Friday, September 2, 2011

सहज अमृत गान


नींद में नहीं
जाग कर
विश्राम का
करते हैं आव्हान
विविध दृश्य 
हो जाते
 एक समान

वे हर दिन
आरती उतारते हैं 
 भोर की
देख लेते
 गहराई हर तरह के
 शोर की

मौन ऐसा 
जो विराट तक जाए
उनके भीतर
 सहज मुखरित हो पाए 

 कर लिया है
  सत्य का ऐसा अनुसंधान
   हो जाते, शब्द उनके
 सहज अमृत गान 

अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
२० मई २००८ को लिखी
   (स्वामी परमानन्द महाराज के साथ बैठने का प्रभाव)

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