Monday, August 8, 2011

करता रहूँ दरसन तुम्हारा




मैं का ये छोटा सा घेरा
छेड़ देता
प्यार का संसार सारा 
तुम रहो बस,
साथ चतुर्भुज
हर कामना पा जाए किनारा

मैं नहीं हूँ
तुम ही तुम हो

'पर' का एक छोटा सा तंतु
छल धरे मुझमें तुम्हारा
क्या तुम्हें अच्छा लगा है
क्षुद्र हो जब-जब मैं हारा

हंस रहे हो, देख कर
'मैं ' का ये 'टिमटिम करता तारा'
क्या कहूं, क्या ना कहूं
बस मौन हो, करता रहूँ दरसन तुम्हारा 

अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
३० मई २००८ को लिखी ७ अगस्त २०११ को लोकार्पित             
   

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