Saturday, October 15, 2011

कैसे पकडूँ कान


नृत्य सजे प्रभु प्रेम का
या उत्तेजक बोल
बजता है हर गीत में
अजब देह का ढोल

मदिरालय कर देह को
करूँ भोग में स्नान
हाथों में है कामना
कैसे पकडूँ कान



अशोक व्यास
         (कई बरस पहले की पंक्तियाँ
प्रभु के चरणों में अर्पित )        

No comments: