्कान लिए
दे रहे निमंत्रण करूणा कर

मन निर्मल, निश्छल, निश्चलता 
मन प्रेम, समर्पण, कोमलता
ले साथ सभी को एकाकी

चल छोड़ जगत के काज सभी
मन मौन नगर चल आज अभी

छू आज केंद्र का स्पंदन
पा ले अनुनाद परम ओ मन

विस्तार अपार बुलाता है
शाश्वत सुर सहज जागाता है

तज मोह-लोभ, अभिमान सकल
कर अनंत गौरव गान सरल

चल धरें द्वैत गंगा धरा
 तज दें खुद ही बंधन सारा

कान्हा कर सांस की रास अभी
है महा मौन में वास अभी

जय श्री कृष्ण

अशोक व्यास
न्यूयार २३ अप्रैल २००८ को लिखी
१६ मई २०११ को लोकार्पित             

Sunday, May 15, 2011

आत्म सखा परमात्म सखा


आत्म सखा
परमात्म सखा
दिव्य धरोहर
साथ सखा
 
मुरली मनोहर
साथ सदा
मन प्रेम मगन
दिन-रात सदा
 
केशव करूणा धार बहे
जग महिमा अपरम्पार कहे
 
पावन पथ रसमय 
स्वाद चखा
रख कुञ्ज बिहारी
याद सदा 
 
अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
१६ अप्रैल २००८ को लिखी
१५ मई २०११ को लोकार्पित    


Saturday, May 14, 2011

चल श्याम संग खाएं माखन



चल मस्त मगन
आनंद सदन
नित साथ हमारे
नन्द नंदन

बरखा, झूले, नदिया, आँगन
चल श्याम संग खाएं माखन
उसको सौंपें अपना सुख-दुःख
जो उठा सके है गोवर्धन

अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
१० अप्रैल २००८  को लिखी
१३ मई २०११ को लोकार्पित

Thursday, May 12, 2011

रसमयता का मांग रहा उपहार श्याम से


रसमयता का मांग रहा उपहार श्याम से
सोचूँ, कैसे हो सचमुच में प्यार श्याम से
एकाकीपन जटिल, कुटिल और छली बड़ा
अडिग रखे जो, मांगू वह आधार श्याम से
भ्रमित हुआ मन, खालीपन उपजाए है
जब चूका है ध्यान मेरा इस बार श्याम से
क्यों मेरा विश्वास फिसलता है मुझ से
जुड़ा हुआ है गर मेरा एक तार श्याम से


अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
अप्रैल ८, २००८   की पंक्तियाँ
१२ मई २०११ को लोकार्पित 

Wednesday, May 11, 2011

परम प्रिय श्याम मेरे


कान्हा!
स्पष्टता देना, पथ दरसाना
शक्ति देना, गति दिलाना

तुम जीवन आधार, परम प्रिय श्याम मेरे
करुण प्रेम विस्तार, परम प्रिय श्याम मेरे

सारा जीवन, तव चरणन का सुमिरन हो
खुले सृष्टि का सार, परम प्रिय श्याम मेरे
अशोक व्यास
अप्रैल 6 और 7, २००८ को लिखी
११ मई २०११ को लोकार्पित  

Tuesday, May 10, 2011

प्रेम का सावन


उन्नत रहना
प्रेम मगन मन
साथ तुम्हारे
गुरु कृपा धन

फिर जब जाओ
अपने आँगन
बरसो बन कर
प्रेम का सावन

श्रद्धा और समन्वय साथ
उसको अर्पित सब दिन रात


अशोक व्यास
२५ जून २००८ को लिखी
१० मे २०११ को लोकार्पित           

Monday, May 9, 2011

जिसने कान्हा को देख लिया


पेड़ के नीचे
छन छन कर उतर रही रश्मियों में
न जाने कैसे
मुस्कुराता दिख रहा था कान्हा

कभी लगे
वृक्ष के तने से
गूँज रही बंशी धुन 

कभी लगे
पत्ते पत्ते पर से
टपक रहा है माखन

कभी स्वर्णिम रथ पर सवार
कान्हा हँसते हँसते 
उतर कर रथ से
लुटा रहा था
अपने आभूषण

क्या मैं पागल हो गया हूँ?
मैंने प्रसन्नता पर प्रश्न चिन्ह लगाते हुए सोचा

दो गोपियों की खिलखिलाहट के साथ
उनका स्वर सुनाई दिया

'पागलों को ही अपने साथ लेकर चलता है कान्हा
जो कान्हा के लिए पागल नहीं
वो कान्हा को भला क्या देखेगा
और 
जिसने कान्हा को देख लिया
वो पागल हुए बिना कैसे रह सकेगा'
दोनों गोपियों की खिलखिलाहट
और बढ़ गयी
मेरे रोम रोम में
शांति उन्ड़ेलती
रसमय पावनता ने
मुझे वृक्ष के तने के साथ 
एक मेक कर दिया


अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
           ९ मई २०११              

Sunday, May 8, 2011

सांवरा बांसुरी बजा रहा है


शब्द मेरी आँख हैं
कान्हा, इनका सहारा लेकर ब्रजवन में
तुम्हें ढूँढने निकलता हूँ

शब्द मेरी लाठी हैं
कान्हा इनका सहारा लेकर ब्रजवन में 
तुम्हें ढूँढने निकलता हूँ
कान्हा
तुम ही शब्द हो


सांवरा बांसुरी बजा रहा है
गायें तन्मय हो गयी
गोपियाँ रस में डूब गयी
कान्हा के सुन्दर मुखारविंद  से झरती आनंद-गंगा में
पत्ता पत्ता स्नान करने लगा

पंछी सौंदर्य बरखा में मगन हो गए
सांवरे की बंशी ने सबका सर्वस्व छीन लिया

बंशी धुन पर चल कर सब श्याम सुन्दर में
सम्माहित हो गए

और

मैं कैसा बावरा हूँ
जस का तस रहा
श्याम को देखा
श्याम की सखियों को देखा 

पर अपने आपको नहीं भूल पाया

दृष्टा ही बना रहा
हे नाथ!
मुझे भी तन्मयता का प्रसाद दो

जय श्री कृष्ण !

अशोक व्यास
४ मार्च १९९७ को मुम्बई में लिखी पंक्तियाँ 
८ मई २०११ को न्यूयार्क से लोकार्पित            

Saturday, May 7, 2011

जिस पर कान्हा की कृपा


प्रेम सांवरे का लिखूं, और ना दूजी बात
सारे जग हो साथ में, जब कान्हा का साथ
मन में उसकी प्रीत का यज्ञ करू दिन-रात
कर कर के देखा सखी, सब कुछ उसके हाथ

नंदलाल है नाथ हमारा
मोर मुकुट वाला है प्यारा

गोविन्द गुण जादू भरा
सूखें में दीखे हरा

श्याम सहारे हूँ हर ठौर
उसका सुमिरन है सिरमौर

कान्हा  कथा सुनाय के, आनंदित रस आय
जिस पर कान्हा की कृपा, उसको ये रस भाय

अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
२४ मई १९९७ को लिखी
७ मई २०११ को लोकार्पित              

Friday, May 6, 2011

कान्हा के सौ रूप हैं,


कान्हा के सौ रूप हैं, हर एक रूप अनूप
वो बरखा बनता कभी, कभी बने है धूप
चल कान्हा की बांसुरी, छू कर देखें आज
कहाँ छुपा अमृत सरस, पता करें वो राज

मुझमें मेरापन वही, वही मेरा विस्तार
चलो आज कह ही दिया, कान्हा मेरा यार

लम्बी यात्रा ना सही, अनुभूति एक पाँव
जहाँ जुड़ा सम्बन्ध जी, वहीं मिलेगी छाँव


अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
६ मई 2011  
     

Thursday, May 5, 2011

My way of Being


Honestly speaking
Nothing new to say
all has been said
many many times
But this ritual of writing
is to be followed
It is like 'walking' 
to keep the flow alive
flow of 'saying'
saying that
which makes me feel 
God
Yes,
He is beyond words
Yet
some words behave like a boat
taking me across the
river of illusions 
and once
I am there
pregnant silence embraces me

Joy of having arrived
emerges wordlessly
I long to dissolve
in that moment
where
my identity gets
submerged into His

The more
I look for such moments consciously
the more artificial I become
so
Now 
No search
Just being
and
words are my way of being

Jai Shri Krishna

Ashok Vyas
29 March 1997


Wednesday, May 4, 2011

सबको किया निहाल


बलदाऊ का भाई है वासुदेव नंदलाल
उसको ही मालूम है मेरा सारा हाल

खोई जब गायें सभी, जब  खोये सारे ग्वाल
श्याम बने सब आप तब, सबको किया निहाल

ये मटकी, वो कंकरी, कुछ ही पल की देर
जब फूटे, तब बह चले श्याम नाम की तेर

उससे प्रेम बढे मेरा, इतनी सी है चाह
जिस पथ पर कान्हा नहीं, क्यूं जाऊं उस राह


अशोक व्यास 
१२ जून १९९७ की पंक्तियाँ
जय ४, २०११ को लोकार्पित 
        

Tuesday, May 3, 2011

कैसे हो विश्वास



गले लगा कर छुप गए
कहाँ प्रभु श्रीनाथ
ढूंढ रहे व्याकुल नयन
वही प्रेम के हाथ

नदी लहर पर खेलते 
श्वेत कपोत अनेक
ऐसे हर्षित हो गए
श्याम प्रभु को देख

उड़ा संग ले जा रहे
ये पंछी जिस धाम
वहां श्याम का वास है
छोड़ गए जो थाम

केंद्र नयन का हो रहा
फव्वारे का उद्गम
बूँद बूँद में बज रही
श्याम नाम की सरगम

अहा रूप कैसा दीपे
फव्वारे के बीच
झलक दिखाने आ गए
श्रीनाथ जी रीझ

अपने इस सौभाग्य पर
कैसे हो विश्वास
कौन जतन कर नित रहूँ
श्रीनाथ का दास

सुन्दर श्याम स्वरुप की शोभा अनुपम पावन
जय केशव, गिरिधारी, जय मनमोहन मनभावन

जय श्री कृष्ण

अशोक व्यास
२१ मई १९९७ को जयपुर में लिखी पंक्तियाँ
                                 ३ मई २०११ को न्यूयार्क से लोकार्पित                      

Monday, May 2, 2011

उसकी कृपा से


उसकी कृपा से
छू लिया
यह बिंदु
जिसमें भेद है
उस पार का,
उसकी कृपा से
गा रहा
यह सिन्धु
जिसमें सार
अक्षय प्यार का

उसकी कृपा से
बोल में
माधुर्य खन-खन
कर रहा,
उसकी कृपा से
हर एक क्षण से 
अमृत जैसा सावन
झर रहा,

वह एक अनादि
व्याप्त है जो
धरती में. आकाश में

हो गान
उसकी
महिमा का
हर शब्द में, हर सांस में

अशोक व्यास
न्यूयार्क
१० अप्रैल १९९७ को लिखी
२ मई २०११ को लोकार्पित      

Sunday, May 1, 2011

नित्य खेलता हुआ कौन है


एक बिंदु पर
सजे चेतना 
सुन्दर नृत्य जगाये

स्पंदन आनंद भरे
उल्लास उगाते
प्रभु सुमिरन से आये

कोलाहल के बीच मौन है
नित्य खेलता हुआ कौन है

उस अनंत को
अर्पित तन मन
जो सब खेल रचाए


अशोक व्यास
रामेश्वरम के शबरी लाज में 
३० दिसंबर १९९४  को लिखी पंक्तियाँ
आज १ मई २०११ को न्यूयार्क, अमेरिका से लोकार्पित