Wednesday, August 31, 2011

किनारे के मोह में


उद्गम
प्रवाह
गति
लय
अनुबंध 
उल्लास
विश्वास
महारास 


पोंछ कर
दिन-रात का अंतर
साँसों में
मुस्कुराये शिव शंकर
खोने-पाने से परे
गूँज उठा 
 अक्षय तृप्ति का स्वर 


सार
उजियारा
विस्तार
अमृत
आत्मीय पगडंडी
पीपल की छाँव
विश्रांति
विराम
खुल गया 
 पूर्णता का पैगाम 


अभी दृश्यमान
 अभी ओझल 
कौन नहीं है चंचल 


किनारे के मोह में 
  खुला नहीं लंगर 
 देख नहीं पाए 
 लहरों का घर 


अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
३१ अगस्त २०११          

Tuesday, August 30, 2011

श्याम मेरे मैं मान गया


 
कान्हा तेरे द्वार पहुच कर जान गया
 साथ चला तू, श्याम मेरे मैं मान गया 

तेरी लीला ख़त्म नहीं होने वाली
  युग युग तेरी शान, प्रभु पहचान गया
 
 अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका 



Sunday, August 28, 2011

गुरु पद चरण कमल अति पावन


दिव्य सुधा रस पान कराते
  स्निग्ध भाव में स्नान कराते 
 गुरु संबल देते हैं पग-पग
 हर मुश्किल आसान कराते


 गुरु पद चरण कमल अति पावन
बरसे नित्य कृपा मन भावन
 सुरभित साँसों में कृतज्ञता 
जाग्रत सतत प्रेम का सावन


अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
   

धीरज की महिमा

   
धीर बिना पूजन नहीं
   धीर बिना नहीं ध्यान
धीरज की महिमा बड़ी
सुनो लगा कर कान
  
धीरज बिन मिलते नहीं
मनमोहन घनश्याम
   बिन धीरज  हो न सके
कभी भक्त निष्काम

अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
५ सितम्बर २००९ को लिखी
 २८ अगस्त २०११ को लोकार्पित

    

Saturday, August 27, 2011

उत्सव


हर कदम उत्सव है
 कितना अद्भुत है 
एक पाँव ज़माना
दूसरा बढ़ाना
चलते जाना


अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
२७ अगस्त २०११      

Friday, August 26, 2011

प्रेम भरा पथ


चिर प्रसन्नता धारण करने का व्रत है
 नित्य श्याम में लीन रहूँ, ऐसी लत है 

  पग-पग पर ये खेल दिखे है जो उसका
 उसके देखे, बनता प्रेम भरा पथ है 

      आँखों में जो जो बदली सी उमड़े है
 उसके बरसे बढे श्याम की संगत है

 मैं अपनी हर बात भुला कर आया था
  पर यादों में अब भी मधुमय रंगत है

 अहा! प्रेम विस्तार सजाने वाले से 
  मेरा मन अब नित्य निरंतर सहमत है

अशोक व्यास
जुलाई ३०, ११ को लिखी
 २६ अगस्त २०११ को लोकार्पित  

Thursday, August 25, 2011

कान्हा के आँगन से


दिव्य सुधा रस पान कराये गिरिधारी
 नित्य कृपा में स्नान कराये गिरिधारी
अमृत सिंचन करता है उसका चिंतन
   आत्म-रूप में दरस कराये गिरिधारी

 है अनमोल श्याम का वैभव
 सुमिरन सत्य का अनुभव
  केशव का लीला रस ऐसा
 सब कुछ कर देता है संभव

माखन मिसरी भोग लगा
निर्मल मन से
 प्रीत बड़ी जाए मेरी
वृन्दावन से
धन्य हो गया जीवन 
 ऐसी कृपा हुई
 चखा है माखन अब
 कान्हा के आँगन से 

अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
२5 अगस्त 2011 

Wednesday, August 24, 2011

श्याम मिलन

 
मन लहर लहर बहता जाए 
 पर श्याम मिलन छूटा जाए
 आनंद उतर आये उस पल
  जिस पल सुमिरन रस पा जाए

 
अब तक भटके 
इत-उत अटके 
 मन दिखलाये
लटके झटके 
 चल श्याम पिया 
का दरस करे 
जग के हर संकट 
से हटके 

 
 
मैं केशव का 
गुणगान करूँ
बंशीवाले का 
ध्यान धरूँ

जिसके चरणन
 हर तीर्थ है 
  उसके चरणन का
  ध्यान धरूँ

अशोक व्यास
१० फरवरी २००८ को लिखी
 २३ अगस्त २०११ को लोकार्पित

Tuesday, August 23, 2011

कहाँ गए नंदलाल


मन मोहन महाराज की
 मन  कर जय जयकार
जिससे सारा जग बना
उसको नित्य पुकार


आनंद लेकर अकेले नहीं बैठते गोपाल
, सबको माखन लुटा कर, कर देते निहाल

ढूंढती प्यासी निगाहें, कहाँ गए नंदलाल
  देखते देखते अदृश्य, ये कैसी चलते चाल 

अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
२६ और २७ मार्च २००८ को लिखी
 २३ अगस्त २०११ को लोकार्पित

Monday, August 22, 2011

माखन प्रेमी का सत्कार


जय श्री कृष्ण
जन्माष्टमी उत्सव की बधाइयां
  नन्द के आनंद भय्यो, जय कन्हैय्या लाल की



  जय श्री कृष्ण
 यदुनंदन की जय जयकार
माखन प्रेमी का सत्कार 
उसके लीला रस में डूबें 
 जिसकी लीला अपरम्पार 

मोरपंख से मुकुट धरा कर
आया निराधार आधार 
मुख पर मोहक मधुर कांति है
जिससे छिटके शाश्वत प्यार


अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका 
२५ मार्च २००८ को लिखी
 २२ अगस्त २०११ को  लोकार्पित 

Sunday, August 21, 2011

मन आनंद आनंद गोवर्धन


मन आनंद आनंद गोवर्धन
कान्हा की लीला नित माखन
 चल प्रेम भाव से बढे चलें
कर अच्युत अर्पित हर एक यतन


अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका 
 २३ मार्च २००८ को लिखी
 l२१ अगस्त २०११ को लोकार्पित

Saturday, August 20, 2011

कृष्ण प्रेम की प्यास


मन गुरु महिमा गा ले
  मन कृष्ण प्रेम पा ले
 करूणा सिन्धु, ज्ञानमेघ गुरु
 ह्रदय से अपना ले
     मन गुरु महिमा गा ले



कृष्ण सुनाये बांसुरी 
 कृष्ण रचाए रास 
  मन को वृन्दावन करे 
  कृष्ण प्रेम की प्यास 

   कृष्ण मिलन की आस है 
कृपा नगर में वास
  मोह लिया है कृष्ण ने 
हुआ परम विश्वास 


अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
  2  और ४ अप्रैल २००८ को लिखी  
 २० अगस्त २०११ को लोकार्पित

Friday, August 19, 2011

श्याम की बंशी


श्याम की बंशी सुनने 
सब सखियाँ एकत्रित हो गयीं

  श्याम कदम्बवृक्ष के टेक लगा कर खड़े हुए
 मुरली अधरों पर लगा कर

कुछ गोपियाँ प्रतीक्षा करने लगीं
  कान्हा को देखते देखते तन्मय हो गयी

  जो तन्मय नहीं हो पायीं
 वे प्रतीक्षा करती रहीं

 लौटते हुए 

 एक सखी ने दूसरी से कहा
 "आज तो कान्हा की
  बंशी ने मन मोह लिया"

अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
१९ अगस्त २०११  

Thursday, August 18, 2011

कान्हा की जय जयकार


हर अनुभव प्रसाद श्याम का
     हर क्षण में आल्हाद श्याम का

नित्य समन्वय, शांति
नित्य प्रेम विस्तार
     रोम -रोम से कर सदा
कान्हा की जय जयकार

अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
१८ मार्च २००८ को लिखी
  २०११ को१८ अगस्त  लोकार्पित  

Wednesday, August 17, 2011

मन शीतल मन

मन शीतल मन
मन निर्मल मन
           मन शुद्ध सौम्य      
                                                                      नित उज्जवल मन

  मन श्याम चरण रज पाई है     
                                                                 स्वर्णिम शरणागति पाई है

 मन तन्मय, 
चिन्मय
अच्युत लय
 मन नित्य अभय

श्रद्धा संपत्ति संग
  नित शीतल मन

अशोक व्यास
१९ मार्च २००८ को लिखी
 १७ अगस्त २०११ को लोकार्पित

Tuesday, August 16, 2011

प्रीत पथ की बाधा


कान्हा ने फिर खींचा 
हाथ बढ़ा कर अपना
बोला सच्छा साथ मेरा
बाकी सब सपना

   चलते चलते  मधुर भाव
मन में जब जागा
तन्मयता से दूर हुई
प्रीत पथ की बाधा


अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
१२ मार्च २००८ को लिखी
 १६ अगस्त २०११ को लोकार्पित

Monday, August 15, 2011

अलोक शिखर



१७ मार्च २००८
सोमवार
जय श्री कृष्ण


अलोक शिखर
आनंद निर्झर
मन मौन मधुर
निरखे नटवर

प्रियतम का घर
उज्जवल पथ पर
 अनुग्रह का स्वर
हो नित्य मुखर

तन्मय होकर
               निर्मल होकर           
 सब कुछ पाए
 उसका होकर 

अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
१५ अगस्त २०११ को लोकार्पित  

Sunday, August 14, 2011

गुरु चरणन भज गुरु चरणन



गुरुचरणन भज गुरु चरनन
स्वर्णिम आभा पाए मन
मिटे सहज सब भव बंधन
पुष्टि करे संवित आँगन

   गुरु चरणन भज श्री चरणन

पथ मंगलमय और पावन
यहाँ सुवासित शास्त्र वचन
शुद्ध-बुद्ध निष्पाप करे  
 कृपा नाव सदगुरु दरसन

    गुरु चरणन भज गुरु चरणन

अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
१५ मार्च २००८ को लिखी
 १४ अगस्त २०११ को लोकार्पित

Saturday, August 13, 2011

आत्मीयता के सागर में

 
जय श्री कृष्ण!

प्रकाश की एक किरण
 उमंग भरी frock पहने
 नन्ही बच्ची सी
मेरा हाथ पकड़ कर
मचलती हुई
 उछलती हुई   
ले चली मुझे
 
किस तरफ 
 न जान कर

 चलते चलते
लगा नहीं रहे मेरे पाँव
पर मैं चल रहा हूँ
 फिर धीरे धीरे  
धड, मुख, माथा
सब कुछ धुल गए
निर्मल अलोक में
 
   मैं ही मैं था हर तरफ
 पर वह 'मैं' जो आया था
 था जो आने से पहले 
उसकी पहचान
 नहीं है शेष
 
 आत्मीयता के सागर में 
 विलीन है
   वह सीमित एक
 जिसका हाथ
 थामा था
  प्रकाश की
  एक किरण ने 

 l४ मार्च २००८ को लिखी १३ अगस्त २०११ को लोकार्पित

Friday, August 12, 2011

हरि-हरि छाया




(चित्र- ललित शाह)

जीवन पथ पर कृपा परिपूर्ण
  अमृत पथ का दरस कराया 
गुरुवचनो में सार समाया
आनंदामृत अंतस उमड़े
 कण-कण, क्षण-क्षण, 
हरि-हरि छाया

अशोक व्यास
१ मार्च २००८ की अभिव्यक्ति
 १२ अगस्त २०११ को आपके लिए प्रस्तुत
 

Thursday, August 11, 2011

अकेलेपन से पार


1

पूर्णता के एकदम पास 
लग रहा है सब कुछ बकवास
हर सांस में असीम का निवास 

२  
कैसे बचाए रखूँ उल्लास
१ 
    मुझमें सब कुछ, मैं यानी विस्तार 
 २
  मैं क्षुद्र, विवश, दिशाहीन और लाचार 
 १
 मेरी पूंजी है परमात्मा की पुकार 
 २
कौन करे इस अकेलेपन से पार
 १
 मैं तुम्हारी शरण हूँ गिरिधारी 
 २
  कैसे करून, प्रखर होने की तैय्यारी 


 अशोक व्यास, ४ मार्च २००८ को लिखी, ११ अगस्त २०११ को लोकार्पित

Wednesday, August 10, 2011

सारा जग उसका आँगन


अनुपम, अद्भुत, श्याम सखा संग
 नित्य निरंतर रम ले मन

उसका सुमिरन संबल हर पग
सारा जग उसका आँगन

 मन कान्हा से बात कर
क्यूं करता संकोच
एक उसी पर ध्यान धर
छोड़ जगत की सोच


अशोक व्यास
 न्यूयॉर्क, अमेरिका          
  ९ और २० नवम्बर २००९ को लिखी
 १० अगस्त २०११ को लोकार्पित

Tuesday, August 9, 2011

चिर मुक्ति की अभिलाषा है


सब कुछ उज्जवल
 सब कुछ मंगल
श्याम संग है
रसमय हर पल 

  चिर मुक्ति की अभिलाषा है
                                                               नित्य प्रेम का मन प्यासा है

दिव्य धरोहर
 श्रद्धा का स्वर    
                                                                        उसका हर पल
                                                                         उससे हर पल

साथ रहे नित
सुमिरन संबल

अशोक व्यास
६ अगस्त २००९ को लिखी
   ९ अगस्त   २०११ को लोकार्पित
 

Monday, August 8, 2011

करता रहूँ दरसन तुम्हारा




मैं का ये छोटा सा घेरा
छेड़ देता
प्यार का संसार सारा 
तुम रहो बस,
साथ चतुर्भुज
हर कामना पा जाए किनारा

मैं नहीं हूँ
तुम ही तुम हो

'पर' का एक छोटा सा तंतु
छल धरे मुझमें तुम्हारा
क्या तुम्हें अच्छा लगा है
क्षुद्र हो जब-जब मैं हारा

हंस रहे हो, देख कर
'मैं ' का ये 'टिमटिम करता तारा'
क्या कहूं, क्या ना कहूं
बस मौन हो, करता रहूँ दरसन तुम्हारा 

अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
३० मई २००८ को लिखी ७ अगस्त २०११ को लोकार्पित             
   

Sunday, August 7, 2011

आँगन में मंगल ध्वनि

 
सजता, संवरता मन
कविता के साथ बन-ठन
 
मुस्कुराता है, देख कर
प्यारा मनमोहन
 
आँगन में मंगल ध्वनि
आशीषों की बदली घनी
 
उत्सव की निराली छटा
मधुमय हर बात बनी 
 
 
अशोक व्यास
२२ जून २००८ को लिखी
     ७ अगस्त २०११ को लोकार्पित         

Saturday, August 6, 2011

श्रद्धा की पतवार



मनमोहन की बात से
हर पग हो गया प्यारा
दिशा दिशा संग हो गया
रिश्ता नया हमारा

केशव के करूणा नयन 
देते हैं उपहार
सांस सांस को मिल रही
श्रद्धा की पतवार

अनुभव गंगा को करें
पावन गोपीनाथ
घर-आँगन मंगल छाता
स्वर्णिम दिव्या प्रभात

बोल सांवरे के कहें
अहा! बंशी की तान
श्रवण किये, अमृत मिला
छूटी लघु पहचान


अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
जून २१ २००८ को लिखी
६ अगस्त २०११ को लोकार्पित                   

Friday, August 5, 2011

शाश्वत श्रद्धा छंद



गुरुकृपा का आसरा 
मिले भक्ति और ज्ञान
सांस लगे अनमोल अब
दिव्या सुधा रस खान

मोहन मोहन मन मगन
उमड़ रहा आनंद
अनुग्रह से जाग्रत हुए
शाश्वत श्रद्धा छंद

गुरुचरण चित लग गया
है अटूट विश्वास
गुरु अनुग्रह से मिट रही
युगों युगों की प्यास

बैठ हृदय में, कर रहे
शासन संवित राज
करूणा रस में भीग कर
धन्य हो गया आज


११ मई २००८ को लिखी
५ अगस्त २०११ को लोकार्पित