Thursday, August 25, 2011

कान्हा के आँगन से


दिव्य सुधा रस पान कराये गिरिधारी
 नित्य कृपा में स्नान कराये गिरिधारी
अमृत सिंचन करता है उसका चिंतन
   आत्म-रूप में दरस कराये गिरिधारी

 है अनमोल श्याम का वैभव
 सुमिरन सत्य का अनुभव
  केशव का लीला रस ऐसा
 सब कुछ कर देता है संभव

माखन मिसरी भोग लगा
निर्मल मन से
 प्रीत बड़ी जाए मेरी
वृन्दावन से
धन्य हो गया जीवन 
 ऐसी कृपा हुई
 चखा है माखन अब
 कान्हा के आँगन से 

अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
२5 अगस्त 2011 

1 comment:

Rakesh Kumar said...

'कान्हा के आँगन में'खूब माखन चख
रहें हैं आप.

आपकी हर प्रस्तुति इतनी भक्तिरस
से ओत प्रोत होती है कि मेरे हृदय में
भी आनंद की लहरें उठने लगती हैं.

मेरे ब्लॉग पर अपना भक्तिरस
बहा कर मुझे धन्य कीजियेगा.