Sunday, January 31, 2010

वो अपना तो जग अपना सब


कान्हा के घर काम दिला दे सखी मुझे
सेवा से घनश्याम मिला दे सखी मुझे
आनंदित मन, सुमिरन रस में नित्य रहे
अब वो चिर विश्राम दिला दे सखी मुझे



कान्हा मुख मुस्कान लबालब
करुण लालिमा लाया पूरब
सम रस द्रष्टि, प्रेम लुटाये
वो अपना तो जग अपना सब


अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
२५-२६ दिसंबर ०५ को लिखी
३१ जनवरी १० को लोकार्पित

Saturday, January 30, 2010

जहाँ कुछ नहीं देता सुनाई'


'अदभुत' यह शब्द लिख कर देखा कान्हा की ओर
कान्हा की मुस्कान ने कहा, अदभुत है भोर

उजियारे की चादर में भी है मेरा मुखरित रूप
छाया
में भी छुपा हुआ मैं, मुझको गाती धूप

कान्हा, धूप में तुम्हारा स्वर कैसे दे सुनाई
'वहां से सुनो, जहाँ कुछ नहीं देता सुनाई'

कान्हा पहेलियाँ मत बुधो, सीधे सीधे बताओ
कैसे मिल सकते तुमसे, बस इतना बताओ

मुझसे मिलना तो आसान है, कहा कान्हा ने
बस तुम मुझसे मिल जाने का मन बनाओ

मन को मनाना आसान कहाँ है
सारे जग का घमासान यहाँ है

जब मेरी मुस्कान तुम्हारे मन को छू जायेगी
मधुर
शांति स्वतः स्फूर्त हो पायेगी

पर इस छुवन के लिए समर्पण तो जगाओ
मुझसे
मिलना आसान है, बस प्रेम बढाओ

छोड़ कर वस्त्र संशय के, सत्य की धूप में नहाओ
सतत
विस्तृत होते आभा मंडल में रम जाओ


अशोक व्यास
ठाकुरजी के लिए २१ दिसंबर २००५ को लिखी पंक्तियाँ
३० जनवरी २०१० को लोकार्पित

Friday, January 29, 2010

सुमिरन रस


छल छल छलके प्रसन्नता का भाव मनोहर
मन में उमड़े कृष्ण प्रेम का कृपामयी स्वर

चलो गोपियों संग श्याम लीला रस चख लें
खूब लुटाएं, माखनमय सुमिरन रस भर भर



अनुभव रचने वाले कान्हा
सुमिरन रस, उपहार ना छीनो

प्रेम तुम्हारा, शरण तुम्हारी
है यह जीवन सार, ना छीनो

बीच धार मन, तुम ही सहारा
कृपामयी पतवार, ना छीनो

मिले जहाँ से सत्य प्रेरणा
कान्हा, वह आधार, ना छीनो


सुमिरन रस, उपहार ना छीनो


अशोक व्यास
मार्च १४ और मार्च १५, ०६ को लिखी
२९ जनवरी १० को लोकार्पित

Thursday, January 28, 2010

जिसके संग है गोपाला



कर्म तुम्हारे
शक्ति तुम्हारी
मैं तेरा चाकर
गिरिधारी

कर्म सुमन में
सौरभ तुमसे
कृपामयी ओ
कृष्ण मुरारी

सांस प्रसाद
बनी है अब तो
चरण तुम्हारे
कुञ्ज बिहारी



रस आनंद प्रेम वाला
लुटा रहा है नंदलाला

मिले उसे माखन मिसरी
जिसके संग है गोपाला

सुध बिसरा कर हो जा रे
कृष्ण भजन में मतवाला

नदी रास्ता दे देती खुद
खुल जाता है हर ताला

अशोक व्यास
३ मार्च २००६ को लिखी
२८ जनवरी २०१० को लोकार्पित

Wednesday, January 27, 2010

श्याम श्याम भज बावरे

कान्हा का दर ना मिला
द्वार रहे सब बंद

कहे गोपियाँ ग्वाल से
चाह रही क्यूं मंद

बिना चाह ना राह है
कह गए पथिक सुजान
छह जगा धर ध्यान तू
मिले राह आसान



श्याम श्याम भज बावरे
ले लीला रस आधार
छोड़ चलाना चप्पू अब
खुद नदी उतारे पार

अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका


३० जनवरी ०६ को लिखी
जनवरी २७, १० को लोकार्पित

Tuesday, January 26, 2010

बात मेरे मनमोहन की


अमृतमय है याद मेरे मनमोहन की
याद रहे नित साथ मेरे मनमोहन की
पाया है अनमोल खज़ाना प्रेम भरा
करूं निरंतर बात मेरे मनमोहन की

Monday, January 25, 2010

आनंदित मन गाये श्याम



कृष्ण नाम रस पा लिया, तन्मय है अविराम
भाए बस वह बात, जो, मिलवा देवे श्याम


आनंदित मन गाये श्याम
साँसों का रथ उसके नाम
करे कृपा वह रसिक मनोहर
बन जाते हैं सारे काम



बरस रही मुस्कान
श्याम मुख जगमग, दीप्त, मनोहर

धन्य हुए नर-नारी
देखा, श्याम लल्ला ने हंस कर


अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
नवम्बर १६, १९ और २०, २००५ को लिखी
जनवरी २५, २०१० को लोकार्पित

Sunday, January 24, 2010

उर में गोविन्द


चल आज बसंती पवन चली
साँसों में श्याम समाया है

सखी प्रेम मगन कलियाँ भँवरे
आनंद परम नभ छाया है

बस्ती बस्ती गिरिधारी है
छवि कान्हा की अति प्यारी है

सब नाच रहे हरी भजन संग
उर में गोविन्द समाया है


अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
१३ अप्रैल ०६ को लिखी
२४ जनवरी २०१० को लोकार्पित

Saturday, January 23, 2010

परम प्रेम की रीत

सुन्दरतम गिरिधारी हँस हँस
बरसाए आनंद उजास

मोहनमय मन मगन मनोहर
करे सांस में नित्य निवास



परम प्रेम की रीत निराली
एक लगे, धरती आकाश


श्याम शब्द है और मौन भी
नित्य निरंतर मेरे पास

अशोक व्यास
३ मार्च २००६ को लिखित
२३ जनवरी २०१० को लोकार्पित

Friday, January 22, 2010

गोविन्द गोविन्द


गोविन्द गोविन्द गोविन्द गोविन्द
गाये जा मन गोविन्द गोविन्द


अमर प्रेम रस शाश्वत चख ले
तन्मय हो गा गोविन्द गोविन्द


घुल मिल पावन परम चरम तू
बेसुध हो गा गोविन्द गोविन्द


दिव्या धरोहर, अधर धरी है
अपना यह रस, गोविन्द गोविन्द


मन शीतल, उज्जवल, आनंदित
मुरली मनोहर, गोविन्द गोविन्द


उसकी धुन अर्पित कर साँसे
छेड़ राग मन, गोविन्द गोविन्द

अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
१३ मार्च ०६ को लिखी
२२ जन १० को लोकार्पित

Thursday, January 21, 2010

प्रणय सुधा बरसी कैसी


मन वृन्दावन
तन गोवर्धन
मैं दौड़ पड़ी बंशी धुन सुन
पग शूल चुभे
ना ध्यान पडा
सांसो में जैसे बिजली सी
तडपी बिन जल की मछली सी

जब श्याम दरस बिन सांस चले
तो रोम रोम में अगन जले

केशव अमृत घट छलकाए
नैनों से ही कुछ कर जाए

हो धन्य फिरूं हिरनी जैसी
ये प्रणय सुधा बरसी कैसी

अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
११ अप्रैल ०६ को लिखी
२१ जन १० को लोकार्पित

Wednesday, January 20, 2010

जहाँ जहाँ देखूं वो है


अहंकार बेकार बना कर चला गया
जीने का आधार बना कर चला गया

अपनी दौलत दे तो दी मुझको सारी
पर अब चौकीदार बना कर चला गया

जितने भी थे, द्वेष और तृष्णा सारे
छूकर सबको, प्यार बना कर चला गया

मैं कहता था कभी छोड़कर ना जाना
पर वो अपना सार जगा कर चला गया

जब जब देखूं, जहाँ जहाँ देखूं वो है
तन्मयता का तार सजा कर चला गया

आलोकित है कण कण में जैसे वो ही
सतत सत्य झंकार सजा कर चला गया

अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
१४ फरवरी १९०६ को लिखी
२० जनवरी २०१० को लोकार्पित

Tuesday, January 19, 2010

सुमिरन बारम्बार कृष्ण का



सार कृष्ण का, प्यार कृष्ण का
सांस सांस आधार कृष्ण का

नयनों में यह छटा मनोहर
कण कण में आभार कृष्ण का

मैं उसका हूँ, जब ये जाना
दिखता सब संसार कृष्ण का

सोच समझ कर लिखता हूँ मैं
सोचों पर अधिकार कृष्ण का

जब देखा घबराया अर्जुन
है इतना विस्तार कृष्ण का

मोर पंख माथे पर धारे
करुणा है श्रृंगार कृष्ण का

माँगा सूरज की किरणों से
सुमिरन बारम्बार कृष्ण का



अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
२ मार्च ०६ को लिखी पंक्तियाँ
१९ जनवरी १० को लोकार्पित


Monday, January 18, 2010

जय राधे गोविन्द



मन पावन आनंद सरस बरस
सब ताप हरे, सुख सार सरे

मन गाये गोकुल, वृन्दावन
जय राधे गोविन्द कृष्ण हरे

अमृत घट ले आये कान्हा
उसके कर दे, जो ध्यान धरे


सुन्दरतम केशव गिरिधारी
कर कृपा मेरे अंतस उतरे

अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका

(२७ फरवरी ०६ को लिखी
१८ जनवरी २०१० को लोकार्पित )

Sunday, January 17, 2010

जग अपना सब


कान्हा मुख मुस्कान लबालब
करुण लालिमा लाया पूरब
समरस दृष्टि, प्रेम लुटाये
वो अपना, तो जग अपना सब



अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
२५ दिसंबर ०५ को लिखी
१७ जन १० को लोकार्पित

Saturday, January 16, 2010

करुणानिधान


श्रद्धा को उन्नत करना, ओ मेरे साईं
सच के सूरज, हर लेना मिथ्या परछाई

करुण प्रेम रसपान करूं नित, ऐसा करना
ओ माखन प्यारे, करुणानिधान कन्हाई



अशोक व्यास, न्यूयार्क
१९ फरवरी ०६ को लिखी
१६ जन १० को लोकार्पित

Friday, January 15, 2010

भूल भुलैय्या


लिख लिख, बोले कृष्ण कन्हैय्या
कलम तेरी मुरली है भैय्या

अपनापन लिख, कृपा किरण संग
पार किये जा भूल भुलैय्या



अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका

मार्च १७, ०६ की पंक्तियाँ
जन १६, २०१० को लोकार्पित

Thursday, January 14, 2010

मन केवट है

सुमिरन है पतवार,नाव श्रद्धा, मन केवट है
नदी उसी की है, जिसकी छवि लिए हुए तट है
मुरली धुन में प्रेम बहा कर बुला रहा है

भगा भगा कर छुप जाए, मोहन तो नटखट है


अशोक व्यास, न्यूयार्क



नवम्बर २२, २००५ को लिखी पंक्तियाँ
जन १३, २०१० को लोकार्पित 

Wednesday, January 13, 2010

नित्यमुक्त की संगत



मन आनंद बहार सदाव्रत
कान्हा मुख मन सदा रहो रत


उज्जवल, अद्भुत, करुण, दिव्य वह
सांस प्यास बस उसकी रंगत


मैं मन बंधन पडा रहा क्यूं
पाकर नित्यमुक्त की संगत


कर उसका सुमिरन रे मनवा
जिससे पग पग हो पावन पथ




अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
१३ जनवरी १० को लोकार्पित
२४ दिसंबर ०५ को लिखी पंक्तियाँ

Tuesday, January 12, 2010

मुद्रा अर्पण वाली



आनंदित हर बात लगे
मन कान्हा आन बिराजे,
चलो सखी, उस डगर चलें
जहाँ कृष्ण प्रेम धुन बाजे

गोवर्धन धारी के मुख पर
छाई छटा निराली,
सिखला मुझको श्यामा प्यारी
मुद्रा अर्पण वाली

कृष्ण कृपा के कोष बिना
निर्धन राजे महाराजे,
आनंदित हर बात लगे
मन कान्हा आन बिराजे


अशोक व्यास
१ फरवरी २००६ को लिखी पंक्तियाँ
१२ जनवरी २०१० को लोकार्पित

Monday, January 11, 2010

प्रेम वर दे दो नटवर


प्रार्थना


मेरा जीवन सच्चा कर दो ओ कान्हा
मेरा पूजन सच्चा कर दो ओ कान्हा

नाम तुम्हारा लेना, तन्मय कर जाए
सरस, सरल ऐसा मन कर दो ओ कान्हा

साथ तुम्हारे बैठना, लगता है एक खेल
नहीं प्रभुजी हो रहा, तुमसे मन का मेल

एकाकी पन छुड़ा, प्रेम वर दे दो नटवर
करो श्याम, उत्साह, ओज, आनंद उजागर

तुम छलिया हो, मैं मूरख, फिर कैसे मेल सजेगा
बिना कृपा गिरिधारी, मेरा जीवन नहीं जंचेगा

साथ रहे जो, खाए माखन
मुझ पर करो, कृपामय चितवन

दे अपना सम्बन्ध सार
सेवा का दो अधिकार

विरह वेदना, कातर अश्रु
सुप्त तुम्हारा संग

नित्य कृष्णमय सांस रहे
प्रभु दे दो ऐसा रंग


अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
(१६ जनवरी ०६ को लिखी पंक्तियाँ
११ जनवरी १० को लोकार्पित)

Sunday, January 10, 2010

ये बैठा नंदलाला


यसुमतीमैय्या, लाल तिहारो
दिख दिख छुप जावे है
प्यास बढ़ा देवे दरसन की
हंस हंस गुम जावे है

हंस हंस बोली मात यशोदा
ये बैठा नंदलाला
कैसे दीखे श्याम बावरी
तू ने घूंघट सर पर डाला

अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
जन १६, ०६ को लिखी पंक्तियाँ
जन १०, १० को लोकार्पित

Saturday, January 9, 2010

सृजन पथ







आनंद
आनंद प्रेम निरंतर
श्याम सखा संग संग निरंतर
छलक रही है क्षण क्षण सुन्दर
नटवर नागर कृपा की गागर

कोमल, उज्ज्जवल, ज्योतिर्मय मन
अद्भुत है सुमिरन यह पावन





कर्म पथ दरसा प्रभु मंगल करो
सार से सुन्दर पिया हर पल करो

शुद्ध मन से सृजन पथ बढ़ते रहें
समन्वय सुर दो, जगत शीतल करो

कामना है प्रेम, उजियारा बढे
समर्पण दे, श्याम सारा छल हरो


अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
(२९ और ३० दिसंबर ०५ को लिखी पंक्तियाँ
जनवरी ९,२०१० को लोकार्पित)

Friday, January 8, 2010

चल कान्हा की बंशी चुराएँ


चल वसंत आया सखी
करें कृष्ण संग रास
नृत्य बहे हर सांस में
जब कृष्ण पिया हो पास


चल कान्हा की बंशी चुराएँ
नटखट को हम आज खिझायें
वो कदम्ब के तले जो आये
पेड़ चढ़े हम जीभ दिखाएँ

पर बंशी कान्हा बिन क्या है
उसके बिना रात दिन क्या हैं

हम तो उसको लाड लड़ाएं
वो रूठे तो उसे मनाएं
नन्द नंदन के मन जो भाए
हम तो वही चाल अपनाएँ


जय श्री कृष्ण


अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
(जन ९ और जन १०, ०५ को लिखी पंक्तियाँ
जन ८, १० को लोकार्पित)


Thursday, January 7, 2010

मन कान्हा का साथ निभाना


कर कान्हा सेवा मन मेरे, मोहन का ले नाम
है गंतव्य, गति कान्हा, मनवा अब तो जान

प्यार बढ़ाना, प्यार सिखाना
मन कान्हा का साथ निभाना
रसमय, चिन्मय , करूणामय वह
उसके चरणों में रम जाना

अशोक व्यास
(७ और ८ जन २००५ की पंक्तियाँ ७ जन २०१० को लोकार्पित)

Wednesday, January 6, 2010

बैठ कृपा की नाव


आकर्षण बस कृष्ण का, और ना कोई खिंचाव
ले सुमिरन पतवार चल, बैठ कृपा की नाव


गोविन्द नाम सुना दिया, दिया जगत का कोष
कण कण है आनंद रस, क्षण क्षण है संतोष

प्रेम गीत गाता फिर, श्याम दिसे चहुँ ओर
सब शीतल, उज्जवल करे, मन में ऐसी भोर

अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
(जन ६, ०५ को लिखी पंक्तियाँ
जन ६, १० को लोकार्पित)

Tuesday, January 5, 2010

नित कान्हा करे सहाय


कृष्ण नाम पालन करे
हरे ताप और पाप
एक काज कर मन सदा
श्याम नाम का जाप


अमृत सी मुस्कान से
कितना प्रेम लुटाय
डर, दुविधा व्यापे नहीं
नित कान्हा करे सहाय


विनती है कर जोरी के
ओ मेरे घनश्याम
सांस लहर तिरता रहूँ
लिए तुम्हारा नाम


अशोक व्यास

(२० फरवरी २००५ को लिखी पंक्तियाँ
५ जन २०१० को लोकार्पित )

Monday, January 4, 2010

रखना मन सबसे अपनापन


शांत सरल मन चल वृन्दावन
खा ले मनमोहन संग माखन

बिरहन को अग्नि सा लागे
अपना तो प्रेमी है सावन

सुन्दरता आई सब जग की
खेले कान्हा, मन के आंगन

नित्य उदार रहो मन मेरे
जाने कौन रूप हो वामन

सारे जग में श्याम सखा है
रखना मन सबसे अपनापन

अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
(जन ४, ०५ को लिखी कविता
जन ४, १० को लोकार्पित)

Sunday, January 3, 2010

लिखना है आभार तुम्हारा ओ कान्हा


लिखना है आभार तुम्हारा ओ कान्हा
मिले निरंतर प्यार तुम्हारा ओ कान्हा

हर क्षण रसमय, हर कण चिन्मय
साँसों में उपकार तुम्हारा, ओ कान्हा

धूप छाँव का खेल रचाने वाले तुम
हर अनुभव उपकार तुम्हारा, ओ कान्हा

करुणामय हो इसीलिए कह लेता हूँ
दृष्टि हो नित द्वार तुम्हारा, ओ कान्हा

ऊँच-नीच सब छोड़ तुम्हारे चरणों में
हर कण पाया सार तुम्हारा, ओ कान्हा

मेरेपन का भान भुलाना है प्यारे
हो मेरा संसार तुम्हारा, ओ कान्हा


अशोक व्यास,
(३ सितम्बर ९७ को दिल्ली में लिखी पंक्तियाँ
३ जनवरी २०१० को अमेरिका से लोकार्पित )

Saturday, January 2, 2010

बस कान्हा दिया दिखाई


बैठ सखा कान्हा संग
खेल रचाए कितने सारे
बार बार मन में जाग्रत हैं
वो क्षण प्यारे प्यारे

कभी गुदगुदी
कभी गल बही
कभी धौल धप्पी संग चहके
वृन्दावन के पत्ते पुलकित
गान कर रहे हैं रह रह के

फिर कान्हा ने अधर बांसुरी
ऐसी तान सुनाई
सकल सृष्टि में
हम सब को
बस कान्हा दिया दिखाई

वही पवन है, वही गगन है
वही धरा, जल और अगन

श्याम सखा के संग
हो गए सकल गोपजन, मस्त-मगन
प्रीत श्याम कि अमृत अनुपम
उसका सुमिरन, भाव मधुरतम

जय जय जय कान्हा को गाऊँ
परमानंद जगाऊं
उसके लीला रस में खोकर
सारा जग पा जाऊं

अशोक व्यास
(१६ मई ०५ को लिखी गयी पंक्तियाँ
२ जन १० को लोकार्पित)

Friday, January 1, 2010



कर बात श्याम से प्रेम भरी
आनंद उजागर हो पल पल

हर बार बुला कर, भर माखन
खाए बिखराए वो चंचल

मिसरी की डली से रिझा लिया
मोहन को अंक से लगा लिया

माधव मुरलीधर गिरिधर को
अब रोम रोम में जगा लिया

अशोक व्यास
(जन २१, ०५ को लिखी पंक्तियाँ
जन १, १० को लोकार्पित )