Thursday, December 31, 2009

मुस्कान किरण


कृष्ण बड़े गंभीर दिखे
मुख पर गुरु रूप दिखाई दिया

मुस्कान किरण फूटी नन्ही
अमृत पथ शब्द सुने दिया

केशव करुणामय बोल गए
भवबंधन कंद को खोल गए

मुख कान्हा ने अपना खोला
उसमें जग सकल दिखाई दिया


अशोक व्यास,
न्यूयार्क, अमेरिका
( २४ जनवरी २००५ को लिखी, ३१ दिसंबर ०५ को लोकार्पित)

Wednesday, December 30, 2009


कान्हा कान्हा कर सखी
ताज कर दूजी बात
आंख मूँद कर देख ले
माखन वारे हाथ

मधुर बड़ा घनश्याम है
मोहक उसके खेल
मन में उत्सव रात दिन
हुआ कृष्ण से मेल

अशोक व्यास
न्यूयार्क
(१२ अप्रैल ०५ को लिखी पंक्तियाँ
३० दिसंबर ०९ को लोकार्पित)

Tuesday, December 29, 2009

कान्हा कृपा कटाक्ष



उतर रहा आनंद अनूठा
मद्धम स्वर में चहके कोयल

प्रेम पराग भरे मधुकर अब
गुंजन करते पावन शीतल


इस पथ कान्हा कि आवन है
धूल दिव्य, उज्जवल सबका मन

कान्हा के दरसन की महिमा
कह ना सके जग का सारा धन


अब अपार उल्लास छिटकते
गोप सखा चल रहे उछल कर

कान्हा कृपा कटाक्ष करुण यह
बल अद्भुत देती निर्बल कर


अशोक व्यास,
न्यूयार्क, अमेरिका
(९ अगस्त २००५ को लिखी पंक्तियाँ
२९ दिसंबर २००९ को लोकार्पित)

Monday, December 28, 2009

हो गई राधा मोहन


कान्हा मुख मुस्कान मधुर
मिश्री की ढेली
भाग रही राधा, कर कान्हा
बंशी ले ली
तान छेड़ कर बांधे
राधा को मनमोहन
तन्मयता ऐसी जागी
हो गई राधा मोहन


अशोक व्यास
१२ मई ०५ को लिखी पंक्तियाँ दिसंबर २८ ०९ को लोकार्पित

Sunday, December 27, 2009


कृष्ण नाम के यान में
घूमूं तीनो धाम
कृपा पालकी बैठ के
सत्य दिखे अविराम

अशोक व्यास
(मार्च २३ ०५ को लिखी पंक्तियाँ, दिसंबर २७, ०९ को लोकार्पित)

Saturday, December 26, 2009

हर दिन मंगल त्यौहार करे


मन मस्त चरण रज तक आकर
मन मस्त श्याम धुन अपना कर

आनंद सुधारस पान करे
तन्मय श्री हरी गुण गान करे

केशव की लीला है अनुपम
हर मुश्किल को आसान करे


चल अमृत पथ के पथिक बने
गुरु की वाणी के रसिक बने

जब सूरज स्वयम पुकारे है
क्यूं छाँव देख दिग्भ्रमित बने

चल प्रेम भाव संचार करें
हर दिन मंगल त्यौहार करे
लीला रस से होकर पावन
चल उसकी जय जयकार करें


अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
१४ और १५ अक्टूबर २००८ की पंक्तियाँ दिसंबर २६, ०९ को लोकार्पित

Friday, December 25, 2009

कृपा का अमृत


कृष्ण लिए मुस्कान
जोटते बाट
भक्त उठ
खेल लल्ला के साथ

करुणा मय नैनों से
बरसे
कृपा का अमृत

बढ़ता चल तू
थाम हरी का हाथ

अशोक व्यास
न्यूयोर्क, अमेरिका
२४ फरवरी ०५ कि पंक्तियाँ दिसंबर २५ ०९ को लोकार्पित

Thursday, December 24, 2009

केशव कृपा निधान

1
धर्म कर्म का ज्ञान हो
भक्ति से श्रीमान
मेरे पथ, पाथेय सब
केशव कृपा निधान

2
कृष्ण प्रेम कि आस है
सत्संगत कि नाव
नाम बड़ा मीठा लगे
गुरुकृपा कि छाँव

3
प्रेम श्याम का मिल गया
और ना दूजी चाह
जिस पथ प्रेमी कृष्ण के
वो ही मेरी राह
4
कृष्ण नाम पालन करे
हरे ताप और पाप
एक काज कर मन मेरे
श्याम नाम का जाप

5
अमृत सी मुस्कान से
कितना प्रेम लुटाय
डर, दुविधा व्यापे नहीं
कान्हा करे सहाय

6
विनती है कर जोरी के
ओ मेरे घनश्याम
सांस लहर तिरता रहे
नित्य तुम्हारा नाम


अशोक व्यास, न्यूयार्क
फरवरी ०५ को लिखी दिसंबर २४, ०९ को लोकार्पित

Wednesday, December 23, 2009

हर एक मोड़ उसका नगर

(फोटो-बेबी जीजी ठाकुरजी की सेवा में)

1
हर हर गंगे
यमुना मैय्या
कृपा नदी है
करुना गैय्या
मुरली स्वर से
पुलकित करते
धन्य कर रहे
कृष्ण कन्हैय्या


कान्हा का सब खेल है
कान्हा की सब चाल
हर एक मोड़ उसका नगर
पग पग उसकी ताल

'कर' कान्हा के काज में
'मन' नित जमुना तीर
हर संकट घटता गया
बढ़ा द्रोपदी चीर

अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
दिसंबर २३, ०९ बुधवार
(फरवरी ०५ में लिखी पंक्तियाँ आज लोकार्पित)

Tuesday, December 22, 2009

कृष्ण प्रेम का साज


नन्द धाम चल री सखी
वहां मिलेंगे श्याम
व्याकुल नैनों को सखी
वहीं मिले विश्राम
केशव कर मुरली सजे
मुरली स्वर हैं प्राण
बडभागी है वो मनुज
जिसे कृष्ण का ध्यान


मौन तोड़ कर बोलते
वृक्ष पवन संग आज
बजा किसी के हृदय में
कृष्ण प्रेम का साज
Align Center

चित्त चंचल, शीतल हुआ
प्रेम नदी में स्नान
मधुर करे हर एक क्षण
मेरे कृष्ण भगवान

अशोक व्यास,
न्यूयार्क, अमेरिका
(फरवरी १६, ०६ को प्रकट पंक्तियाँ
दिसंबर २२, ०९ को लोकार्पित)

Monday, December 21, 2009

और ना दूजी बात




कृष्ण सखा संग खेलना
और ना दूजा काम
नदी, कूप, ना बावड़ी
प्यास बुझाये श्याम



कृष्ण करावे, सो करूँ
और ना दूजी बात
पग पग चल मनवा मोरे
श्याम सखा के साथ



कृष्ण बड़े गंभीर दिखे
मुख पर 'गुरुरूप' दिखाई दिया
मुस्कान किरण फूटी नन्ही
अमृत पथ शब्द सुनाई दिया

केशव करुणामय बोल गए
भव बंधन सारे खोल गए

मुख कान्हा का ही था लेकिन
उसमें जग सकल दिखाई दिया



अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
(जनवरी ०५ को लिखी पंक्तियाँ दिसंबर २१, ०९ को लोकार्पित)

Sunday, December 20, 2009

अनुराग कृष्ण संग


बढे निरंतर प्यार श्याम से राधा जी
हरना, मनो विकार करें जो बाधा जी

सार सांस का कहीं और कुछ मिला नहीं
हुई कृपा अनुराग कृष्ण संग, राधा जी

Align Center
अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
(२८ जन ०५ लिखित पंक्तियाँ दिसंबर २०, ०९ को लोकार्पित)

Saturday, December 19, 2009

राधा प्यारी


आनंदकंद मनमोहन संग
झूला झूले
राधा प्यारी
चले मधुर पवन
कोयल बोले, बदली सी
रस कि पिचकारी
हो मगन श्याम के ध्यान सखी
मैं तब जीती
जब जग हारी


(२६ जन ०५ को लिखी पंक्तियाँ दिसंबर १८, ०९ को लोकार्पित)
अशोक व्यास, न्यूयोर्क, अमेरिका

Friday, December 18, 2009


मुस्कात श्याम छवि मन मोरे
आनंद अपार खिले अद्भुत
कान्हा की प्रीत उजागर हो
लगे वसंत सी, हर एक रुत

वो जब देखे मुस्काय सखी
सुध बुध बिसरे, अच्छा लागे
ज्ञानी जन कहते, जग मिथ्या
मोरे हर एक कण, सच्चा लागे

चहुँ ओर श्याम के दरस करूँ
हर सांस सखी मैं सरस करूँ
है जहाँ प्रेम की प्यास वहां
बन श्याम बदरिया बरस पडूँ


अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
(जन २५, ०५ को लिखी पंक्तियाँ
दिसम्बर १८, ०९ को लोकार्पित)

Thursday, December 17, 2009

अमृत पान


क्षण क्षण अमृत पान करूँ मैं
तव महिमा का गान करूँ मैं

जिससे सुख दुःख आते जाते
उस अनंत का ध्यान धरूँ मैं

कृपा तुम्हारी तारे कान्हा
सुमिरन अमृत पान करूँ मैं

अशोक व्यास
न्यूयोर्क
(३० दिसम्बर ०४ को लिखी पंक्तियाँ
१७ दिसंबर 09 को लोकार्पित)

Wednesday, December 16, 2009

गाये जा नंदलाल


कृष्ण कृष्ण भज बावरे
काहे फांके धूल
अमृत बरसे रात दिन
इसे कभी ना भूल


श्याम स्निग्ध मुस्कान से
करते नित्य निहाल
पावन, रसमय पथ सुगम
गाये जा नंदलाल

छोड़ श्याम के आसरे
साँसों के सुर ताल
सारा भय जाता रहा
मित्र हो गया काल

अपनी करनी कुछ नहीं
भजूं श्याम दिन रात
श्रवण कीर्तन हो रहा
बैठ कृष्ण के साथ


अशोक व्यास
न्यू यार्क, अमेरिका
दिसंबर १६, ०९ बुधवार
(२३ फरवरी २००५ को लिखी पंक्तियाँ आज लोकार्पित)

Tuesday, December 15, 2009


उल्लास उजागर लहर लहर
मनमोहन मधुकर आठ पहर
रस प्रेम, कृपा, मन नवल धवल
यमुना तट पर यूँ ठहर ठहर

अविचल मस्ती का परिचय कर
मन उछल रहा भक्ति लय पर
हूँ शरण तेरी ओ मुरलीधर
सब कुछ पाया तुझको पाकर

अशोक व्यास
न्यूयोर्क, अमेरिका
(जून १७, ०८ को लिखी पंक्तियाँ लोकार्पण दिसम्बर १५, ०९)

Monday, December 14, 2009

सरस सुधा


प्रेम गीत बन जाए जीवन
साँस साँस सुरभित वृन्दावन

सरस सुधा शाश्वत सांसों में
बहूँ लिए निश्छल अपनापन

केशव करुण देकर ज्ञानांजन
छुड़ा रहे हैं सब भाव बंधन

सब विचार कान्हा को अर्पण
प्रेम गीत बन जाए जीवन

अशोक व्यास, न्यू योर्क
(जून , ०८ को लिखी पंक्तियाँ, लोकार्पण दिसम्बर १४, ०९)

Sunday, December 13, 2009

उमड़ रहा आनंद


गुरु कृपा का आसरा, मिले भक्ति और ज्ञान
साँस लगे अनमोल अब, दिव्य सुधारस खान

मोहन मोहन मन मगन, उमड़ रहा आनंद
अनुग्रह से जाग्रत हुए, शाश्वत श्रद्धा छंद

गुरु चरण चित्त लग गया, है अटूट विश्वास
गुरु अनुग्रह से मिट रही, युगों युगों की प्यास

बैठ ह्रदय में, कर रहे, शासन संवित राज
करुणा रस में भीग कर, धन्य हो गया आज

अशोक व्यास
न्युयोर्क, अमेरिका
(१३ दिसम्बर ०९ को लोकार्पित मई ११, ०८ को लिखी गयी पंक्तियाँ)

Saturday, December 12, 2009

मिले तो मंगल


कान्हा संग नौका विहार है
जीवन का सम्पूर्ण सार है
चाहे जो नदिया के पार है
नहीं उतरना अबकी बार है


बंशीधर छवि सब कुछ वारुं
जो कुछ जीता, वो सब हारूं
मिले तो मंगल, छुपे तो है छल
बस केशव की बाट निहारुं

ध्यान धरूँ पर कुछ न पुकारूँ
सुन्दरतम को और संवारूं
छूकर मैला करूँ न उसको
सिर्फ़ श्याम की छवि निहारूं


अशोक व्यास
न्यूयोर्क, अमेरिका
(जन १४, ०८ को लिखी पंक्तियाँ, लोकार्पण दिवस- शनिवार, दिसम्बर १२, ०९)

Friday, December 11, 2009

मन दिखलाये लटके झटके




मन लहर लहर बहता जाए
पर श्याम मिलन छूटा जाए
आनंद उतर आए उस पल
जिस पल सुमिरन रस पा जाए




अब तक भटके
इत उत अटके
मन दिखलाये
लटके झटके

चल श्याम पिया
का दरस करें
जग के हर संकट
से हटके



मैं केशव का गुणगान करूं
बंशी वाले का ध्यान धरूं
जिसके चरणन
हर तीर्थ है
उसके चरणों का
ध्यान धरूं


अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका

Thursday, December 10, 2009

कान्हा की गली



मन मस्ती की छाई बदली
हर पवन चली कान्हा की गली
जब श्याम नाम मन को भाया
हर बात हो गयी भली भली

अशोक व्यास
न्यूयोर्क, अमेरिका